*यतना धर्म को जीवन में स्वीकार करके ही पापो से बचाव संभव गुरुदेव श्री प्रियदर्शन मुनि*

संघनायक गुरुदेव श्री प्रियदर्शन मुनि जी महारासा ने फरमाया कि बड़े सौभाग्य से भगवान की जीवन गाथा को सुन रहे हैं कि वर्धमान पुर के पास शुलपाणी यश के मंदिर के पास लगे हड्डियो के ढेर के पास भगवान पहुंच गए।लोगों ने मना किया कि यहा मत ठहरो, यहां ठहरने वालों को शुलपाणी यक्ष तड़पा तड़पा कर मार देता है। मगर भगवान सबको आश्वस्त करके वहीं ठहर जाते हैं।रात्रि में शूलपाणी यक्ष सर्प,बिच्छू, सांप, हाथी व शेर बनकर भगवान को घोर कष्ट देता है।मगर प्रभु उससे अविचलित रहते हैं। हार कर भगवान के रूप को एकटक निहारता है तो लगता है कि यह साधारण पुरुष नहीं है।तब प्रभु उसे शांत व समाधि में रहने का संदेश दिया। तब उसने कहा कि इन गांव वालों ने जब पूर्व भव में बैल के रूप में था, तो मेरे साथ बहुत दुर्व्यवहार किया। उसी का आक्रोश आज दिन तक भी मेरे दिल में है। भगवान से प्रभावित होकर वह भगवान का भक्त बन जाता है। गांव वाले व शूलपाणी यक्ष ने आपस में क्षमा याचना की।
उत्पल नेमेतिक के स्वप्न का फल के विषय में पूछने पर भगवान ने फरमाया कि मैं दो प्रकार के धर्म आगार धर्म व अनगार धर्म का निरूपण करूंगा।
चंदकौशिक सर्प की बांबी पर पहुंचकर प्रभु ने उसका उद्धार किया। लोगों को उसके आतंक से मुक्त कराया।प्रभु जहां भी पधारते थे वहा शांति और आनंद छा जाता।
गुरुदेव श्री सौम्यदर्शन मुनि
जी महारासा ने फरमाया कि दसवेकालिक सूत्र के चौथे अध्ययन में भगवान ने 6 काय के जीवो की हिंसा से बचने का संदेश दिया।
पत्थर आदि को खोदना, फोड़ना, पानी,बिजली का अनावश्यक उपयोग, वनस्पति का अकारण छेदन,भेदन, और इनसे होने वाली धर्म की हिंसा को एक श्रावक को भी बचने का प्रयास करना चाहिए।
साधु पांच महाव्रत व रात्रि भोजन के त्याग की प्रतिज्ञा को स्वीकार करता है। अहिंसा महाव्रत का प्रतीक रजोहरण,सत्य महाव्रत का प्रतीक मुहपत्ती, अचोर्य महाव्रत का प्रतीक झोली, ब्रह्मचार्य महाव्रत का प्रतीक चोल पट्टा व अपरिग्रह महाव्रत के प्रतिक के रूप में अल्प उपधि व पात्र साधु रखता है।
इस अध्ययन में साधक को यतना धर्म का पालन करने का संकेत किया है। जो तप रूपी गुणों से प्रधान हो, सरल हो, क्षमावान हो,जो संयमि हो और सहनशील हो, उनको सुगती सुलभ बताई है।
इसमें बताया है कि जो जीव को जान लेता है वह अजीव को जान लेता है, फिर क्रमशः पुण्य, पाप, बंध,मोक्ष आदि को जानकार भोगों से निवृत्त होकर संयम व संवर धर्म को आचरित कर जीव मोक्ष को प्राप्त कर लेता है।
पहले ज्ञान प्राप्त कर, फिर दया पालन का संदेश देते हुए, प्रभु ने सुनकर अपने कल्याण को जानने की पावन प्रेरणा प्रदान की है। इस जिनवाणी को सुनकर हमें इसके अनुसार चलने का प्रयास करना चाहिए।
धर्म सभा का संचालन हंसराज नाबेडा ने किया।
पदमचंद जैन

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