दुख का सबसे बड़ा कारण मोह–आचार्य अनुभव सागर

केकड़ी 21 फरवरी(पवन राठी)
श्री नेमिनाथ दिगंबर जैन मंदिर गौरव कॉलोनी में प्रातः कालीन धर्म सभा को संबोधित करते हुए आचार्य श्री अनुभव सागर महाराज ने कहा कि सभी प्राणियों के प्रति मोह रहित प्रेम का भाव ही सच्चा धर्म है, जन्म मरण यह सब दुख के मूल कारण नहीं किंतु हमारा मोह ही हमारे दुख का कारण बनता है। मोह उतना बुरा नहीं जितना कि लोभ बुरा है मोह की तो एक सीमा होती है परंतु लोभ तो अनंत हो जाता है, इसी लोभ और मोह के कारण परिवार समाज देश का विघटन हो रहा है । आचार्य श्री ने एक काल्पनिक उदाहरण देते हुए आपसी प्रेम को दृढ़ करने के लिए कहा कि असुरों ने ब्रह्मा जी से शिकायत की कि सुरों के सामने हमारे साथ सदैव पक्षपात होता है ब्रह्मा जी ने कहा कि पक्षपात हम नहीं आपका स्वयं का व्यवहार करता है ,उन्होंने सुरों असुरों को भोजन पर बैठाया और हाथ में सीधी लकड़ी बांध दी । हाथ में बंधी लकड़ी के कारण वे अपने हाथ से भोजन नहीं कर पाए तो असुरों को एक दूसरे के हाथ पकड़ने लगे जिससे लड़ाई होने लगी जबकि सुरों ने अपने हाथ खुद के मुहँ तक नहीं आए तो अपने बंधु को खिलाने लगे । ब्रह्मा ने कहा कि असुरों से यह की मानसिकता और व्यवहार के कारण ही तुम्हें राक्षस कहा जाता है ।
आपसी प्रेम सम्मान ही उन्नति का कारण बनता है ।जब मोह द्वेष के कारण दुर्घटनाएं होती है तो हम कुछ संवेदना प्रकट कर देते हैं, परंतु अगर स्वयं के संबंधों में कोई घटना हो जाए तो हम दुखी हो जाते हैं । हमें जीवन के मूल्य और उद्देश्य को पहचान कर इस बहुमूल्य जीवन का सदुपयोग करना चाहिए ।आचार्य श्री का मंगल विहार दोपहर 2 बजे सरवाड़ के लिए हुआ । रात्रि विश्राम सूरजपुरा ग्राम में होगा । 1 मार्च मंगलवार को आचार्य श्री का मंगल प्रवेश अजमेर नगर में में होगा जिसके लिए मुनि संघ सेवा समिति के सदस्य अजमेर से आकर आचार्य से अजमेर प्रवास हेतु निवेदन किया ।

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