जीने की कला सिखाती है नाट्यविधा

natya vrindअजमेर। नाटक एक ऐसी विधा है जो व्यक्तित्व को प्रभावी बनाने के साथ-साथ जीवन को बेहतर तरीके से जीने की कला भी सिखाती है। अपने आस-पास के समाज में व्यापत समस्याओं को समझ कर समाज के सामने प्रभावी ढ़ंग से उनका समाधान प्रस्तुत करने का सबसे कारगर माध्यम नाटक ही है। युवाओं में आत्मविश्वास जगाकर उनमें अभिव्यक्ति कौशल को विकसित करने में नाट्य कार्यशालाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ये विचार मेयर कमल बाकोलिया ने व्यक्त किये। वे नाट्यवृंद थियेटर एकेडमी, अजमेर फोरम एवं इण्डोर स्टेडियम के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित 15 दिवसीय ग्रीष्मकालीन ‘यूथ एक्टिंग वर्कशॉप‘ का आज 8 जून, 2013 शनिवार को दीप प्रज्ज्वलित कर उद्घाटन करते हुए मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए शिक्षाविद् डॉ. बद्रीप्रसाद पंचोली ने बताया कि विविध कलाओं व मनोभावों का संयोजित रूप है नाट्यकला। अभिनय सीखने से जीवन के सौंदर्य को आत्मसात करने की क्षमता उत्पन्न होती है। कार्यशाला निर्देशक उमेश चौरसिया ने आज पहले दिन नौ रसों की व्याख्या करते हुए विभिन्न थियेटर एक्सरसाइज के माध्यम से भाव अभिव्यक्ति का अभ्यास कराया। सभी पंजीकृत 26 प्रतिभागियों ने पहले ही दिन अपनी झिझक को दूर करते हुए मोनोलोग प्रस्तुत कर प्रभावित किया। हेमन्त शर्मा ने प्रार्थना के जरिये आत्मविश्वास बढ़ाने का तरीका बताया। कृष्णगोपाल पाराशर ने आभार व्यक्त किया। उल्लेखनीय है कि यह एक्टिंग वर्कशॉप 22 जून तक चलेगी।

 

उमेष चौरसिया

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