*सुख और दुख की परिस्थितियों में समभाव की साधना करें: गुरुदेव श्री सौम्यदर्शन मुनि*

गुरुदेव श्री सौम्यदर्शन मुनि जी महारासा में फरमाया कि 24 तीर्थंकर भगवान में आठवें तीर्थंकर भगवान चंद्रप्रभ जी थे। उनके नाम से ही बड़ी प्यारी प्रेरणा मिलती है कि, जैसे सूर्य की गर्मी कितनी भी तेज क्यों न पड़े चंद्रमा उस गर्मी से तपता नहीं है। वह तो शीतल बना रहता है। इसी प्रकार जीवन में कैसी भी विपरीत से विपरीत परिस्थिति भी क्यों ना आ जाए, हमें भी अपनी शीतलता को खोना नहीं चाहिए। यहां शीतलता से तात्पर्य है हमारे क्षमा के गुण से है। हमे भी अपराधी के अपराध को क्षमा करने का गुण होना चाहिए। उदार एवं बड़े दिलवाला व्यक्ति ही क्षमा कर सकता है। जहां पर क्षमा होगी वहां पर क्रोध नहीं हो सकता, और जहां पर क्रोध होगा वहां पर क्षमा नहीं हो सकती ।
आज के भौतिकतावादी युग में जहां आत्महत्या, तनाव और अशांति की स्थितिया बड़ी संख्या में सामने आ रही है, उसके पीछे एक कारण यह भी है कि उसमें स्वार्थ व विचारों में संकीर्णता बहुत बढ़ गई है। अपने अपराधों व गलतियों के लिए क्षमा चाहने वाला व्यक्ति, आज दूसरों की गलतियां और अपराधों को क्षमा नहीं कर पाता है। तो जरूरत है हम अपने आवेशों पर नियंत्रण रखते हुए चंद्र नाम से शीतलता के गुण को स्वीकार करें ।
चंद्रप्रभ भगवान जब माता के गर्भ में पधारे, तब उनकी माता को चंद्रमा की रोशनी का पान करने का दोहद उत्पन्न हुआ एवं बालक के जन्म के साथ शरीर से चंद्रमा के समान रोशनी निकलने के कारण इनका गुण निस्पन्न नाम चंद्रप्रभ रखा गया।
पूर्व जन्म में राजा पदम के रूप में थे, बाद में संयम जीवन अंगीकार करने के बाद तीर्थंकर पद प्राप्ति के 20 बोलो की आराधना करके तीर्थंकर गोत्र का उपार्जन किया ।
भगवान चंद्रप्रभ जी का चिह्न भी चंद्रमा का ही है, जो उतार और चढ़ाव को दर्शाता है। जैसे चंद्रमा दूज से पूनम तक और पूनम से अमावस्या तक बढ़ता और घटता है, इस प्रकार जीवन में भी उतार और चढ़ाव आते रहते हैं ।हमें उन उतार और चढ़ाव, यानि सुख और दुख की स्थितियों में समभाव को धारण करना चाहिए। सुख का वेलकम करें तो दुख का मोस्ट वेलकम करने का प्रयास करें ।क्योंकि यहां सुख स्थाई नहीं है तो दुख भी स्थाई नहीं है ।अतः आज जो भगवान चंद्रप्रभ के जीवन से प्यारी सी प्रेरणा हमें प्राप्त हुई इनको हम जीवन में उतारने का प्रयास करेंगे तो सर्वत्र आनंद ही आनंद होगा।
धर्म सभा को पूज्य श्री विरागदर्शन जी महारासा ने भी संबोधित किया
धर्म सभा का संचालन बलवीर पीपाड़ा ने किया।
पदमचंद जैन
*मनीष पाटनी,अजमेर*

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