बिजली में सुधार को राज्य नहीं तैयार

केंद्र सरकार ने जिस शोर-शराबे के साथ राज्यों की बिजली वितरण कंपनियों पर बकाए ऋण की राशि को समायोजित करने की स्कीम लागू की थी, वह अब फुस्स साबित होने लगी है। केंद्र के तमाम मनुहार के बावजूद अभी तक सिर्फ एक राज्य तमिलनाडु ने इस स्कीम में शामिल होने की रजामंदी दिखाई है। ऐसे में केंद्र सरकार ने राज्यों को और ज्यादा समय देने का फैसला किया है। स्कीम की अवधि 31 दिसंबर, 2012 से बढ़ाकर 31 मार्च, 2013 करने का फैसला किया गया है।

बैंकों व वित्तीय संस्थानों के भारी कर्ज में डूबे उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा सहित तमाम राज्यों ने इस योजना को लेकर कई तरह के सवाल उठा दिए हैं। राज्यों ने खास तौर पर बिजली वितरण कंपनियों पर बकाए कर्ज के आधे हिस्से के बदले बांड जारी करने को लेकर अपनी चिंता जताई है। राजस्थान, उत्तर प्रदेश और हरियाणा ने अपनी वित्तीय स्थिति का हवाला देते हुए कहा है कि वे इस दायित्व का वहन करने में अभी असमर्थ हैं। वजह यह है कि अगले कुछ वर्षो में वितरण कंपनियों की स्थिति नहीं सुधरी तो बांडों के मूल और ब्याज के भुगतान की जिम्मेदारी राज्य सरकार की होगी।

सूत्रों के मुताबिक इन राज्यों ने बिजली मंत्रालय से आग्रह किया है कि बांडों की परिपक्वता अंवधि को लेकर उन्हें थोड़ी और मोहलत दी जाए। मौजूदा नीति के मुताबिक राज्यों को दो से पांच वर्षो की परिपक्वता अवधि वाले बांड जारी करने हैं। ऐसे में अगर राज्यों को ज्यादा अवधि की मोहलत देने का फैसला किया जाता है तो कैबिनेट से भी मंजूरी लेनी होगी। कुछ राज्यों ने वित्तीय नियमन व वित्तीय प्रबंधन कानून [एफआरबीएम] की वजह से बांड जारी करने में असमर्थतता जताई है। खास तौर पर खराब राजकोषीय घाटे की स्थिति से रू-ब-रू राज्य मसलन उत्तर प्रदेश, बिहार, ओडिशा, पंजाब ने एफआरबीएम कानून का हवाला दिया है।

कुछ राज्यों कीबिजली वितरण कंपनियों पर इतना ज्यादा ऋण है कि अगर उन्होंने उसके आधे हिस्से के बदले बांड जारी कर दिए तो फिर आगे चलकर ये राज्य और कर्ज ले ही नहीं सकेंगे। इसी तरह से कुछ राज्य चाहते हैं कि बांड जारी करने की अवधि अगले वित्त वर्ष से शुरू हो। आंध्र प्रदेश ने बिजली मंत्रालय से कहा है कि वह बिजली कंपनियों पर बकाए राशि को पुनर्गठित करने के लिए बातचीत कर रहा है लेकिन किसी नतीजे पर पहुंचने में तीन से चार महीने का समय लग सकता है।

सितंबर, 2013 में केंद्र सरकार ने इस स्कीम को मंजूरी दी थी जिसे देश के बिजली क्षेत्र में एक अहम कदम माना गया था। केंद्र ने बिजली निगमों पर बकाए कम अवधि वाले कर्ज के आधे हिस्से के बदले बांड जारी करने और आधे हिस्से को अगले कुछ वर्षो में देने की बात कही थी। इसके साथ ही यह शर्त भी थी कि राज्यों को हर वर्ष बिजली की दरों में वृद्धि करनी होगी। इस स्कीम के जरिये बिजली निकायों पर बकाए की लगभग एक लाख करोड़ रुपये की राशि का पुनर्गठन किया जाना है।

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