श्री जैन श्वेतरम्बर तपागच्छ संघ अंतर्गत पुष्कर रोड़ स्थित विजय कलापूर्ण सूरि जैन आराधना भवन प्रांगण में मुनीश्वर विजय महाराज ने भगवान महावीर चारित्र बतलाते हुए कहा – प्रभु के पास ग्यारह गणधरी अपनी-अपनी जिज्ञासा लेकर आए, जिसका प्रभु ने समाधान किया यह समाधान षट्बोल के रूप में विख्यात है, आत्मा है – आत्मा नित्य है, आत्मा कर्म की कर्ता है – आत्मा कर्म की भोक्ता है। आत्मा का मोक्ष शक्य है एवं आत्मा परलोकगामि है, यह षट्बोल से भगवान ने गणधरों को समाधान दिया।
इसी विषय में आगे गुरूओं की परंपरा बताते हुए मुनिश्री ने कहा कि हमारे सारे पूर्वजों, धर्म के संरक्षक थे, धर्म के संवर्धक थे एवं धर्म के संवाहक थे।
मंत्री रिखबचंद ने बतलाया कल संवत्सरिक पर्व है इसमें श्रावक-श्राविका-तपस्चर्या, बारसा सूत्र का वाचन सुनकर सांय प्रतिकमण कर 84 लाख जीव योनियों से क्षमायाचना मिच्छा मि दुक्कड़म करेंगे।
रिखबचंद सचेती
मंत्री