पंचायत चुनावों में मजबूत व सक्रिय कार्यकर्ता ही लगाएंगे बेड़ा पार

केकड़ी 12 नवंबर(नि सं)
केकड़ी विधानसभा क्षेत्र की तीनों पंचायत समितियों केकड़ी, सरवाड़ व सावर पंचायत समिति में पहले चरण के 23 नवंबर को होने जा रहे पंचायत चुनाव को लेकर उम्मीदवारों की स्थिति स्पष्ट होने के बाद दोनों ही दलों के उम्मीदवारों ने चुनाव प्रचार शुरू कर दिया है वहीं निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे लोगों ने भी चुनावी बिसात बिछानी शुरू कर दी है। जहां निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं वहां संघर्ष त्रिकोणात्मक होगा वैसे अधिकांश सीटों पर भाजपा व कांग्रेस में आमने सामने का मुकाबला है। केकड़ी पंचायत समिति के तीन वार्डो me निर्दलीयों ने डटे रहकर समीकरण बिगाड़ दिए है।दोनों ही दलों में जिन दावेदारों को टिकट नहीं मिला वे नाराज नजर आ रहे हैं, उन्हें मनाने के प्रयास किये जा रहे हैं। कुछ जगहों पर तो ऐनवक्त टिकट बदल दिए जाने से कार्यकर्ताओं में गुस्सा है, ये लोग बगावत पर उतर आए हैं। कुछ कार्यकर्ताओं ने तो अपनी नाराजगी जताते हुए टिकट वितरण में भेदभाव व मनमानी किये जाने के आरोप लगाए है। खैर यह तो राजनीति में चलता रहता है। उधर जाट व माली समाज ने भी टिकट वितरण में उपेक्षा किये जाने का आरोप लगाते हुए भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया को पत्र लिखकर नाराजगी व्यक्त की है। राजस्थान जाट महासभा व श्री क्षत्रिय फूल मालियान नवयुवक मंडल ने पत्र में बताया कि दोनों ही समाज के अधिकांश मतदाता भाजपा समर्थित हैं उसके उपरांत भी उनकी उपेक्षा की गई है। अब दोनों समाज की नाराजगी का कितना खामियाजा भाजपा को उठाना पड़ेगा यह तो चुनाव परिणाम के दिन पता चलेगा मगर फिलहाल भाजपा की मुश्किलें बढ़ गई है। ऐसे में भाजपा की राह आसान नहीं है, सावर व सरवाड़ में भाजपा को एडी से चोटी तक जोर लगाना पड़ेगा क्योंकि दोनों ही क्षेत्र भाजपा की पकड़ से दूर है। हालांकि कांग्रेस के पास भी गिनाने को कोई विशेष उपलब्धि नहीं है। क्षेत्र के गांवों की स्थिति किसी से छिपी नहीं है, लोगों को रोजमर्रा की मूलभूत सुविधाओं के लिए भी जूझना पड़ रहा है। हां कांग्रेस को सत्ता में होने का लाभ अवश्य मिल सकता है। क्योंकि गांवों की सरकार अधिकांशतः सत्ता के साथ ही चलती है, ऐसे में कांग्रेस को लाभ मिल सकता है। उल्लेखनीय है कि इस बार कोरोनाकाल के चलते चुनाव की स्थितियां पिछले चुनावों से भिन्न है, इस बार न तो चुनावी बड़ी सभाएं होनी है और न ही बड़े नेताओं का दौरा। कोरोनाकाल के चलते स्थानीय नेताओं व कार्यकर्ताओं के भरोसे ही चुनाव संपादित होंगे। पार्टी कार्यकर्ताओं के दम पर ही चुनाव लड़ा जाएगा, जिस पार्टी के कार्यकर्ता जितने मजबूत व सक्रिय होंगे वो पार्टी उतनी ही फायदे में रहेगी हालांकि चुनाव में उम्मीदवार की छवि व जातिगत समीकरण भी चुनाव परिणाम प्रभावित करेंगे।

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