क्या रलावता का विकल्प तलाशा जाएगा?

महेन्द्र सिंह रलावता
महेन्द्र सिंह रलावता

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद पर अजमेर के सांसद व केन्द्रीय कंपनी मामलात राज्य मंत्री सचिन के काबिज होने के बाद अजमेर शहर जिला कांग्रेस में भी बदलाव की सुगबुगाहट शुरू हो गई है। हालांकि मौजूदा अध्यक्ष महेन्द्र सिंह रलावता उनकी ही पसंद के हैं और उन्हें अध्यक्ष भी उन्होंने ही बनवाया था, इस कारण कई लोग यह मानते हैं कि कम से कम लोकसभा चुनाव तक तो उन्हें नहीं हटाया जाएगा, मगर शहर कांग्रेस की चरम पर पहुंची गुटबाजी के कारण शहर की दोनों सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशियों की बुरी तरह से हार के बाद सचिन पर दबाव बन सकता है कि वे संगठन को दुरुस्त करने के लिए अध्यक्ष को बदलें।
बताया जाता है कि हालांकि रलावता सचिन की पसंद रहे हैं, मगर विधानसभा चुनाव में अजमेर उत्तर की सीट के टिकट के लिए अडऩा सचिन को अच्छा नहीं लगा बताया। सचिन किसी सिंधी को ही टिकट देना चाहते थे, मगर खींचतान के चलते पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के करीबी पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती टिकट पाने में कामयाब हो गए। इसका परिणाम ये रहा कि कांग्रेस ने उत्तर की तो सीट खोयी ही, दक्षिण में भी सचिन की पसंद के हेमंत भाटी हार गए। बेशक कांग्रेस विरोधी लहर के कारण हार का अंतर ज्यादा रहा, मगर कांग्रेस के दोनों प्रत्याशियों की शिकायत है कि उन्हें संगठन का साथ नहीं मिला।
चर्चा है कि पायलट अपनी पसंद के ही किसी नए चेहरे को शहर अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी दे सकते हैं। पूर्व विधायक डॉ. श्रीगोपाल बाहेती व पूर्व विधायक ललित भाटी से उनकी नाइत्तफाकी जगजाहिर है और पूर्व विधायक डॉ. राजकुमार जयपाल पर भी दाव खेले जाने की संभावना कम बताई जा रही है। ऐसे में पायलट के करीबी शहर कांग्रेस उपाध्यक्ष कैलाश झालीवाल का नंबर आ सकता है। वे तकरीबन तीस साल पुराने सक्रिय व जुझारू नेता हैं, मगर सवाल ये है कि क्या उनके लिए आम स्वीकार्यता बन पाएगी। इसी प्रकार विजय जैन के नाम की भी चर्चा है। अजमेर दक्षिण के कांग्रेस प्रत्याशी रहे हेमंत भाटी का नाम भी उभर कर आया है। वे पुराने दिग्गज कांग्रेसी स्वर्गीय सेठ श्री शंकर सिंह भाटी के परिवार के होने के कारण प्रतिष्ठित व्यवसायी व समाजसेवी तो हैं ही साधन संपन्न भी हैं। यदि सभी कांग्रेसी उन्हें स्वीकार कर लें तो संगठन चलाने में उन्हें कोई दिक्कत नहीं आएगी। नया और ऊर्जावान चेहरा तो हैं ही। यूं पूर्व उपाध्यक्ष डॉ. सुरेश गर्ग भी एक विकल्प हो सकते थे और उन्हें सरकारी नौकरी से सेवामुक्त होने के बाद सचिन ने ही उपाध्यक्ष बनवाया था, मगर अज्ञात गलतफहमियों के कारण उन्हें रलावता वाली कार्यकारिणी में नहीं रखा गया। ऐसे में सचिन से उनकी दूरी हो गई। दावेदार नगर निगम मेयर कमल बाकोलिया भी हो सकते थे, उनका संगठन के नेताओं को साथ ले कर चलने का उनका परफोरमेंस नजर नहीं आता। नगर सुधार न्यास के पूर्व अध्यक्ष नरेन शहाणी भी एक विकल्प हो सकते थे, मगर लैंड फॉर लैंड मामले में फंसने के बाद संभावना शून्य हो गई। सचिन से भी उनकी दूरी बताई जाती है। कुल मिला कर सचिन के लिए रलावता के मुकाबले नया चेहरा तलाशना कुछ मुश्किल काम है।

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