धातु पर गढ़ी कारीगरी से सात समंदर पार पहचान बनाने वाली पीतल नगरी ने घरेलू उत्पादों में भी जगह बनाई है। भारतीय हस्तशिल्प के मुरीद अमेरिकी अपने डॉगी के लिए बर्तन भी भारत से मंगा रहे हैं। डॉगी के बर्तनों के निर्यात के आंकड़े इसकी गवाही दे रहे हैं।
भारतीय हस्तशिल्प का जादू विदेशियों के सिर चढ़ कर बोल रहा है। मशीनी कल्चर से ऊबे विदेशियों को भारतीय कारीगरी लुभा रही है। ड्राइंग रूम की सजावट के साथ ही विदेशी अब तो अपने डॉगी को खाना देने के लिए बर्तन भी भारत से मंगा रहे हैं। अकेले मुरादाबाद से सलाना 35-50 करोड़ का डॉगी के बर्तनों का निर्यात होता है। डॉगी का बर्तन तैयार करने वाले वजीर चंद एंड संस फर्म के संचालक अरशु ढल की मानें तो साल दर साल पपी के बर्तनों का निर्यात बढ़ता जा रहा है। रेडिएशन फ्री, टिकाऊ और कम दाम के कारण भारतीय बर्तन खास तौर से पसंद किए जा रहे हैं। उनकी माने तो 15 साल पहले उन्होंने डॉगी के बर्तनों को बनाने का काम शुरू किया। उस समय दो से पांच करोड़ का कारोबार था। उस समय केवल अमेरिकी देशों ने बर्तनों को आयात करना शुरू किया अब तो अमेरिका और यूरोप के तमाम देशों ने भारतीय बर्तनों को मंगाना शुरू कर दिया है।
खास कारीगरी ने बढ़ाई डिमांड
हस्तशिल्प निर्यात संवर्धन परिषद के कार्यकारी निदेशक राकेश कुमार की माने तो एक वक्त था जब सजावटी उत्पादों की मांग रहती थी मगर कारीगरी के कारण अब घरेलू उत्पाद खूब पसंद किए जा रहे हैं। साल दर साल घरेलू उत्पादों का निर्यात बढ़ रहा है। पिछले पांच सालों में 15 फीसद से ज्यादा की वृद्धि हुई है।
इन देशों में होता निर्यात
अमेरिका, इंग्लैंड, जर्मनी, जापान, आस्ट्रेलिया, फ्रांस, स्पेन, ग्रीस, इटली, हांगकांग, हंग्री, ओमान, बुल्गारिया, मैक्सिको, डेनमार्क, बेल्जियम, कनाडा, स्विट्जरलैंड
कैसे तैयार किए जाते हैं बर्तन
डॉगी के बर्तनों के लिए स्टील दिल्ली से निर्यात की जाती है। यहां कारीगरों द्वारा बर्तनों को आकार दिया जाता है। फिनिशिंग के बाद रेडिएशन की जांच कराई जाती है। रेडिएशन फ्री का सर्टिफिकेट मिलने के बाद ही निर्यात किया जाता है।
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