भगत सिंह की जेल नोटबुक की कहानी

भगत सिंह और उनके साथी सुखदेव और राजगुरु के शहादत दिवस इसी महीने में है। भगत सिंह की जेल डायरी के दिलचस्प इतिहास को समझने का प्रयास इस लेख में मैंने किया है। यह डायरी, जो आकार में एक स्कूल नोटबुक के समान थी, जेल अधिकारियों द्वारा 12 सितंबर, 1929 को भगत सिंह को दी गई थी, जिस पर लिखा था “भगत सिंह के लिए 404 पृष्ठ।” … Read more

मां की चिट्ठी ।

मां की चिट्ठी । ********** मेरे बेटे तेरे विदेश चले जाने के बाद मैं बिल्कुल ही अकेली पड़ गई हूं, घर में हर पल तेरी याद सताता है इसलिए वृद्धाश्रम में रहने लगी हूं । कई खत तुझे लिख कर थका गई याद में तेरे आंसू बहाती रहती हूं, एक तू है जो मुझे भूल … Read more

साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।

कर्तव्य कर्म में लगे रहना ही सत्य है। अकर्व्य कर्म करना पाप है। यही पाप  झूठ है।     यह कबीर दास जी की एक साखी है। साखी यानि साक्षी भाव में कही गई बात – परम की अनुभूति के दौरान जो कुछ समझा, वह साखी हो गया। तो कबीर ने कहा है कि सत्य … Read more

सरकार के छोटे-छोटे कदम टीबी मुक्त भारत की दिशा में मील का पत्थर साबित होंगे

(विश्व क्षय रोग दिवस, 24 मार्च पर विशेष आलेख) हर साल, हम 24 मार्च को विश्व क्षय रोग दिवस मनाते हैं। यह कार्यक्रम 24 मार्च 1882 की तारीख को याद करने का दिन है जब जर्मन फिजिशियन  डॉ. रॉबर्ट कोच ने माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस नामक जीवाणु की खोज की थी, यह जीवाणु तपेदिक/क्षय रोग (टीबी) का कारण बनता है। माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस की खोज हो जाने से टीबी के निदान और इलाज में बहुत आसानी हुई। जर्मन फिजिशियन रॉबर्ट कोच की इस खोज के लिए उन्हें 1905 में नोबेल पुरस्कार दिया गया। यही कारण है कि हर वर्ष विश्व स्वास्थ्य संगठन टीबी के सामाजिक, आर्थिक और सेहत के लिए हानिकारक नतीजों पर दुनिया में जन-जागरूकता फैलाने और दुनिया से टीबी के खात्मे की कोशिशों में तेजी लाने के लिए विश्व क्षय रोग दिवस मनाता आ रहा है। माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस की खोज के सौ साल बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने पहली बार 24 मार्च 1982 को विश्व क्षय रोग दिवस शुरू मनाने की शुरुआत की, तभी से हर साल 24 मार्च को विश्व क्षय रोग दिवस पूरे विश्व में मनाया जाता है। टीबी (क्षय रोग) एक घातक संक्रामक रोग है जो कि माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस जीवाणु की वजह से होती है। टीबी (क्षय रोग) आमतौर पर ज्यादातर फेफड़ों पर हमला करता है, लेकिन यह फेफड़ों के अलावा शरीर के अन्य भागों को भी प्रभावित कर सकता हैं। यह रोग हवा के माध्यम से फैलता है। जब क्षय रोग से ग्रसित व्यक्ति खांसता, छींकता या बोलता है तो उसके साथ संक्रामक ड्रॉपलेट न्यूक्लिआई उत्पन्न होता है जो कि हवा के माध्यम से किसी अन्य व्यक्ति को संक्रमित कर सकता है। ये ड्रॉपलेट न्यूक्लिआई कई घंटों तक वातावरण में सक्रिय रहते हैं। जब एक स्वस्थ्य व्यक्ति हवा में घुले हुए इन माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस ड्रॉपलेट न्यूक्लिआई के संपर्क में आता है तो वह इससे संक्रमित हो सकता है। क्षय रोग सुप्त और सक्रिय अवस्था में होता है। सुप्त अवस्था में संक्रमण तो होता है लेकिन टीबी का जीवाणु निष्क्रिय अवस्था में रहता है और कोई लक्षण दिखाई नहीं देते हैं। अगर सुप्त टीबी का मरीज अपना इलाज नहीं कराता है तो सुप्त टीबी, सक्रिय टीबी में बदल सकती है। लेकिन सुप्त टीबी ज्यादा संक्रामक और घातक नहीं है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अनुमान के अनुसार विश्व में 2 अरब से ज्यादा लोगों को लेटेंट (सुप्त) टीबी संक्रमण है। सक्रिय टीबी की बात की जाए तो इस अवस्था में टीबी का जीवाणु शरीर में सक्रिय अवस्था में रहता है, यह स्थिति व्यक्ति को बीमार बनाती है। सक्रिय टीबी का मरीज दूसरे स्वस्थ्य व्यक्तियों को भी संक्रमित कर सकता है, इसलिए सक्रिय टीबी के मरीज को अपने मुँह पर मास्क या कपडा लगाकर बात करनी चाहिए और मुँह पर हाथ रखकर खाँसना और छींकना चाहिए।  अगर टीबी का जीवाणु फेफड़ों को संक्रमित करता है तो वह पल्मोनरी टीबी (फुफ्फुसीय यक्ष्मा) कहलाता है। टीबी का बैक्टीरिया 90 प्रतिशत से ज्यादा मामलों में फेंफड़ों को प्रभावित करता है। लक्षणों की बात की जाए तो आमतौर पर लंबे समय तक खांसी, सीने में दर्द, बलगम, वजन कम होना, बुखार आना और रात में पसीना आना शामिल हो सकते हैं। कभी-कभी पल्मोनरी टीबी से संक्रमित लोगों की खांसी के साथ थोड़ी मात्रा में खून भी आ जाता है। लगभग 25 प्रतिशत से ज्यादा मामलों में किसी भी तरह के लक्षण नहीं दिखाई देते हैं। अगर टीबी का जीवाणु फेंफड़ों की जगह शरीर के अन्य अंगों को प्रभावित करता है तो इस प्रकार की टीबी एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी (इतर फुफ्फुसीय यक्ष्मा) कहलाती है। एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी पल्मोनरी टीबी के साथ भी हो सकती है। अधिकतर मामलों में संक्रमण फेंफड़ों से बाहर भी फैल जाता है और शरीर के दूसरे अंगों को प्रभावित करता है। जिसके कारण फेंफड़ों के अलावा अन्य प्रकार के टीबी हो जाते हैं। फेंफड़ों के अलावा दूसरे अंगों में होने वाली टीबी को सामूहिक रूप से एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी (इतर फुफ्फुसीय यक्ष्मा) के रूप में चिह्नित किया जाता है। एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी (इतर फुफ्फुसीय यक्ष्मा) अधिकतर कमजोर प्रतिरोधक क्षमता वाले लोगों और छोटे बच्चों में अधिक आम होता है। एचआईवी से पीड़ित लोगों में, एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी (इतर फुफ्फुसीय यक्ष्मा) 50 प्रतिशत से अधिक मामलों में पाया जाता है। आज के समय पर सामान्य टीबी का इलाज कोई चुनौती नहीं है। अगर कोई भी व्यक्ति टीबी का मरीज है तो वह 6-9 महीने टीबी का उपचार लेकर स्वस्थ्य हो सकता है। आज के समय पर सबसे बड़ी चुनौती है ड्रग रेजिस्टेंट टीबी के इलाज की, जो कि प्रमुख रुप से दो प्रकार की होती है मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट टीबी और एक्सटेनसिवली ड्रग रेजिस्टेंट टीबी। मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट टीबी में फर्स्ट लाइन ड्रग्स का टीबी के जीवाणु  (माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस) पर कोई असर नहीं होता है। अगर टीबी का मरीज नियमित रूप से टीबी की दवाई नहीं लेता है या मरीज द्वारा जब गलत तरीके से टीबी की दवा ली जाती है या मरीज को गलत तरीके से दवा दी जाती है और या फिर टीबी का रोगी बीच में ही टीबी के कोर्स को छोड़ देता है (टीबी के मामले में अगर एक दिन भी दवा खानी छूट जाती है तब भी खतरा होता है) तो रोगी को मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट टीबी हो सकती है। इसलिए टीबी के रोगी को डॉक्टर के दिशा निर्देश अनुसार नियमित टीबी की दवाओं का सेवन करना चाहिए। मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट टीबी में फर्स्ट लाइन ड्रग्स आइसोनियाजिड और रिफाम्पिसिन जैसे दवाओं का मरीज पर कोई असर नहीं होता है क्योंकि आइसोनियाजिड और रिफाम्पिसिन ड्रग का टीबी का जीवाणु (माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस) प्रतिरोध करता है। एक्सटेंसिवली ड्रग रेजिस्टेंट टीबी मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस टीबी से ज्यादा घातक होती है। एक्सटेंसिवली ड्रग रेजिस्टेंट टीबी में मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट टीबी के उपचार के लिए प्रयोग होने वाली सेकंड लाइन ड्रग्स का टीबी का जीवाणु प्रतिरोध करता है। एक्सटेंसिवली ड्रग रेजिस्टेंस टीबी में फर्स्ट लाइन ड्रग्स आइसोनियाजिड और रिफाम्पिसिन के साथ-साथ टीबी का जीवाणु सेकंड लाइन ड्रग्स में कोई फ्लोरोक्विनोलोन ड्रग (लिवोफ़्लॉक्सासिन और मोक्सीफ्लोक्सासिन) और बेडाक्वीलाइन/लिनेजोलिड ड्रग का प्रतिरोध करता है। मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस टीबी का रोगी द्वारा अगर सेकंड लाइन ड्रग्स को भी ठीक तरह और समय से नहीं खाया जाता या लिया जाता है तो एक्सटेनसिवली ड्रग रेजिस्टेंट टीबी की सम्भावना बढ़ जाती है। इस प्रकार की टीबी में एक्सटेंसिव ड्रग्स द्वारा एक साथ कई ड्रग्स का संयोजन बनाकर 2 वर्ष से अधिक तक उपचार किया जाता है। लेकिन एक्सटेनसिवली ड्रग रेजिस्टेंट टीबी का उपचार सबसे ज्यादा चुनौतीपूर्ण है। आज के समय पर ड्रग रेजिस्टेंट टीबी के उपचार के लिए तीन प्रकार की रेजीमेन- एचमोनो पोली रेजीमेन (6 या 09 माह),  शॉर्टर रेजिमेन (9-11 माह) और ऑल ओरल लोंगर रेजीमेन (18-20 माह) का उपयोग किया जा रहा है। नयी टीबी ड्रग बेडाक्वीलाइन का उपयोग भी ड्रग रेजिस्टेंट टीबी (एमडीआर और एक्सडीआर) के उपचार में किया जा रहा है, बेडाक्वीलाइन दवा टीबी की अन्य दवाओं के साथ छः माह तक एक अतिरिक्त दवा के तौर पर दी जाती है।  जिन भी मरीजों को देश में बेडाक्वीलाइन दवा दी जा रही है वह सरकार द्वारा मुफ्त में उपलब्ध कराई जा रही हैं। शोध में पता चला है कि बेडाक्वीलाइन ड्रग रेसिस्टेंट टीबी की इलाज की दर को बढ़ा रही है। लेकिन बेडाक्वीलाइन ड्रग भी हर मरीज को नहीं दी जा सकती है इसके भी अपने दायरे हैं। डेलामानिड दवा भी दवा प्रतिरोधक टीबी के इलाज के लिए नयी दवा है। इसके अलावा भारत में ड्रग रेजिस्टेंट टीबी के इलाज के लिये नयी रेजीमेन को मंजूरी दी गयी है, जिसे बीपाल-एम (बीडाक्विलिन, प्रीटोमैनिड, लाइनज़ोलिड और मोक्सीफ्लोक्सासिन) के नाम से जाना जाता है, जिसकी अवधि 6 महीने है। बीपाल-एम रेजीमेन का देष में अभी विस्तार होना बाकी है, आषा है कि 2025 में भारत के सभी राज्यों में इस नयी ड्रग रेजिस्टेंट रेजीमेन का प्रयोग होने लगेगा। बीपाल-एम रेजीमेन के माध्यम से ड्रग रेजिस्टेंट टीबी के इलाज में एक क्रांति आयेगी क्योंकि देष में बीपाल-एम रेजीमेन के ट्रायल में इसकी सफलता दर लगभग 93 प्रतिषत रही है। बीपाल-एम रेजीमेन में प्रीटोमैनिड नाम की नयी ड्रग का उपयोग पहली बार किया जा रहा है। इस बीपाल-एम उपचार पद्धति के कई लाभ हैं, जिनमें पारंपरिक एमडीआर-टीबी उपचार की तुलना में कम अवधि, कम लागत, कम गोलियों का बोझ, उच्च प्रभावकारिता, बेहतर अनुपालन और नैदानिक परिणाम शामिल हैं। इस उपचार पद्धति के लिए जरूरी है कि इसके समावेशन और बहिष्करण मानदंड का ध्यान रखा जाए तभी इसका लाभ मरीज को अधिक मिल पायेगा और इसके पार्श्व प्रभाव मरीज में कम होंगे। टीबी मुक्त भारत अभियान के तहत सरकार द्वारा तमाम प्रयास किये जा रहे हैं तिसके तहत अब टीबी रोगी के संपर्क में रहने वाले परिवार के लोगों को भी टीबी प्रिवेंटिव थेरेपी (टीपीटी) दी जाएगी, इससे पहले एचआईवी ग्रस्त मरीजों और टीबी मरीज के परिवार के 6 साल से कम के बच्चों को टीपीटी दी जाती थी। टीबी प्रिवेंटिव थेरेपी (टीपीटी) एक ऐसी प्रिवेंटिव थेरेपी है जो टीबी होने के जोखिम को कम करने में मदद करती है, खासकर उन लोगों में जो टीबी के संपर्क में आए हैं या जिन्हें टीबी होने का खतरा है। आने वाले समय में देष से टीबी को जड़ से खत्म करने के लिए टीपीटी एक प्रमुख भूमिका निभायेगी। क्षयरोग उन्मूलन की दिशा में भारत की टीबी मुक्त भारत के नाम समर्पित यात्रा को वैश्विक स्तर पर मान्यता मिली है, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की वैश्विक टीबी रिपोर्ट 2024 के अनुसार भारत देश ने 2015 से 2023 तक क्षय रोग (टीबी) के मामलों में उल्लेखनीय 17.7 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की है, यह दर वैश्विक औसत गिरावट 8.3 प्रतिशत की दोगुनी है। साल 2015 में प्रति एक लाख की जनसंख्या पर 237 लोगों को ये बीमारी थी जो 2023 में 17.7 प्रतिशत घटकर प्रति एक लाख की जनसंख्या पर 195 हो गई है। हालांकि ये आंकड़े अब भी देश से टीबी के उन्मूलन के लक्ष्य से काफी दूर हैं। टीबी से होने वाली मौतों में भी भारत देष में लगभग 21.4 प्रतिशत की कमी आई है, जो 2015 में प्रति लाख जनसंख्या पर 28 से घटकर 2023 में प्रति लाख जनसंख्या पर 22 हो गई है। देश में इस रोग की रोकथाम के लिए किए गए प्रयास के अच्छे परिणाम देखने को मिल रहे हैं। यह मील का पत्थर भारत के राष्ट्रीय क्षयरोग उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) के प्रभाव और कड़ी मेहनत को जाहिर करता है, जो एक व्यापक रणनीति है जो 2025 तक भारत देश के टीबी उन्मूलन के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को पूरा करने के लिए अत्याधुनिक निदान, निवारक देखभाल, रोगी सहायता से सम्बन्धित एक महत्वपूर्ण साझेदारी है। हमारे भारत देश में पूरे विश्व की तुलना में सबसे ज्यादा टीबी मरीजों की संख्या है। भारत देश का लगभग 26 प्रतिशत टीबी बीमारी के मामलों में पूरे विश्व में योगदान है। सबसे ज्यादा दवा प्रतिरोधक टीबी मरीज (एक लाख दस हजार, लगभग 21 प्रतिशत) भी भारत देश में है। भारत देष में ड्रग रेजिस्टेंस टीबी के मरीजों की उपचार सफलता दर जो साल 2020 में 68 प्रतिशत थी वह 2022 में 75 प्रतिशत हो गई है जो कि बहुत महत्वपूर्ण है। अगर टीबी मरीज को सही समय पर इलाज नहीं मिलता है तो एक सक्रिय टीबी मरीज साल में कम से कम 15 नए मरीज पैदा करता है। ड्रग रेजिस्टेंट टीबी मरीज से होने वाला संक्रमण भी ड्रग रेजिस्टेंट ही होता है जो कि एक चुनौतीपूर्ण स्थिति होती है। इसलिए जरूरी है कि ड्रग रेजिस्टेंट टीबी मरीजों की विशेष निगरानी की जानी चाहिए और उनके संपर्क में रहने वाले लोगों की भी प्राथमिकता के आधार पर जांच करायी जानी चाहिए, जिससे कि ड्रग रेजिस्टेंट टीबी मरीज दूसरे ड्रग रेजिस्टेंट मरीज पैदा नहीं कर सकें। टीबी मुक्त भारत के लिए प्रमुख रूप से भारत देश को 2015 के स्तर की तुलना में टीबी की दर (प्रति लाख जनसंख्या पर नए मामले) में 80 प्रतिशत की कमी एक प्रमुख इंडिकेटर है। टीबी मुक्त भारत के लक्ष्य के रूप में दूसरे इंडिकेटर का लक्ष्य 2015 के स्तर की तुलना में टीबी मृत्यु दर में 90 प्रतिशत की कमी लाना है। तीसरे इंडिकेटर के रूप में टीबी से प्रभावित कोई भी परिवार बीमारी के कारण भारी खर्च का सामना नहीं करे का लक्ष्य रखा गया है। यह अपने आप में भारत देश के लिए एक बहुत बड़ा और कठिन लक्ष्य है, इस लक्ष्य को 2025 में प्राप्त करना नो नामुमकिन लग रहा है लेकिन आने वाले सालों में राष्ट्रीय क्षयरोग उन्मूलन कार्यक्रम की यह महत्वपूर्ण यात्रा टीबी मुक्त भारत के रूप में मील का पत्थर साबित होगी। 2015 की तुलना में भारत 2025 में टीबी केयर के मामले में एक अच्छी स्थिति में है। टीबी मुक्त भारत के लिए सरकार द्वारा कई महत्वपूर्ण अभियान भी चलाये जा रहे हैं जिसमे 100 दिवयीय सघन अभियान और टीबी मुक्त पंचायत प्रमुख रुप से षामिल है। 100 दिवयीय टीबी सघन अभियान देष के 33 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 347 जिलों में 7 दिसंबर, 2024 को शुरू किया गया था, जिसका उद्देश्य कमजोर या उच्च जोखिम वाले समूह में आने वाले लोगों में टीबी की जांच और परीक्षण करना था, जिसमें  60 साल से अधिक उम्र के लोग, मधुमेह रोगी, धूम्रपान करने वाले, शराब पीने वाले, एचआईवी से पीड़ित लोग, अतीत में टीबी से पीड़ित लोग, टीबी रोगियों के घरेलू संपर्क इत्यादि षामिल हैं। इस अभियान के अन्तर्गत टीबी के लक्षणों वाले लोगों की जांच के अलावा, सघन अभियान का मुख्य उद्देश्य लोगों में उप-नैदानिक या बिना लक्षण वाले टीबी रोग की जांच के लिए छाती के एक्स-रे का उपयोग करना है, जिसके बाद नाट (सीबीनाट और ट्रूनाट) परीक्षण का उपयोग करके जीवाणु संबंधी पुष्टि की जाती है। इस अभियान में पहले उत्तर प्रदेश के 15 जिले शामिल किये गए थे लेकिन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ ने अभियान कि महत्वता को देखते हुए उत्तर प्रदेश के सभी 75 जिलों में इस अभियान को लागू कर दिया, इस तरह की टीबी के प्रति सजगता रखना किसी राज्य के मुखिया के लिए बहुत बड़ी बात है जो कि भारत देश से टीबी के उन्मूलन के लिए महत्वपूर्ण साबित होगी। ऐसे अभियानों कि महत्वता तभी है जब ऐसे अभियानों को वास्तविक रूप से लागू किया जाए और आकड़ों का खेल न खेला जाए क्योंकि जिस जगह आंकड़े आ जाते है उस जगह यथार्थ कम हो जाता है। इसके अलावा एक और महत्वपूर्ण अभियान के तहत 24 मार्च 2023 को वाराणसी में आयोजित विश्व क्षयरोग दिवस के कार्यक्रम में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा टीबी मुक्त पंचायत पहल की शुरुआत की गई थी। टीबी मुक्त पंचायत पहल के अंतर्गत हर छोटे भौगोलिक क्षेत्र/पंचायत को टीबी मुक्त बनाने के लिए सरकार द्वारा विशेष प्रयास किये जा रहे हैं, जिससे कि टीबी उन्मूलन के व्यापक लक्ष्य को हासिल किया जा सके। टीबी मुक्त पंचायत पहल के अंतर्गत सेंट्रल टीबी डिवीजन द्वारा कुछ विशेष मानक तय किये गए हैं। इन मानकों पर जो भी ग्राम पंचायत खरी उतरेगी उस ग्राम पंचायत को टीबी मुक्त पंचायत घोषित किया जाएगा। इस अभियान के तहत सैंकडों ग्राम पंचायतें पिछले साल टीबी मुक्त हुई हैं और इस पहल के अंतर्गत इस साल भी देश में सैंकड़ों ग्राम पंचायतें टीबी मुक्त होने वाली हैं। टीबी मुक्त पंचायत पहल आगे चलकर टीबी मुक्त भारत अभियान के लिए मील का पत्थर साबित होगी। टीबी मुक्त पंचायत के लिए प्रमाण पत्र, एक वर्ष की वैधता के साथ, हर साल विश्व टीबी दिवस यानी 24 मार्च को जिला मजिस्ट्रेट/जिला कलेक्टर द्वारा योग्य ग्राम पंचायतों को जारी किया जाएगा। प्रमाण पत्र के साथ, स्वस्थ गांवों के प्रति उनके दृष्टिकोण के प्रतीक के रूप में टीबी मुक्त ग्राम पंचायत को महात्मा गांधी की एक छोटी प्रतिमा भी प्रदान की जाएगी। टीबी मुक्त पंचायत को प्रथम वर्ष महात्मा गांधी की कांस्य रंग की प्रतिमा, जो पंचायत लगातार दो वर्ष तक टीबी मुक्त रहती है उसे सिल्वर रंग की प्रतिमा और जो पंचायत लगातार तीन वर्ष तक टीबी मुक्त रहती है उसे गोल्डन रंग की प्रतिमा देकर सम्मानित किया जाएगा। टीबी मुक्त पंचायत पुरस्कार को संबंधित ग्राम पंचायत भवन में प्रदर्शित किया जाएगा। आज सरकार निक्षय पोषण योजना के जरिए टीबी के मरीजों को हर महीने 1000 रुपये पोषण के लिए दे रही है, इसके साथ ही टीबी मरीजों को पहचान करने वालों को भी सरकार इनाम राशि दे रही है यह भी सरकार का टीबी मुक्त भारत कि दिशा में एक बहुत बड़ा कदम है। इसके साथ ही सरकार ने प्राइवेट डॉक्टर्स और मेडिकल स्टोर्स कि लिए टीबी मरीजों से सम्बंधित जो दिशा निर्देश जारी किये है ये कदम भी राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) को मजबूती प्रदान करते हैं, इन दिशा निर्देशों के अंतर्गत हर प्राइवेट डॉक्टर्स को टीबी के मरीजों की जानकारी सरकार को देनी होगी। साथ ही साथ मेडिकल स्टोर वालों को टीबी मरीजों की दवाई से सम्बंधित लेखा-जोखा सरकार को देना होना। अगर इन दिशा निर्देशों का उल्लंघन होता है तो दोषियों पर जुर्माना और सजा की कार्यवाही हो सकती है। इसके अलावा जरूरी है कि सरकार को टीबी मरीजों के इलाज से सम्बन्धित दवाओं के प्रयोग के सम्बन्ध में प्राइवेट डॉक्टरों के लिये दिशा-निर्देश जारी करने चाहिए जिससे कि ड्रग रेजिस्टेंस को रोका जा सके। इसके अलावा सरकार प्रधानमंत्री टीबी मुक्त भारत अभियान के तहत लोगों और सामाजिक संस्थाओं को निक्षय मित्र बनाकर टीबी मरीजों को गोद लेने के लिए प्रेरित कर रही है, जिससे कि टीबी के मरीजों को सही से पोषण और उनका सही से ख्याल रखा जा सके। जो भी मरीज टीबी का पूर्ण इलाज लेकर ठीक हो जाता है, उसे टीबी चैम्पियन कहा जाता है। राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) के अंतर्गत इन टीबी चैंपियन की भागीदारी से समाज और देश में टीबी के प्रति जागरूकता पैदा की जा सकती है। भारत देश के हर शहर में जितने भी टीबी चैम्पियन हैं उनमे से जितने भी शिक्षित टीबी चैंपियंस हैं उनकी छंटनी की जानी चाहिए, इसके बाद सभी टीबी चैम्पियन को टीबी से संबंधित प्रशिक्षण जिला टीबी टीम द्वारा जिले में फिजिकल मोड में कराया जाना चाहिए, जिससे कि टीबी चैम्पियन को टीबी से सम्बंधित जानकारी हो सके। अगर टीबी चैम्पियन प्रशिक्षित और पढ़ा-लिखा होगा तो टीबी चैम्पियन घनी आबादी वाले क्षेत्रों, मलिन बस्तियों और अपने आसपास रहने वाले लोगों में जागरूकता अभियान के माध्यम से टीबी के मरीजों को खोजने में तेजी लाने में सरकार की मदद कर सकते हैं। टीबी चैम्पियन टीबी पर लोगों में समग्र रुप से जागरूकता लाने में मदद कर सकते हैं और बीमारी से जुड़े समाज में टीबी मरीजों के साथ हो रहे भेदभाव को दूर कर सकते हैं। समाज में टीबी रोग को लेकर जो हीन भावना फैली हुयी है और जो लोग इस बीमारी को कलंक के रूप में देखते हैं, उनके अन्दर जनजागरुकता के माध्यम से टीबी चैम्पियन द्वारा इस भावना को खत्म कराया जा सकता है। टीबी चैम्पियन को टीबी मरीजों की कॉउंसलिंग के लिए एनटीईपी से जोड़ा जा सकता है और टीबी चैम्पियन को प्रोग्राम के माध्यम से रोजगार उपलब्ध कराया जाए या आर्थिक रुप से मजबूत किया जाये तो वह निश्चित रूप से टीबी चैम्पियन की टीबी प्रोग्राम के प्रति अधिक रूचि बढ़ेगी। समय-समय पर टीबी चैम्पियन को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए, जिससे कि उनका अधिक मनोबल बढ़ेगा और प्रोग्राम के प्रति उसकी रूचि बढ़ेगी और समाज व देष में जागरुकता फैलाने में मदद मिलेगी। इसके साथ ही सरकार को विभिन्न टीमों के माध्यम से साल के 365 दिन सक्रिय क्षयरोग खोज अभियान चलाकर इसे जन-आंदोलन बनाना चाहिये। इस सक्रिय क्षयरोग खोज अभियान में स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं, विभिन्न एनजीओ और सामाजिक संस्थाओं या संगठनों को शामिल किया जाना चाहिए। जिससे कि देश के कौने-कौने से टीबी के मरीजों का पता लगाया जा सके और उसे सही समय पर उपचार दिया जा सके। इसके अलावा देश की प्रत्येक ट्यूबरक्लोसिस यूनिट/टीबी डिटेक्षन सेन्टर पर अत्याधुनिक आणविक जांचों जैसे कि सीबीनाट और ट्रूनाट का विस्तार किया जाना चाहिए जिससे कि टीबी के मरीजों के जल्द से जल्द निदान में आसानी होगी, अभी मौजूदा समय में ये जांचे प्रत्येक ट्यूबरक्लोसिस यूनिट/डीएमसी पर उपलब्ध नहीं है और जिस जगह ये जांचें उपलब्ध है उन्हें अत्यधिक सैंपल लोड का सामना करना पड़ता है और जांचों के परिणाम मरीजों को देरी से मिल पाते हैं। इसके साथ ही टीबी की अत्याधुनिक जांचों का भी विकेन्द्रीकरण किया जाना चाहिए जो टीबी के सही इलाज के आवश्यक होती है। इसके साथ कल्चर और डीएसटी प्रयोगशालाओं का विस्तार भी मंडल स्तर किया जाना चाहिए जिससे कि मरीजों की कल्चर और डीएसटी की जानों अनावश्यक देरी न हो और समय पर मरीजों को उनकी जांचों का परिणाम मिल सके। देश की प्रत्येक स्वास्थ्य सुविधा पर टीबी की दवाइओं की उपलब्द्धता सुनिश्चित की जानी चाहिए जिससे कि टीबी के मरीजों को भटकना न पड़े और टीबी के मरीजों विशेष देखभाल सुविधा प्रदान की जानी चाहिए जिससे कि टीबी मरीजों का राष्ट्रीय क्षयरोग उन्मूलन कार्यक्रम में विश्वास बढे। इन छोटे-छोटे कदमों से देश आने वाले समय में  टीबी मुक्त भारत के लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। कहा जाये तो भारत देश के लिये टीबी मुक्त भारत का लक्ष्य एक बहुत बडी चुनौती है क्योंकि भारत देष टीबी मरीजों के मामलों में पहले स्थान पर है, लेकिन कहा जाता है कि सकारात्मकता और कड़ी मेहनत से हर लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। विष्व को टीबी मुक्त करने के लक्ष्य 2030 से 5 साल पहले 2025 तक टीबी मुक्त भारत का लक्ष्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा तय किया गया लक्ष्य है, 2025 के अन्त तक देखने वाली बात होगी कि हम कितने टीबी मुक्त भारत के लक्ष्य के नजदीक पहुंचते हैं। अगर देश का प्रधानमंत्री देश को 2025 तक टीबी मुक्त करने के लिए प्रतिबध्दता व्यक्त करता है तो निश्चित रूप से आने वाले सालों में सरकार टीबी मुक्त भारत बनाने की दिशा में और कड़े कदम उठाएगी और ये कदम आने वाले सालों मे देश को टीबी मुक्त बनाने की दिशा में मील का पत्थर साबित होंगे। इसके साथ ही राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) की समय-समय पर समीक्षा की जानी चाहिए। सरकार को टीबी मुक्त भारत की दिशा में राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम की समय-समय पर कमियों का विश्लेषण और मूल्यांकन करना चाहिए, जिससे कि इन कमियों को मजबूती में बदला जा सके और भारत देश में टीबी के अंतिम मरीज तक पहुंचा जा सके और टीबी मुक्त भारत के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके। लेखक – ब्रह्मानंद राजपूत, आगरा (Brahmanand Rajput) Dehtora, Agra On twitter @33908rajput On facebook – facebook.com/rajputbrahmanand E-Mail- brhama_rajput@rediffmail.com

स्त्रीवेद

जिस स्त्री ने स्वयं की भकित, ज्ञान एवं कर्म संबंधी अंतश्चेतना का अधिकतम विसतार कर लिया है वह वेद जैसी ही है, जैसे – अरुंधति, शचि, सीता, राधा, गार्गाी और वर्तमान समय की अनेक प्रसिद्ध महिलाऐं।  जो स्त्री अपने सम्पर्क में रहने वाले पुरुष के भी आंतरिक व्यकितत्व को स्थूल से सूक्ष् म तक सम्भावित … Read more

न्यायिक प्रक्रिया में सुधार सर्वोच्च प्राथमिकता हो

भारत की न्याय प्रणाली विसंगतियों एवं विषमताओं से घिरी है। न्याय-व्यवस्था जिसके द्वारा न्यायपालिकाएं अपने कार्य-संचालन करती है वह अत्यंत महंगी, अतिविलंबकारी और अप्रत्याशित निर्णय देने वाली है। ‘न्याय प्राप्त करना और इसे समय से प्राप्त करना किसी भी राज्य व्यवस्था के व्यक्ति का नैसर्गिक अधिकार होता है।’ ‘न्याय में देरी न्याय के सिद्धांत से … Read more

मै कौन हूं

इस सवाल का जवाब चाहिए तो खुद को देखते रहो। खाते-पीते, उठते-बैठते, सोते-जागते, लड़ते-झगड़ते और अन्य सब कुछ करते हुए। तुम में जो देहधारी ‘मैं’ है, उसे यह सब करते रहने दो और तुम में ही जो ‘आत्म’ (जीव आत्मा) वाला ‘अहम’ है उसे यह सब देखने दो। यह दूसरा वाला मैं हमारी बुद्ध शक्ति … Read more

ऋषभ हैं सभ्यता और संस्कृति के पुरोधा पुरुष

भगवान ऋषभदेव जन्म जयन्ती 22 मार्च, 2025 पर विशेष जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ यानी भगवान ऋषभदेव विश्व संस्कृति के आदि पुरुष, आदि संस्कृति निर्माता थे। वे प्रथम सम्राट और प्रथम धर्मतीर्थ के आद्य प्रणेता थे। उनकी निर्मल जीवनगाथा हजारों वर्षों से जनजीवन को प्रेरणा प्रदान करती रही है। जैन, बौद्ध और वैदिक परम्परा में … Read more

ग्लेशियर संरक्षण जल संकट का प्रभावी समाधान

विश्व जल दिवस, 22 मार्च 2025 पर विशेष दुनिया के सामने स्वच्छ जल की समस्या गंभीर से गंभीरतर होती जा रही है। जल प्रदूषण एवं पीने के स्वच्छ जल की निरन्तर घटती मात्रा को लेकर बड़े खतरे खड़े हैं। धरती पर जीवन के लिये जल सबसे जरूरी वस्तु है, जल है तो जीवन है। जल … Read more

वन-संस्कृति को अक्षुण्ण रखना बड़ी चुनौती

अंतर्राष्ट्रीय वन दिवस 2025- 21 मार्च, 2025 भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता में वनों का सर्वाधिक महत्व रहा है, वन ऑक्सीजन, भोजन, ईंधन, दवाइयां, सुगंध, कागज़, और कपडे़ और कई तरह की चीज़ें देते हैं। वन जहां वैश्विक तापमान को बनाए रखने में मदद करते हैं वहीं वर्षा को नियंत्रित करते हैं। वन भूमि कटाव और … Read more

गौरैया के बिना जीवन संगीत अधूरा

गौैरैया विलुप्त होने की कगार पर पंहुची विश्व की सबसे पुरानी पक्षी प्रजाति है। सुदूर अतीत से पिछले एक-दो दशक तक हमारे घर-आंगन में फुदकने वाली एवं हमारे जीवन संगीत का अहम हिस्सा गौरैया आज विलुप्ति के कगार पर है। घरों को अपनी चीं-चीं से चहकाने वाली गौरैया अब दिखाई नहीं देती। इस छोटे आकार … Read more

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