कोविड-19 पर आयुर्वेद शोध के संबंध में वेबीनार आयोजित

गिलोय धनवटी तथा आयुष 64 के शोध पर हुई चर्चा

अजमेर, 25 नवम्बर। आयुर्वेद विभाग द्वारा कोविड-19 पर आयुर्वेद द्वारा किए गए शोध तथा पोस्ट कोविड स्थिति पर वर्चुअल वेबीनार का आयोजन किया गया। इसमें विभाग के शासन सचिव श्री राजेश कुमार, निदेशक श्रीमती सीमा शर्मा एवं अतिरिक्त निदेशक डॉ. आनन्द शर्मा भी उपस्थित रहे।

वेबीनार में मुख्य वक्ता के रूप में राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान जयपुर के विभागाध्यक्ष रोग एवं विकृति विज्ञान प्रोफेसर डॉ. पवन कुमार गोदतवार ने कहा कि आयुष विभाग कोरोना महामारी के भारत में प्रवेश करने के साथ ही इसके उपचार के लिए सक्रिय रहा। इसके अंतर्गत इम्यूनिटी बूस्टर के रूप में तुलसी, दालचीनी, सोंठ एवं काली मिर्च का आयुष काढा पीने की सलाह दी गई। आयुष उपचार के संबंध में शोध को जन स्वास्थ्य से जोड़कर लैब रिसर्च किया गया। इस अनुसंधान को बाजार में भी आमजन के लिए उपलब्ध करवाने पर भी कार्य किया गया।

उन्होंने कहा कि आयुर्वेद पद्धति के माध्यम से कोरोना मरीजों का उपचार कर इस संबंध में तथ्य एवं प्रमाण तैयार किए गए। इसके अंतर्गत 91 रिसर्च प्रोजेक्ट देशभर में चलाए गए। इनमें से 21 प्रोजेक्ट सीसीआरएएस में संचालित हुए। राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान जयपुर द्वारा 6 स्टडी की गई। इनमें से 3 जन स्वास्थ्य, 2 कोरोना से बचाव तथा 1 स्टडी कोरोना रोगियों पर ऑल इण्डिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल सांईस (एम्स) जोधपुर के साथ की गई।

उन्होंने कहा कि जोधपुर, जयपुर, कोटा, अजमेर एवं टोंक के कंटेन्मेन्ट जोन के 10 हजार 200 व्यक्तियों को दवा दी गई। क्षेत्र के व्यक्तियों का 45 दिन तक का रिकार्ड रखा गया। दवा लेने वाले व्यक्तियों का कोरोना संक्रमण न्यूनतम रहा। इसके साथ-साथ इन्फ्लून्जा लाइक इलनेस (आईएलआई) भी नहीं के बराबर रहा। रोग प्रतिरोधक क्षमता में बढोतरी होने से रोगी स्वतः ही संक्रमित नहीं होकर स्वस्थ रहे। इन व्यक्तियों को गिलोय घनवटी की दो-दो गोली सुबह-शाम दी गई थी। यह औषधि कुछ फॉर्मेसी कम्पनियों द्वारा गुडुची घनवटी के नाम से भी उपलब्ध करवायी जा रही है। यह दवा 90 के दशक में इम्यूनोमोड के नाम से मॉर्डन फार्माेकॉपिया में भी शामिल की गई थी। इस पर मुम्बई के ऎलोपैथी चिकित्सकों द्वारा पर्याप्त शोध करने के उपरांत इसे फार्मोकॉपिया में शामिल किया गया है। केईएम हॉस्पीटल के फॉर्मेसी विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. सरेजनी धानुरकर ने इसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता पर कार्य किया था।

उन्होंने कहा कि आयुष 64 की एडऑन स्टडी कोरोना मरीजों पर की गई। वार्ड में भर्ती 60 मरीजों के 2 दल बनाए गए। इनमें से 30 मरीजों को यह दवा दी गई और 30 को सामान्य ऎलोपैथी उपचार उपलब्ध करवाया गया। आयुर्वेदिक दवा लेने वाले 30 मरीजों में से 21 मरीजों की कोरोना रिपोर्ट 5 वें दिन ही नेगिटिव आ गयी। यह परिणाम 5 दिन में 70 प्रतिशत से अधिक रहा। सामान्य दवा लेने वाले 30 मरीजों में से 14 मरीज 14 दिन बाद नेगिटिव हुए। यह लगभग 50 प्रतिशत है। दवा लेने वाले मरीजों में किसी प्रकार का कोई साईडइफेक्ट नहीं रहा। किसी मरीज को एडवर्स ड्रग रिएक्शन (एडीआर) एवं मल्टी ऑर्गन फेलीयर (एमओएफ) का सामना नहीं करना पड़ा और ना ही किसी मरीज को रैफरल करने की आवश्यकता पड़ी। आधुनिक दवा के साथ आयुर्वेदिक दवा देने से ऎलोपैथिक दवा की कार्यक्षमता में बढोतरी ही होती है।

इस अवसर पर राज्य के समस्त संभागों के अतिरिक्त निदेशक एवं 10-10 आयुर्वेद चिकित्साधिकारी वर्चुअल वेबीनार में उपस्थित रहें।

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