-संजय कटारिया- केकडी, । मोदी लहर तथा केन्द्र व राज्य की मौजूदा सरकार के खिलाफ मतदान ने भले ही प्रदेश में कांग्रेस को हवा में उडा दिया है, मगर केकडी विधानसभा सीट के चुनाव परिणाम जो तस्वीर बयां कर रहे हैं, उसने यहां भाजपा की जीत के मायने बदल दिये हैं। यहां चुनाव परिणाम आंकडों के हिसाब से कांग्रेस विरोधी लहर का हिस्सा नहीं बना है। जिले की आठों विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा ने जीत का परचम लहराया है, इनमें केकडी भी शामिल है, मगर इस क्षेत्र में परिणामों के जोड-बाकी ने राजनैतिक विश्लेषकों को भी अचरज में डाल दिया है। हालांकि केकडी सीट भी प्रदेश के साथ कदमताल कर भाजपा के खाते में सूचिबद्ध हो गई है मगर युवा मतदाताओं के जुनून भरे जोश व तमाम तरह के स्थानीय मुद्दों के चुनावी माहौल पर असर माने जाने के बावजूद ये जीत कांग्रेस के बागी उम्मीदवार के कारण कांग्रेस के अधिकृत प्रत्याशी की हार के रूप में अधिक देखी जा रही है। केकड़ी में हुआ त्रिकोणीय मुकाबला कांग्रेस के लिए घातक साबित हुआ। इसमें भाजपा की 8867 वोटों से जीत हुई है, जबकि कांग्रेस व भाजपा के अलावा तीसरे नम्बर पर रहे एनसीपी के बाबूलाल सिंगारिया ने इस चुनाव में 17035 वोट हासिल किये हैं, जिससे परिणाम के सन्दर्भ में उनकी चुनाव में मौजूदगी बडी भूमिका में नजर आ रही है। चुनाव में पूर्व विधायक बाबूलाल सिंगारिया प्रमुख धुरी बनकर उभरें हैं। वे मूलत: कांग्रेस पार्टी से जुडे रहे हैं। इसी पार्टी से वे सन 1998 में केकडी क्षेत्र से विधायक भी चुने गये है। इस चुनाव के कई महीनों पूर्व ही उन्होंने केकडी से बागी बनकर चुनाव लडने की घोषणा कर दी थी, जिसके मुताबिक वे न केवल चुनाव में खडे हुए बल्कि उन्होंने करीब 17 हजार वोट लेकर नतीजों के समीकरण भी बदल दिये। भले ही वे एनसीपी उम्मीदवार के बतौर खडे हुए मगर उनकी दिलचस्पी कांग्रेस के अधिकृत प्रत्याशी मौजूदा विधायक रघु शर्मा को ही हराने में अधिक नजर आई, जिसमें वे कामयाब रहे, साथ ही उन्होंने दस साल बाद भी क्षेत्र में अपना व्यक्तिगत प्रभाव साबित कर दिखाया। राजनैतिक पंडितों के मुताबिक यह परिणाम क्षेत्र के कांग्रेस समर्थित मतों में सिंगारिया की सैंध के चलते उपजा समीकरण है, क्योंकि लाजमी तौर पर सिंगारिया को मिले मत सीधे-सीधे कांग्रेस को नुकसान के रूप में देखे जा रहे हैं। चर्चाओं के मुताबिक ये समीकरण यह भी स्पष्ट कर रहा है कि मोदी लहर व सरकार के खिलाफ असंतोष के प्रतिकार के बतौर क्षेत्र के चुनावी परि²श्य में कहीं न कहीं विकास का मुद्दा भी जनमानस में मौजूद रहा है। विकास बनाम व्यवहार के तराजू पर तुला यह चुनाव अंतत: वोटों के परम्परागत विभाजन में बदलकर रह गया। कुलमिलाकर विश्लेषकों का मानना है कि यदि सिंगारिया चुनाव मैदान में नहीं होते तो रघु शर्मा इस तरह की लहर के बावजूद चुनाव जीत सकते थे। हालांकि स्थानीय मुद्दों पर जातिगत ढंग से भी मतदाताओं ने परम्परागत धरातलों से अपने रू ख में बदलाव किया है तो उधर मोदी के दीवानों ने भी भाजपा को मिले वोटों में इ$जाफा किया मगर लब्बोलुआब यह कि वोटों का ध्रुवीकरण किसी भी प्रकार हुआ हो,जीत का सेहरा भाजपा के सिर बंधा है और इसका जश्र भी मनाया जा रहा है, जिसके भाजपा प्रत्याशी शत्रुघन गौतम व उनके समर्थक हकदार भी है, मगर अब आगे जिस ढंग से चुनाव में स्थानीय मुद्दे उभरें हैं उनकी रोशनी में नवनिर्वाचित विधायक गौतम के लिये आने वाला समय अत्यंत चुनौतीपूर्ण रहने वाला है। उन्हें शासन-प्रशासन पर प्रभावी नियंत्रण बनाकर इलाकें में सामाजिक समरसता व निर्भयता का वातावरण बनाये रखने की पहल के साथ साथ लुंज-पुंज व जर्जर हो चुकी चिकित्सा सेवाओं की बहाली के लिये भी मैराथन प्रयास करने होंगे। क्षेत्र से भ्रष्टाचार मिटाने व भ्रष्ट लोगों को दण्डित करने की घोषणा तो वे विजय रैली के दौरान मोदी सेना के कार्यक्रम में कर चुके हैं मगर इस दिशा में उनकी कोशिशें लोहे के चने चबाने जैसी होगी। कुलमिलाकर क्षेत्र के मतदाताओं की कई आशंकाओं को निर्मूल साबित करने के लिये उन्हें अपनी प्राथमिकतायें तय करते हुए एक प्रभावशाली शुरुआत करनी होगी ताकि जिस उम्मीद में मतदाताओं ने उन्हें अपने कन्धों पर उठाया है, वे पूरी हो सके।