बिजीय मसाला फसल उत्पादन हेतु प्रशिक्षण का शुभारम्भ

राष्ट्रीय बीजीय मसाला अनुसंधान केन्द्र, तबीजी अजमेर पर बीजीय मसाला फसलों के लिये ’’संसाधन संरक्षण तकनीक एवं सूक्ष्म सिंचाई द्वारा बीजीय मसालों में फसल उत्पादन कारकों का परिशुद्व प्रबन्धन ’’ विषय पर आठ दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का शुभारम्भ किया गया। कार्यक्रम का उद्धाटन डा0 अमर सिह फरोदा, पूर्व अध्यक्ष, कृषि वैज्ञानिक चयन बोर्ड व पूर्व उप कुलपति महाराणा प्रताप कृषि विश्वविद्यालय के द्वारा किया गया। इस अवसर पर राष्ट्रीय बीजीय मसाला अनुसंधान केन्द्र, तबीजी अजमेर के निदेशक डा0 बलराज सिंह ने कहा कि यह प्रशिक्षण कार्यक्रम राष्ट्रीय स्तर का है जिसमें देश भर से वैज्ञानिक, व्याख्यता, राज्यों के कृषि विशेषज्ञ तथा प्रशिक्षक भाग ले रहे है। प्रशिक्षण में विभिन्न विषय विशेषज्ञों के व्याख्यान एवं प्रस्तुतीकरण आधुनिक प्रशिक्षण कक्ष में तथा प्रायोगात्मक ज्ञान व प्रदर्शन हेतु प्रक्षेत्र भ्रमण को शामिल किया गया है। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में संरक्षण कृषि के विभिन्न आयामों पर विस्तार से बताया जायेगा। संरक्षण कृषि वह पद्वति हे जिसमें कृषि लागत को कम रखते हुए अत्याधिक लाभ व टिकाऊ उत्पादकता ली जा सकती है।
इस आदर्श प्रशिक्षण कार्यक्रम के समन्वयक ़डा0 गोपाल लाल प्रधान वैज्ञानिक, डा0 रवीन्द्र सिंह, वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं डा0 आर.एस.मेहता, केन्द्र के समस्त वैज्ञानिक, अधिकारी कर्मचारी तथा अन्य संस्थाओं के गणमान्य अधिकारी उपस्थित रहे।
वर्तमान परिदृश्य में संरक्षित कृषि एक आवश्कता हो गयाी है जिसके कुछ प्रमुख निम्न कारक है:

1. लगातार एवं अत्यधिक जुताई से मिटटी की संरचना में बदलाव तथा मृदा जीवांश स्तर में कमी।
2. भारी कृषि यंत्रों के अधिकाधिक प्रयोग से भूमि की निचली परतों का कठोर हो जाना।
3. खेती में जल आवश्यकता की वृद्वि एवं घटता जल उत्पादकता स्तर।
4. नियमित व असामयिक वर्षा एवं भूगर्भ जल का गिरता स्तर।
5. फसल अवशेषों को जलाने से ग्लोबल वार्मिग का खतरा।,
6. भमि में आवश्यक पोषक तत्वों की बढती कमी।
7. मृदा के लाभकारी सूक्ष्मजीवो की संख्या में कमी तथा उनकी क्रियाशील पर विपरीत प्रभाव।
8. मृदा कार्बन स्तर में निरन्तर गिरावट।
9. भू-गर्भ जल में नाईट्रेट की अधिकता से बढता जल-प्रदूषण।
खरपतवारों की संख्या में लगातार वद्वि।

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