हिंदू नववर्ष विक्रम संवत 2079 के आगमन के पूर्व संध्या पर सभी को तिलक लगाकर शुभकामनाएं

राजकीय विधि महाविद्यालय अजमेर में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के अध्यक्ष दिनेश चौधरी के नेतृत्व में हिंदू नववर्ष विक्रम संवत 2079 के आगमन के पूर्व संध्या पर सभी को तिलक लगाकर शुभकामनाएं देकर हिंदू नव वर्ष के वैज्ञानिक महत्व के बारे में जानकारी दी।
इकाई अध्यक्ष दिनेश चौधरी ने बताया कि आज लॉ कॉलेज में एबीवीपी की इकाई ने भारतीय नव संवत्सर विक्रम संवत 2079 और हिंदू नववर्ष कैलेंडर के महत्व के बारे में बताया और सभी के तिलक लगाकर मौली बांधकर बधाई दी। कल संवत्सरारंभ, गुडीपडवा, युगादी, चैत्र नवरात्र, वसंत ऋतु प्रारंभ दिन है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को नववर्ष मनाने के नैसर्गिक, ऐतिहासिक एवं आध्यात्मिक कारण हैं। अपने धर्म व संस्कृति के उत्सवों को मनाने का सभी में लगाव होना चाहिए। हमारे महापुरुषों व वीर योद्धाओं ने धर्म व संस्कृति की रक्षा के लिए बहुत बलिदान दिया था अभी भी समय है सभी को मिलजुलकर ऐसा प्रयास करना चाहिए जिससे विश्व में हमारी संस्कृति का एक ऐसा संदेश जाए की हम भारतीय अपनी संस्कृति को संरक्षित रखने के लिए एकजुट हैं। क्या अब भी हमें अपने हिंदू कैलेंडर के अनुसार नववर्ष को नहीं मनाना चाहिए? जिसमें पूरे ब्रह्माण्ड की रचना है। आओ इस हिंदू नववर्ष को धूमधाम से मनाएं और आपसी भाईचारे व प्रेम को विश्वभर में ले जाएं। भारतीय हिंदू कैलेंडर की गणना सूर्य और चंद्रमा के अनुसार होती है। दुनिया के तमाम कैलेंडर किसी न किसी रूप में भारतीय हिंदू कैलेंडर का ही अनुसरण करते हैं। भारतीय पंचांग और काल निर्धारण का आधार विक्रम संवत ही हैं। जिसकी शुरुआत मध्य प्रदेश की उज्जैन नगरी से हुई। यह हिंदू कैलेन्डर राजा विक्रमादित्य के शासन काल में जारी हुआ था तभी इसे विक्रम संवत के नाम से भी जाना जाता है। यही नहीं यूनानियों ने नकल कर भारत के इस हिंदू कैलेंडर को दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में फैलाया। भले ही आज दुनिया भर में अंग्रेजी कैलेंडर का प्रचलन बहुत अधिक हो गया हो लेकिन फिर भी भारतीय कलैंडर की महत्ता कम नहीं हुई। आज भी हम अपने व्रत-त्यौहार, महापुरुषों की जयंती-पुण्यतिथि, विवाह व अन्य सभी शुभ कार्यों को करने के मुहूर्त आदि भारतीय कलैंडर के अनुसार ही देखते हैं। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही वासंती नवरात्र भी प्रारंभ होते हैं। सबसे खास बात इसी दिन ही सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की थी। ताज्जुब होता है जिस भारतीय कैलेंडर ने दुनिया भर के कैलेंडर को वैज्ञानिक राह दिखाई आज हम उसे ही भूलने लग गए हैं और शुभकामनाएं देने से हिचकिचाते हैं शायद इसलिए की कहीं हम पर रूढ़ीवादी का टैग न लग जाए? जबकि अपनी संस्कृति संस्कारों का अनुसरण करना रूढ़िवादीता नहीं। यह वह बहुमूल्य धरोहर है जिससे पूरा विश्व सीख रहा है। हिन्दू नववर्ष को अगर प्रकृति के लिहाज से देखें, तो चैत्र शुक्ल पक्ष आरंभ होने के पूर्व ही प्रकृति नववर्ष आगमन का संदेश देने लगती है. प्रकृति की पुकार, दस्तक, गंध, दर्शन आदि को देखने, सुनने, समझने का प्रयास करें, तो हमें लगेगा कि प्रकृति पुकार-पुकार कर कह रही है कि नवीन बदलाव आ रहा है, नववर्ष दस्तक दे रहा है, वृक्ष अपने जीर्ण वस्त्रों पुराने पत्तों को त्याग रहे हैं, तो वायु तेज हवाओं के द्वारा सफाई अभियान भी चल रहा है. फिर वृक्ष पुष्पित होते हैं,
वसंत ऋतु का आरंभ वर्ष प्रतिपदा से ही होता है जो उल्लास, उमंग, खुशी तथा चारों तरफ पुष्पों की सुगंधि से भरी होती है। फसल पकने का प्रारंभ और नक्षत्र शुभ स्थिति में होते हैं।
इस अवसर पर इकाई उपाध्यक्ष विशेष शर्मा, प्रिया मीणा, सुरेंद्र पुरी, इकाई सचिव अमित पुरोहित,इकाई सहसचिव जयेश चौरसिया, छात्रा प्रमुख प्रियंका चौरसिया, निहारिका राठौड़, गौरांग गोयल, कमलेश प्रजापति, बंटी गुर्जर, हीरालाल मीणा, अश्विनी दाधीच, कृष्णकांत शर्मा, अनीता, रामदेव, कोमल सहित कई कार्यकर्ता और विद्यार्थी उपस्थित रहे।

भारतीय नववर्ष पर हम परस्पर एक दुसरे को नववर्ष की शुभकामनाएँ देकर अपने-अपने घरों पर भगवा पताका फहराकर घरों के द्वार आम व नीम के पत्तों की वंदनवार से सजाएँ। घरों एवं धार्मिक स्थलों की सफाई कर रंगोली तथा फूलों से सजाएँ प्रतिष्ठानों की झंडी और फरियों से सज्जा करें। वाहन रैली, कलश यात्रा, विशाल शोभा यात्राएं कवि सम्मेलन, भजनसंध्या, महाआरती, चिकित्सालय, गौशाला में सेवा, रक्तदान जैसे कार्यक्रम करने चाहिए।

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