अजमेर। महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्वविद्यालय के जनसंख्या अध्ययन विभाग द्वारा महिला सशक्तिकरण विशय पर आयोजित दो दिवसीय सेमिनार के उद्घाटन समारोह की मुख्य अतिथि राजस्थान विश्वविद्यालय के महिला अध्ययन केन्द्र की पूर्व निदेशक प्रोफेसर आशा कौशिक ने कहा कि महिला सशक्तिकरण की एक पवित्र पहल होनी चाहिये। उन्होंने कहा कि भारत का नाम लिंगानुपात के मामले में संयुक्त राष्ट्र संघ के 183 देशों की सूची में 139 वें स्थान पर है। भारत की आधी आबादी को सशक्त व शिक्षित बनाये बिना राष्ट्र का विकास संभव नहीं है। जैव विज्ञान रूप से महिलाएं पुरुषों से भिन्न हैं परंतु उनमें बाह्य असमानता समाज द्वारा थोपी गई है, तो क्यों न यही समाज लैंगिक असमानता को बदलने की पहल करता है। भारत में महिला कानूनों की संख्या एशिया में सर्वाधिक है परंतु उन्हें लागू करने में हम बांग्ला देश से भी पीछे हैं। आज भी पीडि़त महिला थाने में उत्पीडऩ का मामला दर्ज कराने जाने में डरती है, अत: सरकार को चाहिये कि महिला पुलिस कर्मियों की संख्या बढ़ाया जाना आवश्यक है। महिलाओं को स्वत:स्फूर्त होकर अपने अधिकारों के लिये सजग होना पड़ेगा, न कि याचक बन कर जीना होगा। हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा सहमति से यौन संबंध की उम्र 18 वर्शा से घटा कर 16 र्वा करने के प्रयास को भी हास्यास्पद व हमारी संस्कृति के विपरीत मानसिकता बताया तथा कहा कि खाप पंचायतें व तालिबानी संस्कृति भी महिला के विकास में बाधक हैं।
कार्यक्रम के अध्यक्ष व विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर रूपसिंह बारेठ ने घटती लिंगानुपात प्रतिशतता पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए इसे समाज के लिये घातक बताया तथा यह भी कहा कि कन्या भ्रूण हत्या के लिये ज्यादा तर शिक्षित व शहरी नागरिक ज्यादा जिम्मेवार हैं तथा इस जघन्य अपराध के पीछे कौन सी मानव प्रवृत्ति कार्य कर रही है, इस पर समाज को विचार करना अति आवश्यक है। 21वीं शताब्दी में भारत विश्व का सिरमौर राष्ट्र होगा क्यों कि आज भी कार्यशील मानव स्रोत की मात्रा भारत में विद्यमान है। हमें लड़के व लड़कियों को आगे बढऩे में समान अवसर प्रदान करने चाहिये। उन्होंने विश्वास दिलाया कि विश्वविद्यालय आगेे भी ऐसे अनेक सामाजिक सरोकार से जुड़े विषयों पर समाज के साथ विचार विमर्श करता रहेगा।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि के रूप में बोलते हुए पुलिस उपअधीक्षक यातायात जयसिंह राठौड़ ने पौराणिक संदर्भों का उदाहरण देते हुए कहा कि आज नारी को क्यों और किसके विरुद्ध सशक्त करने की आवश्यकता हो रही है। ये भी विचारणीय है कि महिलाओं द्वारा पाश्चात्य संस्कृति अंगीकार करना मात्र ही महिला सशक्तिकरण नहीं है बल्कि अपनी सांस्कृतिक धरोहर व शिक्षा के साथ भी महिला सशक्त हो सकती है। कार्यक्रम की संयोजिका प्रोफेसर लक्ष्मी ठाकुर ने अतिथियों का स्वागत किया तथा दो दिवसीय सेमीनार की रूपरेखा प्रस्तुत की। आज के प्रथम तकनीकी सत्र में प्रोफेसर लक्ष्मी ठाकुर ने महिलाओं के साथ परिवार के पुरुशों द्वारा किये जा रहे उत्पीडऩ व भेदभाव में परिवार की अन्य महिलाओं की मौन स्वीकृति को दुखद बताया।
द्वितीय सत्र में पूर्व मुख्य न्यायाधीश एच. एस. असनानी ने महिला उत्पीडऩों के कानूनी पहलुओं की जानकारी प्रतिभागियों को दी तथा उन्हें नि:शुल्क मिलने वाली कानूनी सुविधा से भी अवगत कराया। तृतीय सत्र के मुख्य वक्ता क्षेत्रीय महाविद्यालय अजमेर के डॉ. आर.के.एस. अरोड़ा ने यौन शिक्षा व महिला को अपने जीवन संबंधित फैसले लेने का अधिकार दिये जाने की वकालत की। उपमुख्य चिकित्सा अधिकरी डॉ. लाल थदानी ने कन्या भ्रूण हत्या पर आधारित चलचित्र प्रदर्शित किये तथा आवश्यक चिकित्सकीय जानकारी उपलब्ध करायी। कार्यक्रम का संचालन डॉ. राजू शर्मा ने किया तथा डॉ. दीपिका उपाध्याय ने धन्यवाद ज्ञापित किया। शनिवार को दोपहर दो बजे सेमिनार के समापन समारोह में मुख्य अतिथि राजस्थान विश्वविद्यालय के प्रोफेसर शशि सहाय होंगे, जो यौन शिक्षा समिति के आजीवन सदस्य हैं तथा विशिष्ट अतिथि सुरेन्द्र सिंह राजपुरोहित, अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट होंगे।
