ग्राहकों को राहत देने से बैंकों ने किया इन्कार

rbiनई दिल्ली । आरबीआइ जब ऊंची महंगाई का हवाला देकर ब्याज दरें घटाने से इन्कार करता है तो उद्योग जगत, वित्त मंत्रलय सहित तमाम बैंक कर्ज सस्ता करने की गुहार लगाते रहते हैं। मगर जब नीतिगत दरों में कटौती हो जाती है तो बैंक दूसरी दलीलें देकर ग्राहकों को इसका लाभ देने से मना कर देते हैं। बैंकों की इस मनमानी पर न तो आरबीआइ लगाम लगा पा रहा है और न ही वित्त मंत्रलय। अंतत: इसका खामियाजा ग्राहकों को भुगतना पड़ रहा है।

रेपो रेट में एक चौथाई फीसद की हुई ताजा कटौती को नकाफी बताते हुए बैंकों ने ब्याज दरें घटाने से इन्कार कर दिया है। इसके लिए उन्होंने फंड की ऊंची लागत का हवाला दिया है। इससे पहले इसी साल मार्च में जब आरबीआइ ने रेपो रेट में इतनी ही कटौती की थी, तब भी बैंकों की ओर से यही दलील दी गई थी। उस समय भी ग्राहकों को इसका लाभ नहीं मिला था। इस साल जनवरी से अब तक ब्याज दरों में पौना फीसद की कमी हो चुकी है मगर ग्राहकों को सिर्फ एक चौथाई फीसद कटौती ही नसीब हुई है।

आरबीआइ कई बार बैंकों से कह चुका है कि वे नीतिगत दरों में कटौती का फायदा ग्राहकों को भी दें। मगर बैंक अपने नियामक की ही बात नहीं सुनते। दूसरी ओर, कर्ज की दरों में कमी न होने पर वित्त मंत्रलय आरबीआइ से नाराज तो होता है, मगर बैंकों द्वारा कर्ज सस्ता न करने पर चुप्पी साधे रहता है। देश के दिग्गज बैंक एसबीआइ के चेयरमैन प्रतीप चौधरी ने मौद्रिक नीति पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि आरबीआइ ने रेपो रेट में जो कमी की है उससे फंड की लागत घटाने में मदद नहीं मिलेगी। ऐसे में कर्ज सस्ता करना अभी मुमकिन नहीं है।

उन्होंने इसके लिए नगद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) को एक फीसद घटाने की मांग की है। वह राशि जो बैंकों को अपनी जमाओं के अनुपात में आरबीआइ के पास अनिवार्य रूप से रखनी होती है। केंद्रीय बैंक ने नगदी की बेहतर स्थिति को देखते हुए ही सीआरआर में कोई बदलाव नहीं किया है। चौधरी ने सीआरआर को पूरी तरह से खत्म करने की कई बार वकालत की है। इस पर उन्हें आरबीआइ की खरी खोटी भी सुननी पड़ी थी। दिग्गज निजी बैंक आइसीआइसीआइ की सीईओ चंदा कोचर का कहना है कि जमा दरों में कमी के चलते फंड की लागत ज्यादा है।

वहीं, एचडीएफसी बैंक के मुखिया आदित्य पुरी ने नगदी संकट का रोना रोया। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक ऑफ इंडिया के सीएमडी वीआर अय्यर के मुताबिक सिर्फ रेपो रेट में कमी से फंड की लागत नहीं घटेगी। अब सवाल यह है कि बैंकों को आरबीआइ से आखिरकार दरों में कितनी कटौती चाहिए, जब ग्राहक को वे इसका सीधा लाभ दे सकें।

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