जिस लाल-लाल टमाटर को लेकर केन्द्र की मोदी सरकार की जम कर छीछालेदर हो रही है, बताते हैं कि पिछले साल भी वह इसी तरह से उछला था। बस चूंकि लोगों की भूलने की बीमारी है, इस कारण उस महंगे टमाटर को तो भूल गए और उन्हें केवल आज का महंगा टमाटर नजर आ रहा है।
बेशक इन दिनों महंगे टमाटर व आलू को लेकर चहुं ओर एक ही जुमला सुनाई देता है कि लो जी अच्छे दिन आ गए, और ये गले भी आसानी से उतरता है। आम आदमी यही समझ रहा है कि मोदी ने जनता को धोखा दिया है और झूठे सपने दिखा कर सत्ता पर काबिज हुए हैं। दूसरी ओर इस बारे में सब्जी वालों का कहना है कि लोगों को याद नहीं है। पिछले साल भी टमाटर इतना ही महंगा था। संभव है कहीं दस रुपए कम हो। इसका कारण वे टमाटर बाहर से आना बताते हैं। साथ ही स्वीकार करते हैं कि यह सब जमाखोरी के कारण हो रहा है। यदि इस लिहाज से देखा जाए तो यह सरकार की ही नाकामी है कि वे जमाखोरों पर कोई अंकुश नहीं लगा पाई। ऐसा इसलिए कि चुनाव में इन्हीं जमाखोरों से भाजपा ने चंदा लिया था। ऐसे में भला वह उनके खिलाफ सख्ती कैसे बरत सकती है।