‘‘संस्कार निर्माण की क्षमता है बाल नाटकों में‘‘ -उमेश चौरसिया

उमेश चौरसिया
राष्ट्रीय पुस्तक न्यास दिल्ली एवं सलिला संस्था द्वारा आयोजित बाल एकांकी पर केन्द्रित ‘राष्ट्रीय बाल साहित्य वेबीनार‘ में वरिष्ठ नाट्य विशेषज्ञ उमेश कुमार चौरसिया ने अपने व्याख्यान में कहा कि बाल साहित्य की सभी विधाओं में बाल नाटक ऐसी प्रभावी विधा है जिसमें बच्चों में संस्कार निर्माण की क्षमता है। उन्होंने भरतमुनि के नाट्यशास्त्र का उल्लेख करते हुए बताया कि कला का ध्येय आनन्द की अनुभूति कराना है और नाटक या अन्य साहित्यिक विधा समाज को दिशा देने वाली होनी चाहिए। इसलिए जिस बाल नाटक में प्रमुखतः मनोरंजन का तत्व विद्यमान होता है वही अधिक लोकप्रिय होते हैं, किन्तु नाटककार को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि बाल नाटक की प्रस्तुति में कहीं न कहीं कोई संस्कार, जीवन मूल्य एवं चारित्रिक गुणों का विकास करने वाली कोई सीख सहज भाव से दी जा सके। केवल उपदेशात्मक नाटक को बाल नाटक कहे जाने में संशय ही है।
चौरसिया ने स्वामी विवेकानन्द, रवीन्द्रनाथ टैगोर और महात्मा गांधी के जीवन प्रसंगों का उदाहरण देते हुए कहा कि बचपन में देखे, पढे या खेले गए नैतिक मूल्य आधारित नाटकों का प्रभाव इन सभी के जीवन पर प्रत्यक्ष दिखाई देता है। बाल नाटकों का प्रभाव नाटक देखने वाले बच्चों के साथ-साथ पात्रों का अभिनय करने वाले बच्चों पर भी पड़ता है। बाल साहित्यकारों का यह दायित्व है कि बच्चों के लिए ऐसे साहित्य की रचना करें जो उन्हें आनन्द देने के साथ जीवनोपयोगी गुणों को भी स्थापित करता हो। वेबीनार का उद्घाटन एनबीटी के अध्यक्ष प्रो. गोविंद प्रसाद शर्मा ने किया तथा अध्यक्षता मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य अकादमी के अध्यक्ष डाॅ विकास दवे ने की। संयोजक डाॅ विमला भंडारी ने वेबीनार की रूपरेखा स्पष्ट की तथा विविध सत्रों में प्रकाश तातेड़, मुरलीधर वैष्णव, अनिल जायसवाल, दिविक रमेश, एनबीटी के संपादक द्विजेन्द्र जेन्द्र कुमार, गोविन्द शर्मा, रजनीकांत शुक्ल और नीलम चंद्रा इत्यादि ने भी संबोधित किया।

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