*श्रद्धा, भक्ति, आस्था के संगम के साथ निकाली रथयात्रा*
उमड़ा जैन श्रद्धालुओं का जनसैलाब,गूंजे जय जय महावीर के जयकारे
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केकड़ी 3 अप्रैल(पवन राठी )
शहर के देवगांव गेट के समीप विद्यासागर मार्ग पर स्थित चंद्रप्रभु जैन चैत्यालय में सोमवार को जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर के जन्म कल्याणक महोत्सव का जैन धर्मावलंबियों में उत्साह छाया रहा। इस मौके पर शहर में जिनेन्द्र देव को रथो में विराजमान कर अतिभव्य रथयात्रा जुलूस निकाला गया। रथों को युवा वर्ग अत्यंत जोश और बड़े ही हर्षोल्लास से खींच रहे थे। रथयात्रा जुलूस में दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों आम्नाय के सैंकड़ों जैन श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा।
भगवान महावीर जन्म कल्याणक महोत्सव का आगाज सोमवार को अलसुबह प्रभातफेरी निकाल कर किया गया।
कार्यक्रम स्थल चद्रप्रभु चैत्यालय में प्रातः झंडारोहण किया गया।इसी दौरान उपस्थित लगभग साठ वरिष्ठजनों का सम्मान किया गया। सम्मानित वरिष्ठजनों ने ही सामुहिक रूप में झंडारोहण किया। इस दौरान चंद्रप्रभु पाठशाला के जयधोष बैण्ड ने मधुर धुन बजाई। झंडारोहण के पश्चात झंडा गीत गाया गया।
इसके पश्चात रथयात्रा जुलूस निकाला गया।
भगवान महावीर जन्म कल्याणक महोत्सव में श्री जी के मंगल नगर परिभ्रमण के दौरान पूरी रथयात्रा जुलूस में परम पूज्य मुनिराज श्री सिद्वेशचंद्र सागर जी महाराज ससंध एवं साध्वी श्री शुभदर्शना श्री जी ससंध शामिल रहे।
रथयात्रा चंद्रप्रभु जैन चैत्यालय से प्रारंभ होकर विद्यासागर मार्ग होते हुए धंटाधर,सदर बाजार, गणेश प्याऊ, खिड़की गेट,पुराना अस्पताल मार्ग, अजमेरी गेट, धंटाधर होते हुए वापिसी चंद्रप्रभु जैन चैत्यालय पहुंच संपन्न हुई। रथयात्रा मार्ग पर श्रद्धालुओं ने जगह जगह भगवान महावीर की आगवानी करते हुए आरती उतारी और श्रीफल अर्पण किये। अतिहर्षित श्रद्धालु जुलूस में त्रिशला नंदन वीर की – जय बोलो महावीर की, भगवान महावीर का दिव्य संदेश – जीओ और जीने दो, अहिंसा परमो धर्म की जय हो – जैन धर्म की जय हो, आदि जयकारे लगाते हुए चल रहे थे।
रथयात्रा जुलूस में दिगम्बर और श्वेताम्बर जैन समाज के अध्यक्ष,सभी मंदिरों और पंथों के अध्यक्ष, सभी मंडल, समूहों संगठनों के अध्यक्ष कार्यकारिणी सदस्यों सहित सैकड़ों सदस्य गण मौजूद रहे।
*प्राचीन रथ सहित अन्य रहे आकर्षण का केंद्र*
रथ यात्रा में अति प्राचीन दो रथ स्वर्ण मंडित रथ एवं काष्ठ के रथ में सिंहासन पर विराजमान श्री जिनेन्द्र देव की प्रतिमा, द्वय गजों से सुशोभित रथ में सिंहासन पर विराजमान जिन प्रतिमा,
दो पालकियों में विराजमान श्री जिन प्रतिमाएं, दो बग्गियां,
अष्ट प्रातिहार्य और अष्ट मंगल द्रव्य, रत्नत्रय के प्रतीक, अष्ट कर्म, माता के सोलह सपने, अहिंसक पद्वति से निर्मित हथकरघा सामग्री, आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के पांच प्रमुख सिद्धांत,बारह देवों का चित्रण सहित समाज के अन्य कई महिला एवं बालिकाओं के संगठनों ने विभिन्न तरह की वेशभूषा में सुसज्जित कई तरह की रचनाएं प्रस्तुत की। जो कि जुलूस में विशेष आकर्षण के कारण अलग ही छटा बिखेर रही थी। जुलूस प्रारंभ में अहिंसा परमो धर्म का जैन ध्वज और दो धोडो पर जैन पताकाओ को लिए बालक सवार थे।
चंद्रप्रभु चैत्यालय पाठशाला, आदिनाथ मंदिर पाठशाला के नन्हे मुन्ने बच्चों के जयधोष बैण्ड, महिला बैण्ड जय मां विशुद्ध वर्धिनी जयधोष एवं विजयमति मां जयधोष बैण्डो द्वारा वाद्य यंत्रों पर तालमेल सहित सुमधुर धुने बजा रहे थे।
*संबोधित किया*
रथयात्रा जुलूस वापिसी चंद्रप्रभु चैत्यालय आने पर धर्मसभा में परिवर्तित हो गया। जहां परम पूज्य मुनिराज श्री….. जी ने संबोधित करते हुए कहा कि भगवान सभी जीवो का कल्याण करते हैं। भगवान विधाता है,बुद्ध है।हमें हमेशा हमारी आत्मा के गुणों की रक्षा करनी चाहिए,गुणों की ही पूजा होती है। उन्होंने कहा कि सभी जनों ने जो भगवान महावीर के जन्म कल्याणक महोत्सव को दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों आम्नाय ने एक साथ मनाने में परिश्रम किया है,उनकी खूब खूब अनुमोदना।आगे भी इसी प्रकार सभी एकता का परिचय देवे।सभी के कल्याण के लिए मांगलिक वाचन किया।
सभा को साध्वी श्री शुभदर्शना श्री जी ने संबोधित करते हुए कहा कि इस मनुष्य भव को पाकर हमें समीचीन सच्चा चिंतन करते हुए आगे बढ़ना है आगे बढ़ते हुए हमारी यह जो निगोद से लेकर मोक्ष जाने तक की परमात्मा बनने की अंतिम यात्रा है,हम मार्ग में ही है बस यात्रा लम्बी ही सही हमे वह तय करनी ही है।अपने जीवन के उत्थान के लिए अपने आपको जगाना है। और अनंत सुखों को प्राप्त करना है।
उन्होंने अति हर्षित भावों से कई मुक्तक, छंद और भजन सुनाये। पूर्व में किये केकड़ी चातुर्मास के प्रसंग सुनायेे। उन्होंने कहा कि महावीर का मुख्य संदेश है जीओ और जीने दो — रहो और रहने दो। महावीर जन्म कल्याणक महोत्सव के प्रसंग में सभी के समन्वय को अनुकरणीय बताया।
*इन्हें मिला लाभ*
श्री जिनेन्द्र भगवान के दोनों प्राचीन रथो को चलाने में सारथी बनने का सौभाग्य प्रमोद कुमार प्रेमचंद बाकलीवाल परिवार एवं धीसालाल रमेश चंद अनिल कुमार आकाश कुमार बंसल परिवार को मिला। दो बग्गियो में सारथी बनने का सौभाग्य क्रमशः महावीर प्रसाद रवि कुमार सौरभ राय कुमार सेठी परिवार एवं उदय सिंह अभय कुमार संचेती परिवार को मिला।