गुरुदेव श्री सौम्यदर्शन मुनि जी महारासा ने फरमाया कि 24 तीर्थंकर भगवान में 11वें भगवान श्री श्रेयांश नाथ जी है ,श्रेयांश का एक अर्थ है कल्याण करने वाला। श्रेयाशनाथ भगवान संसार के चराचर जीवों का कल्याण करने वाले थे। कल्याण भी दो तरह का होता है स्व यानी स्वयं का कल्याण पर यानी दूसरों का कल्याण। हम अपने जीवन को देखने का प्रयास करें कि हमने स्व और पर का कल्याण कितना किया है। एक सामयिक करके आप मान लो कि हमारा कल्याण हो जाएगा, मगर वह तो तब हो सकता है जब पूर्णिया श्रावक की तरह, मन वचन और काया के क्लेशो को हटाकर पूर्ण रूप से शुद्ध आपकी सामायिक हो। उसके लिए तो आपको आपकी दैनिक दिनचर्या को ही बदलना पड़ेगा ।आप दूसरों के कल्याण की भावना तो रखते हैं, मगर कोई आकर आपसे प्रश्न करें कि मुझे दीक्षा लेनी चाहिए या नहीं ?तब उस समय आपका जवाब क्या होगा। या आपके घर का ही कोई सदस्य दीक्षा लेना चाहे तो उस समय आपकी भावना क्या रहेगी।
जहां व्यक्ति का स्वार्थ आगे आ जाता है उस समय वह स्व और पर सारी कल्याण की बातों को गौण कर देता है ।लेकिन भगवान का तो नाम व काम, दोनों ही कल्याणकारी थे ।श्रेयांश भगवान शब्द का दूसरा अर्थ है श्रेष्ठ कार्य करने वाला ।श्रेष्ठ कार्य किसे कहा जाएगा।जिस कार्य को करने से पुण्य ज्यादा हो और पाप का बंध कम, उस कार्य को श्रेष्ठ कार्य कहा जाता है। किसी कार्य से पाप ज्यादा हो तो उसे श्रेष्ठ कार्य नहीं माना जाएगा,, जिस कार्य को करने की या आपके सहयोग की अगर सामने वाले के मन में शांति पहुंचे तो मानना कि यह मेरे द्वारा कुछ श्रेष्ठ कार्य हुआ है। क्योंकि दूसरों को शांति पहुंचाने में हमारे स्वयं के मन में भी शांति आती है अतः इस छोटे से जीवन के अंदर हमारे से कुछ अच्छा हो पाए ।हमको यह प्यारी सी प्रेरणा भगवान श्रेयांशनाथ जी का प्यारा सा नाम दे रहा है ।इस प्रेरणा को जीवन में उतार कर जीवन जीने का प्रयास करेंगे, तो आनंद की स्थितियां निर्मित होगी ।
कल 28 तारीख को भिक्षु दया एवं चउमुखी भक्तांबर साधना के कार्यक्रम में ज्यादा से ज्यादा संख्या में उपस्थित होने की पावन प्रेरणा प्रदान की ।
धर्म सभा को पूज्य श्री विरागदर्शन जी महारासा ने भी संबोधित किया।
धर्म सभा का संचालन बलवीर पीपाड़ा ने किया।
पदम चंद जैन