-चिंतन ऐसा करो कि हरेक मनन करे, मनन ऐसा करो कि हरेक अमल करे
प्रेम आनंदकरचिंतन-मनन करो। खूब करो। कांग्रेस रूपी समुद्र को इतना मथो कि फिर से अमृत उगलने लगे। कांग्रेस केवल ऊपरी स्तर से ही नहीं, बल्कि निचले स्तर से भी रसातल में चली गई है। कांग्रेसियों को यह बात बहुत अजीब लगेगी, लेकिन यह पूरी तरह हकीकत है। हमारे प्रदेश राजस्थान की ऐतिहासिक नगरी उदयपुर में जब चिंतन-मनन चल रहा है तो निर्णय या सार या निचोड़ भी मेवाड़ी अंदाज में ही आना चाहिए। मेवाड़ राजस्थान की आन-बान-शान है, इसीलिए कांग्रेस के नुमाइंदों ने बहुत ही सोच-समझ कर उदयपुर में मंथन करने का निर्णय किया। वैसे यह लिखने व कहने में कोई गुरेज नहीं है कि कांग्रेस को अब अपनी रीति-नीति बदलने के साथ-साथ सोचने का दायरा भी बढ़ाना होगा। सबको साथ लेकर चलना होगा। समान नीतियां लागू करनी होंगी। युवाओं की भागीदारी बढ़ानी होगी। पुरानों को हाशिए पर ले जाने की बात तो नहीं कर सकते हैं, लेकिन उनके अनुभवों का लाभ लेते हुए युवाओं को आगे लाकर कांग्रेस में जोश पैदा किया जा सकता है। अब सवाल यह है कार्यकर्ता ही जब पार्टी की रीढ़ की हड्डी होते हैं तो फिर उनकी उपेक्षा क्यों की जाती है। यह उपेक्षा तुरंत प्रभाव से बंद करनी होगी। दागी नेताओं को सहने की बजाय घर बैठाना होगा। यदि हो सके तो नेतृत्व कुछ समय के लिए एक परिवार से हटाकर अन्य को सौंप कर देख लीजिए, हो सकता है कि इसी उपाय से कांग्रेस में जान आ जाए और फिर से विरोधी दलों को टक्कर देने के लिए महाराणा प्रताप, महाराणा सांगा, महाराणा कुम्भा, हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान जैसी शूरवीरता आ जाए। और मेवाड़ से हुंकार भरकर कांग्रेस निकले तो चारों तरफ उसका डंका बजे। किंतु यह सब तब होगा, जब शीर्ष पर बैठे कांग्रेसी नेता कुर्सी और मलाई का मोह छोड़ें। ऐसा हो सकता है या नहीं, यह भविष्य में ही पता चल सकता है।