प्रेम आनंदकरयह कहावत बरसों पुरानी है, यदि कोई व्यक्ति कहीं हारता है, तो केवल अपने घर में ही हारता है। बाकी संसार और सारे गढ़ जीतने की उसमें अथाह ताकत होती है। इसी सिक्के का दूसरा पहलू, यह भी सही है कि यदि कोई व्यक्ति घरेलू कलह से दुखी है तो वह बाहर आगे भी नहीं बढ़ सकता है। यानी परिवार में सुख-चैन और शांति नहीं है, तो ना व्यक्ति ढंग से नौकरी कर सकता है, ना व्यापार कर सकता है और ना ही अन्य कोई रोजगार कर सकता है। नतीजतन, घर में हमेशा कलह और आर्थिक तंगी बनी रहती है। हर इंसान और परिवार की स्थिति- परिस्थिति अलग होती है। किसी घर में धन की बरसात होती है और ऐशोआराम की सभी सुविधाएं उपलब्ध होती हैं, तो किसी घर में मुफलिसी के हालात होते हैं। किंतु किसी के सामने रोने, परिवार में झगड़ा करने और घर की बात सड़क पर लाने से क्या फायदा। यह जमाना बहुत दोगला है। पहले दिखावटी अपनापन दिखा कर सारी बातें जानेगा और बाद में हमारा ही मखौल उड़ाएगा। लोगों के पास जले पर लगाने के लिए भले ही हिम्मत बंधाने का मलहम नहीं हो, लेकिन छिड़कने के लिए नमक जरूर होता है। इसलिए घर में चाहे हालात कैसे भी हों, चाहे पिता-पुत्र, मां-बेटे, मां-बेटी, सास-बहू, पति-पत्नी में अनबन हो या बिल्कुल भी पटरी नहीं बैठ रही हो, तो भी घर की कोई बात बाहर ना तो लाएं और ना ही आने दें। क्योंकि घर के किसी भी विवाद या लड़ाई-झगड़े का निपटारा आपको ही करना है, कोई दूसरा व्यक्ति समाधान कर भी नहीं सकता। घर के किसी भी मसले में किसी भी बाहरी व्यक्ति को पंचायती करने का मौका ही नहीं दें। यदि कोई व्यक्ति किसी भी वजह से हमारे घर के मसलों में पंचायती करने लग गया, तो यकीन मानिए वो हमें एक नहीं रहने देगा और समय-समय पर हमारी कमजोरी का फायदा उठाने की कोशिश करेगा। भगवान किसी के साथ ऐसी कोई नौबत नहीं आने दे, फिर भी किसी कारणवश भूखे-प्यासे रहना पड़े, तो भी किसी को नहीं बताएं। यदि बता भी दिया तो कोई कुछ समय हमें भोजन करा देगा, लेकिन हजार बार हम पर अहसान जताता रहेगा। अपनी मेहनत और नेकनीयती पर भरोसा रखें। समय एक जैसा नहीं रहता। समय बड़ा बलवान होता है। अपनी ताकत को खुद पहचानें, परिवार के साथ रहें। विपरीत परिस्थितियों में भी परिवार के किसी सदस्य का साथ नहीं छोड़ें, उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहें। हो सकता है भाई का साथ बहन का बेड़ा पार लगा दे और बहन का साथ भाई की हर मुसीबतें दूर कर दे। परिवार की एकता बनाए रखें। “बंद बुहारी लाख की, बिखर गई तो खाक की”, इसे हमेशा ध्यान में रखें। यकीन मानिए यदि परिवार में एकता है, तो किसी बाहरी व्यक्ति की हिम्मत नहीं, जो आपकी तरफ आंख उठाकर देख ले। परिवार में ही बच्चों को दादा-दादी, नाना-नानी और अपनों का प्यार मिल सकता है। यदि नौकरी की वजह से बाहर जाकर अलग रहना पड़े तो उसमें कोई हर्ज नहीं है। लेकिन एक ही शहर में परिवार से अलग रहने की मत सोचिए। माना कि शादी होने के बाद आप परिवार की अलग यूनिट बन गए, लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं है कि आप माता-पिता, भाई-बहन, दादा-दादी को छोड़कर अलग हो जाएं। यकीन मानिए, यदि आपके पैर में कांटा भी चुभता है तो पहला दर्द परिवार को ही होगा। तो आइए, विश्व परिवार दिवस पर हम अपने परिवार के साथ ही रहने का संकल्प लें।