चने में बुवाई के दौरान की जाने वाली उन्नत शस्य क्रियाएं

अजमेर, 10 अक्टूबर। रबी की फसल के अन्तर्गत चने की बुवाई करते समय उन्नत शस्य क्रियाएं करने के लिए किसानों को विशेषज्ञों द्वारा सलाह दी गई है।

ग्राहृय परीक्षण केन्द्र तबीजी फार्म के उप निदेशक कृषि (शस्य) श्री मनोज कुमार शर्मा ने बताया कि चना जयपुर खण्ड जोन 3 ए में उगाई जाने वाली रबी की एक प्रमुख दलहनी फसल हैं। चने के लिए लवण एवं क्षार रहित, जल निकास वाली उपजाऊ भूमि उपयुक्त रहती हैं। वर्तमान में चने की बुवाई का उपयुक्त समय हैं। चने की फसल में मृदा उपचार एवं बीजोपचार कर कीटों एवं रोगों से बचाकर उत्पादन में बढोत्तरी की जा सकती हैं। कृषि रसायनों का उपयोग करते समय पूरे कपड़े, मास्क एवं दस्तानोें का उपयोग अवश्य करें।

कृषि अनुसंधान अधिकारी (पौध व्याधि) डॉ. जितेन्द्र शर्मा ने बताया कि बीजोपचार बीज एवं मृदा से उत्पन्न होने वाले कीटों एवं रोगों से फसलों को बचाने एवं बीजों के अधिक अंकुरण के लिए किया जाता हैं। चने की फसल में जड़ गलन, सूखा जड़ गलन एवं उकठा जैसे हानिकारक रोगों का प्रकोप होता हैं। इन रोगों से बचाव के लिए फसल चक्र अवश्य अपनायें एवं बचाव हेतु ट्राईकोडर्मा से भूमि उपचार करना चाहिए। भूमि उपचार करने के लिए बुवाई से पूर्व 2.5 किलो ट्राईकोडर्मा को 100 किलो आदर््र्रता युक्त गोबर की खाद में मिलाकर 10-15 दिन छाया में रखें तथा इस मिश्रण को बुवाई के समय प्रति हैक्टेयर की दर से पलेवा करते समय मिट्टी में मिला देवें साथ ही रोग प्रत्तिरोधी किस्मों का उपयोग करें एवं बीजों को 1 ग्राम कार्बेण्डाजिम एवं थाइरम 2.5 ग्राम अथवा 2 ग्राम कार्बोक्सीन 37.5 प्रतिशत एवं थाइरम 37.5 प्रतिशत अथवा ट्राईकोडर्मा 10 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित कर बुवाई करें।

सहायक कृषि अनुसंधान अधिकारी (कीट) डॉ. सुरेश चौधरी ने चने की फसल में दीमक, कटवर्म व वायरवर्म की रोकथाम के लिए क्यूनालफॉस 1.5 प्रतिशत चूर्ण 25 किलो प्रति हैक्टेयर की दर से आखिरी जुताई से पूर्व भुरकाव करने एवं बीजों को फिप्रोनिल 5 एस.सी. 10 मि.ली. अथवा इमीडाक्लोप्रिड 600 एफ.एस. का 5 मि.ली. प्रति किलो बीज की दर से बीजोपचार कर बुवाई करने की सलाह दी।

कृषि अनुसंधान अधिकारी (रसायन) डॉ. कमलेश चौधरी ने बताया कि सिफारिश की गई उर्वरकों की मात्रा के साथ बुवाई से पूर्व चने के बीजों को तरल आधारित राईजोबियम, पी. एस. बी., गंधक तथा जिंक घोलक जैव उर्वरकों की 3 से 5 मिली लीटर प्रति किलो बीज की दर से बीजोपचार करने से फसल की पैदावार में बढ़ोतरी होती हैं।

कृषि अनुसंधान अधिकारी (शस्य) श्री रामकरण जाट ने जानकारी दी कि चने की अधिकतम उपज प्राप्त करने के लिए पोषक तत्वों का उपयोग सही समय पर मृदा परीक्षण सिफारिश के आधार पर उपयुक्त व संतुलित मात्रा में ही करना चाहिए। असिंचित क्षेत्रों में 10 किलो नत्रजन और 25 किलो फास्फोरस तथा सिंचित क्षेत्रों में 20 किलो नत्रजन, 40 किलो फास्फोरस प्रति हैक्टेयर की दर से 12-15 सेन्टीमीटर की गहराई पर आखरी जुताई के समय ऊर कर देवें। चने की सिंचित फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए पेन्डीमिथेलीन 30 ई.सी. की 2.5 लीटर मात्रा अथवा पेन्डीमिथेलीन 38.7 सी.एस. की 1.9 लीटर प्रति हैक्टेयर शाकनाशी को बुवाई के बाद परन्तु बीज उगने से पूर्व 600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।

 

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