चौरसिया ने स्वामी विवेकानन्द, रवीन्द्रनाथ टैगोर और महात्मा गांधी के जीवन प्रसंगों का उदाहरण देते हुए कहा कि बचपन में देखे, पढे या खेले गए नैतिक मूल्य आधारित नाटकों का प्रभाव इन सभी के जीवन पर प्रत्यक्ष दिखाई देता है। बाल नाटकों का प्रभाव नाटक देखने वाले बच्चों के साथ-साथ पात्रों का अभिनय करने वाले बच्चों पर भी पड़ता है। बाल साहित्यकारों का यह दायित्व है कि बच्चों के लिए ऐसे साहित्य की रचना करें जो उन्हें आनन्द देने के साथ जीवनोपयोगी गुणों को भी स्थापित करता हो। वेबीनार का उद्घाटन एनबीटी के अध्यक्ष प्रो. गोविंद प्रसाद शर्मा ने किया तथा अध्यक्षता मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य अकादमी के अध्यक्ष डाॅ विकास दवे ने की। संयोजक डाॅ विमला भंडारी ने वेबीनार की रूपरेखा स्पष्ट की तथा विविध सत्रों में प्रकाश तातेड़, मुरलीधर वैष्णव, अनिल जायसवाल, दिविक रमेश, एनबीटी के संपादक द्विजेन्द्र जेन्द्र कुमार, गोविन्द शर्मा, रजनीकांत शुक्ल और नीलम चंद्रा इत्यादि ने भी संबोधित किया।