मित्तल हॉस्पिटल में समय से पूर्व जन्मे शिशुओं की जीवित शेष दर 97 प्रतिशत

नियोनेटोलॉजिस्ट, गायनेकोलॉजिस्ट एवं शिशु रोग विशेषज्ञों की टीम भावना का है परिणाम
राजस्थान ही नहीं मध्यप्रदेश, गुड़गांव से भी सुरक्षित डिलीवरी के लिए आ रही हैं प्रसूताएं

अजमेर, 22 जून()। समय से पूर्व जन्मे अथवा जन्म के समय कम वजन वाले शिशुओं के लिए मित्तल हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर, अजमेर संभाग का सबसे सुरक्षित उपचार केंद्र बन गया है। मित्तल हॉस्पिटल में ऐसे शिशुओं की जीवित शेष दर 97 प्रतिशत है। यही कारण है कि ना सिर्फ राजस्थान के विभिन्न जिलों से बल्कि मध्यप्रदेश एवं गुडगांव से भी प्रसूताएं सुरक्षित डिलीवरी के लिए अजमेर आ रही हैं।
मित्तल हॉस्पिटल के गायनोकोलॉजिस्ट डॉ प्रीतम कोठारी, डॉ अंजू तोषनीवाल, डॉ सुमति माथुर, डॉ अदिति सिंह राव, डॉ स्मिता चपलोत, नियोनेटोलॉजिस्ट डॉ रोमेश गौतम, शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ प्रशांत माथुर, सुनील गोयल, डॉ प्रीति गर्ग जैसे दक्ष और अनुभवी चिकित्सकों की उपलब्धता तथा मेटरनिटी एवं एनआईसीयू नर्सिंग स्टाफ की नवजात के सुरक्षित जीवन के प्रति संकल्पित टीम भावना का यह परिणाम है कि मित्तल हॉस्पिटल प्रसूताओं और उनके अभिभावकों की उम्मीद पर खरा साबित हो रहा है। अजमेर संभाग में एक मात्र मित्तल हॉस्पिटल ही है जहां प्री टर्म डिलीवरी के साथ लो बर्थ वेट (एलबीडब्ल्यू) नवजात का जीवन सुरक्षित बनाए रखने के लिए जरूरी सभी सुपरस्पेशियलिटी सेवाएं और साधन उपलब्ध हैं साथ ही जरूरत पड़ने पर नवजात की सर्जरी सुविधा भी यहां उपलब्ध कराई जा रही है।
नियोनेटोलॉजिस्ट डॉ रोमेश गौतम ने बताया कि हाल ही में शिक्षा विभाग से सेवानिवृत एक अध्यापक के घर नवजात की किलकारी गूंजी तो उसकी खुशियां ऐसी थीं कि बयां करते शब्द ही मौन हो जाएं। शिक्षक ने मित्तल हॉस्पिटल के चिकित्सकों और एनआईसीयू स्टाफ को मुक्त कण्ठ से दुआएं दीं। अध्यापक वर्तमान में 61 बरस के हैं विवाह के बाद उनकी एक संतान हुई किन्तु वह जीवित नहीं रह सकी। विगत 30 सालों से फिर से संतान पाने के लिए दुआएं करते रहे। ईश्वर ने इस उम्र में झोली भरी तो बच्चा मात्र छह माह और एक सप्ताह यानी 25 सप्ताह में ही मां की कोख से बाहर आ गया। जन्म पर बच्चे का वजन सिर्फ आठ सौ ग्राम था। इस नाजुक अवस्था में नवजात को जन्म के बाद पहले 9 दिनों तक वेंटिलेटर पर रखना पड़ा। स्थिति में थोड़ा सुधार दिखने पर बाद के 38 दिन सीपेप पर रखा गया। नवजात की स्थिति ऐसी रही कि वह बीच बीच में सांस रोक लेता था। हॉस्पिटल के एनआईसीयू में मौजूद 24 घंटे एमडी स्तर के शिशु रोग विशेषज्ञ एवं अनुभवी नर्सिंग स्टाफ ने नवजात की निरंतर देखरेख की 85 दिन तक नवजात को एनआईसीयू में संक्रमण रहित वातावरण में रखा गया। नवजात को टोटल पेरेंटल न्यूट्रेशन उपलब्ध कराया गया। आखिर नवजात को जब हॉस्पिटल से छुट्टी दी गई तो सभी की आंखों में खुशी की चमक थी और होठों पर शिशु की लम्बी उम्र के लिए दुआएं।
उल्लेखनीय है कि हाल ही में मित्तल हॉस्पिटल में प्री टर्म डिलीवरी के दौरान एक प्रसूता के जुड़वा बच्चे हुए। इनमें एक नवजात के जन्म पर आंत पेट से बाहर थी। इस नवजात की तत्काल सर्जरी किया जाना बेहद जरूरी था। हॉस्पिटल के चिकित्सकों ने पांच घंटों में नवजात की सर्जरी कर आंतों को पेट के अन्दर व्यवस्थित किया। इस नवजात की सर्जरी के लिए नियोनेटो सर्जन डॉ देवेन्द्र सोनी को जयपुर से बुलाया गया। इस बीच नवजात की आंत को सूखने से बचाए रखने के लिए जरूरी उपाय किए गए।
दरअसल यहां महत्वपूर्ण है कि नवजात शिशु को टोटल पेरेंटल न्यूट्रेशन पर रखा जाता है। इस पद्धति से नवजात का वजन बढ़ता है। इसके साथ ही नवजात को संक्रमण रहित वातावरण में चौबीसों घंटे निगरानी में रखा जाता है। मित्तल हॉस्पिटल के एनआईसीयू में तैनात स्टाफ एक ही स्थान पर 15 साल से कार्यरत हैं। उनकी कुशलता और अनुभव ही है कि उनके हाथों में बच्चा संरक्षित रहता है। यह बात अलग है कि इसमें अभिभावकों का भी पूरा सहयोग मिलता है। नवजात को वेंटिलेटर व बाइपेप पर रखे जाने के दौरान एक चिकित्सक और नर्सिंग स्टाफ के धैर्य व देखरेख की मेहनत और संकल्प को समझा जा सकता है। स्टाफ स्वर्णलता एंड्रयूज, टीकम चंद भारद्वाज, प्रेमलता, हिमांशु एवं टीम का महत्वपूर्ण योगदान हर बच्चे के साथ रहता है।
प्री टर्म डिलीवरी में शिशु का बचाना ही मकसद नहीं होता…….
ध्यान देने वाली बात है कि प्री टर्म डिलीवरी में शिशु को बचाना ही मकसद नहीं होता, बच्चा जीवित रहने के बाद भी अच्छे से बोल सके, समझ सके, चल सके, खा—पी सके, उठ—बैठ सके यानी उसके सारे अंग सही से काम करने लगे इस सब को भी जांचा जाता है। डिस्चार्ज के समय खास तौर पर नवजात के दिमाग की सोनोग्राफी कराकर ही माता—पिता की गोद में बच्चा सौंपा जाता है।
प्रसूता और नवजात को मिलता है उपयुक्त वातावरण…….
निदेशक डॉ दिलीप मित्तल ने बताया कि प्रीमेच्योर शिशुओं को संक्रमण रहित वार्म वातावरण में रखना, नवजात पर निरंतर नजर बनाए रखना, बीमारी को पकड़ कर उसका तुरंत उपचार शुरू करना, शिशु के वजन और विकास में अपेक्षित वृद्धि पर बराबर निगरानी रखना प्रमुख होता है। मित्तल हॉस्पिटल में संसाधनों की दृष्टि से नवजात शिशुओं के लिए आधुनिक उपकरण उपलब्ध हैं, जिससे नवजात शिशु के श्वास, आँख, ब्रेन, हार्ट, कान आदि से संबंधित किसी भी परेशानी की जाँच व उपचार तुरंत संभव हो पाता है। उन्होंने मित्तल हॉस्पिटल में प्रीमैच्योर शिशुओं के उपचार में नए आयाम स्थापित किए जाने का श्रेय चिकित्सकों व स्टाफ की टीम भावना को देते हुए सभी को बधाई दी।

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