अग्रवाल के 18 गोत्र एवं उनका नामकरण
हममें से अधिकाक्षं लोगों की मान्यता है कि अग्रवालों के 18 या साढ़े सत्तराह गोत्रो के नाम उनके 18 पुत्रों के नाम से रक्खें गये है किन्तु वास्तविकता में गोत्रो के नाम 18 यज्ञ करवाने वाले ऋषियों के नाम से है | महर्षि गर्ग ने भगवान अग्रसेन को 18पुत्र के साथ 18 यज्ञ करने का संकल्प करवाया। माना जाता है कि इन 18 यज्ञों को ऋषि मुनियों ने सम्पन्न करवाया और इन्हीं ऋषि-मुनियों के नाम पर ही अग्रवंश के गोत्रों का नामकरण हुआ | प्रथम यज्ञ के पुरोहित स्वयं गर्ग ॠषि बने, उन्होंने राजकुमार विभु को दीक्षित कर उन्हें गर्ग गोत्र से मंत्रित किया। इस प्रकार अग्रवालों के 18 गोत्र हैं यथा गर्ग, तायल, कुच्चल, गोयन, भंदेल, मंगल, मित्तल, बंसल, बिंदल, कंसल, नागल, सिंघल, गोयल, तिंगल, जिन्दल, धारण, मधुकुल, एरेन | ॠषियों द्वारा प्रदत्त अठारह गोत्रों को भगवान अग्रसेन के 18 पुत्रों के साथ भगवान द्वारा बसायी 18 बस्तियों के निवासियों ने भी धारण कर लिया एक बस्ती के साथ प्रेम भाव बनाये रखने के लिए एक सर्वसम्मत निर्णय हुआ कि अपने पुत्र और पुत्री का विवाह अपनी बस्ती में नहीं दूसरी बस्ती में करेंगे। आगे चलकर यह व्यवस्था गोत्रों में बदल गई जो आज भी में प्रचलित है।
सच्चाई तो यही है कि महाराजा अग्रसेन ने अपने विशाल परिवार को हमेशा एकता के सूत्र मे बांध कर एकजुट रक्खा | इसलिए सम्राट अग्रसेनजी ने अपने आपको एक महान एवं सफल मेनेजमेंट गुरु के रूप में स्थापित किय| महाराजा अग्रसेन ओर माता माधवी ने अपने सभी 18 पुत्रों को श्रेष्ठतम संस्कार प्रदान किये थे | महाराजा अग्रसेन को समाजवाद का प्रवर्तक ,अहिसां के पुजारी, सुयोग्य प्रशासकएवं आदर्श मेनेजमेंट गुरु के रूप में जाना जाता हैआठ | करोड़ से ज्यादाअग्रवालों के लिये उनके सिद्धांत हमेशा अनुकरणीय और प्रेरक बने रहेगें | अग्रसेनजी के 5145 वें जन्म दिवस पर कोटि कोटि प्रणाम |
डा. जे. के. गर्ग
पूर्व संयुक्त निदेशक कालेज शिक्षा जयपुर