विश्व हिन्दी दिवस से लगे चार दिवसीय मेले में जुटे देशभर के 27 साहित्यकार
कला एवं साहित्य के समर्पित संस्था ‘नाट्यवृृंद‘ द्वारा विश्व हिन्दी दिवस 10 जनवरी से आरंभ किया गया चार दिवसीय ऑनलाइन ‘राष्ट्रीय पुस्तक मेला‘ मकर सक्रांति की पूर्ववेला पर सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ। संयोजक उमेश कुमार चौरसिया ने बताया कि संस्था के आभासी पटल पर लगे इस अनूठे पुस्तक मेले में देशभर के 27 साहित्यकारों ने उनके द्वारा पढ़ी गयी विविध विधा की 30 साहित्यिक कृतियों पर समीक्षात्मक टिप्पणी करते हुए सार्थक चर्चा भी की। हास्यकवि रासबिहारी गौड़ ने आयरलैंड की लेखिका अन्ना बर्न्स के बूकर पुरस्कार प्राप्त उपन्यास ‘मिल्कमैन‘ में उकेरे गए गुलामी के दंश, डर, शोषण और खण्डित जीवनमूल्यों और रूसीलेखक निकोलोई गोगोल के विश्वप्रसिद्ध उपन्यास ‘डेड सोल्स‘ में मृतात्माओं के माध्यम से दर्शायी गयी जीवनमूल्यों की त्रासदी को बताया। कथाकार संगीता सेठी ने चित्रा मुद्गल द्वारा अवध नारायण मुद्गल के जीवन पर लिखित विनिबंध ‘तिल भर जगह नहीं‘ पर चर्चा करते हुए बताया कि पुस्तक में अवध नारायण के व्यक्तित्व को प्रभावी ढंग से उकेरा गया है। डॉ अनन्त भटनागर ने सुधा उपाध्याय की आत्मकथा ‘साथ उस कारवाँ के हम भी हैं‘ के सार को स्पष्ट किया कि बच्चों को प्यार से पाल पोसकर अच्छा इंसान बनाने के काम के अनुकूल वातावरण बनाने में ही दांपत्य जीवन की सफलता और सार्थकता है।
सादिक अली ‘ज़क़ी‘ ने अशोक सक्सेना के कहानी संग्रह ‘अब्बू‘ की दस कहानियों में उभरे मानवीय पक्ष को तथा राजकुमार जैन ‘राजन‘ ने डॉ कामना सिंह की कृति ‘बाल-विमर्श‘ में आयी बालसाहित्य की अवधारणा को स्पष्ट किया। संदीप पाण्डे ‘शिष्य‘ ने प्रत्यक्षा के उपन्यास ‘बारिशगर‘ में हादसे से उत्पन्न परिवार की मानसिक जद्दोजहद, विनीता बाड़मेरा ने अमृता प्रीतम के उपन्यास ‘रसीदी टिकट‘ के बहाने प्रेम और मित्रता की पशोपेश, डॉ पूनम पाण्डे ने नीलोत्पल मृणाल रचित उपन्यास ‘डार्क हार्स‘ में छात्रगाथा से होते हुए गाँवों के अनदेखे अनछुए सफर के अनुभव और डॉ निलीमा तिग्गा ने डॉ सूरजसिंह नेगी के उपन्यास ‘ये कैसा रिश्ता‘ में आयी पारिवारिक जटिलताओं को बताया। डॉ चेतना उपाध्याय ने क्रिस्तीन आर्तसन रचित पंछी प्यारा का परिचय दिया।
मेले में अजमेर के साहित्यकारों की नयी कृतियों पर भी चर्चा हुई। मधु खण्डेलवाल ने डॉ अखिलेश पालरिया के उपन्यास ‘सच्चे झूठे रिश्ते से‘, डॉ महिमा श्रीवास्तव ने गोपाल माथुर के कथासंग्रह ‘जहाँ ईश्वर नहीं था‘, डॉ विनिता अशित जैन ने रासबिहारी गौड़ के कविता संग्रह ‘किसी दिन लिखूंगा कोई कविता‘ के साथ डॉ बृजेश माथुर के ग़ज़ल संग्रह ‘और निखर जाऊँगा‘ व नरेन्द्र भारद्वाज की कहानी ‘आँवले का पेड़‘, गंगाधर शर्मा ने सत्यनारायण बीजावत के ग़ज़ल संग्रह ‘लम्हा लम्हा ज़िंदगी‘ तथा संदीप पाण्डे ने उमेश कुमार चौरसिया रचित बाल उपन्यास ‘हनुमान‘की लोकहर्षक कथा शैली का जिक्र किया। देवदत्त शर्मा ने डॉ सूरजसिंह नेगी के उपन्यास ‘नियति चक्र‘, प्रतिभा जोशी के कथासंग्रह ‘मनके‘, डॉ निलीमा तिग्गा के उपन्यास ‘बलिवेदी पर‘ और डॉ विनीता जैन के काव्यसंग्रह ‘गुंजार जिंदगी की‘, कालिन्द नन्दिनी शर्मा ने सुमन केशरी के नाटक ‘गांधारी‘ पर भी चर्चा की।
-उमेश कुमार चौरसिया
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