
अजमेर । शहर कांग्रेस अध्यक्ष विजय जैन ने बयान जारी कर कहा कि देश की बेटी को आतंकी की बहन बताने वाले मंत्री पर अब तक भाजपा या उसकी सरकार की खामोशी क्यों? उनका आरोप था कि क्या भाजपा अपने ही एजेंडे से पीछे हट रही है या उसे अब सेना का पराक्रम अपनी विचारधारा के आगे बौना लगने लगा है।
शहर कांग्रेस प्रवक्ता मुजफ्फर भारती ने कांग्रेस अध्यक्ष विजय जैन का बयान प्रसारित करते हुए कहा कि अगर राजनीति में बेशर्मी की कोई सीमा होती, तो विजय शाह उसे लांघ चुके हैं। और अगर भाजपा में नैतिकता बची होती, तो अब तक उन्हें पद से बर्खास्त किया जा चुका होता। लेकिन अफसोस, दोनों ही मामले में देश ने एक शर्मनाक चुप्पी देखी है।
उन्होंने आरोप लगाया कि मध्यप्रदेश सरकार के मंत्री विजय शाह ने भारतीय सेना की अफसर कर्नल सोफिया कुरैशी को “आतंकवादी की बहन” कहने का दुस्साहस किया। और ये सिर्फ एक ज़हरीला बयान नहीं था, ये एक सोची-समझी कोशिश थी देश की एकता, सेना के सम्मान और भारत के सेक्युलर मूल्यों पर हमला करने की। और ये हमला कहीं बाहर से नहीं आया—बल्कि देश की सरकार के अंदर बैठा एक मंत्री कर रहा है।
जैन ने कहा कि विजय शाह का चेहरा भाजपा के उस असली चरित्र को उजागर करता है, जो सत्ता के नशे में जाति और मज़हब का ज़हर फैलाने से पीछे नहीं हटता। सोचिए, एक मुस्लिम महिला अफसर जो पाकिस्तान के खिलाफ सेना का चेहरा बनकर खड़ी होती है, उसे शाह जैसे नेता किस नजर से देखते हैं? यही है भाजपा की तथाकथित ‘बेटी बचाओ’ की असलियत?
उन्होंने भाजपा से सवाल करते हुए कहा कि अब सवाल भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से है—नरेंद्र मोदी, अमित शाह और जेपी नड्डा से—क्या विजय शाह पर कार्रवाई इसलिए नहीं हो रही क्योंकि वो आदिवासी चेहरा हैं? क्या पार्टी की गद्दी बचाने के लिए देश की बहन का अपमान सह लिया जाएगा?
जबकि माननीय उच्च न्यायालय ने साफ कहा कि यह भाषा “गटर जैसी” है। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया। फिर भाजपा किस बात का इंतजार कर रही है? क्या महिला आयोग की चेतावनी, विपक्ष का आक्रोश और जनता का गुस्सा भी अब बेअसर हो गया?
भाजपा को ये समझ लेना चाहिए कि अगर वो शाह जैसे नेताओं की बेशर्मी पर चुप रही, तो वो अपना नैतिक आधार खुद खो देगी। वोटबैंक से बड़ी चीज़ होती है देश की सेना और उसकी बेटियां। विजय शाह ने सेना का नहीं, भाजपा का चेहरा बेनकाब किया है। अगर अभी नहीं बोला गया, तो फिर बोलने लायक कुछ बचेगा नहीं। क्योंकि जब गद्दी, कुर्सी और जाति किसी भी सिद्धांत से ऊपर हो जाएं—तब लोकतंत्र नहीं, तानाशाही पनपती है।