जैन इतिहास में ऐसे श्रावक हुए हैं जिन्होंने अपने प्राणों से ऊपर जीवदया को महत्व दिया जाता रहा हैं- साध्वी धैर्यप्रभा

ब्यावर। बिरद भवन में चल रहे चातुर्मासिक प्रवचन में महासाध्वी धैर्यप्रभा ने बताया कि कोई व्यक्ति तब ही याचना करता है जब उसके कोई अभाव हो, या तब याचना करता हैं जब सामने वाला व्यक्ति का कोई प्रभाव हो या व्यक्ति तब याचना करता है जब उसका स्वभाव हो। महासती ने घार के जीरन सेठ का द्रष्टान्त देते हुए बताया की किस प्रकार वो बकरों की रक्षा हेतु किसी भी सजा और जुर्माने को अपने ऊपर लेने के लिए तैयार हो गये पर जीव रक्षा के अपने प्रण से पीछे नही आये। महासती धृतिप्रभा, धीर प्रभा और धार्मिक प्रभा ने अपनी सुमधुर आवाज से जब कैसे कोई किसी जीव को मारकर खाता हैं, हमसे तो मरना किसी का न देखा जाता हैं। गीतिका का वाचन किया तो उपस्थित धर्मसभा अपने आप को धन्य मानने लगी कि उन्हें ऐसे धर्म के प्रति सुदृढ़ एवं जिनशासन का मान बढाने वाले श्रावकों के कथानक सुनकर अपने आप को धन्य माना। कल से सप्त दिवसीय भक्तामर स्त्रोत की महिमा युक्त प्रवचन दिए जायेंगे, जिसमे हर गाथा का अर्थ एवं उससे जुड़े दृष्टांत युक्त प्रवचन दिया जाएगा। जिसे सुनने के भाव सभी को रखना चाहिए।

जयमल सम्प्रदाय के आचार्य प्रवर शुभचन्द्र जी महाराज साहब के 84वें जन्मजयंती के उपलक्ष्य में उपस्थित धर्मसभा ने उनका गुणानुवाद किया। जयमल जैन श्रावक संघ के मंत्री दुलीचन्द मकाना ने गीत के माध्यम से अपने विचार रखे। उन्होंने बताया कि दोपहर में नवकार महामंत्र का जाप किया गया।
चातुर्मास में छोटी बड़ी कई तपस्या गतिमान हैं। कल खुश्बू छल्लानी धर्मपत्नी राजेश छल्लानी के मासखमन / 30 उपवास की तपस्या के उपलक्ष्य में छल्लानी परिवार द्वारा एक वरघोड़ा निकाला जाएगा। तपस्या के उपलक्ष्य में चेन्नई से आये माणक छल्लानी ने धर्मसभा के समक्ष अपने भाव रखे ।

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श्री जैन दिवाकर संघ

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