ब्रह्म स्थान का रखे ध्यान

पंडित दयानन्द शास्त्री
पंडित दयानन्द शास्त्री

वास्तु प्राकृतिक ऊर्जाओं का सही उपयोग करने की कला हैं । कुछ वास्तु टिप्स अपनाकर अपने व्यावसायिक प्रतिष्ठान, निवास स्थान एवं उद्योग में विपरीत वास्तु होने पर स्वयं उसे ढंूढ कर सही कर सकते हैं । ऐसा ही एक सामान्य वास्तु दोष ब्रह्म स्थल से संबंधित अधिकांश स्थानों पर पाया जाता हैं ।
वास्तु शास्त्र में ब्रह्म स्थल का विशेष महत्व हैं जब भी कोई वास्तुशास्त्री किसी भवन का अवलोकन करता हैं तब वह ब्रह्म स्थल का विशेष रूप से ध्यान रखता हैं । यदि भवन निर्माण के समय ब्रह्म स्थल का ध्यान नहीं रखा जाए तो उस भवन में निवास करने वाले व्यक्तियों के स्वास्थ्य तथा आचरण पर इसका सीधा प्रभाव होता हैं ।

क्या हैं ब्रह्म स्थल:- किसी भी भूखण्ड के मध्य भाग को ब्रह्म स्थान या नाभी स्थल कहां जाता हैं । ब्रह्म स्थान को जानने के लिए किसी भूखण्ड या मकान की लम्बाई को तीन भागों में बाटिए । तत्पश्चात उसकी चोडाई को चार भागों में बांटकर सभी भागों को रेखाओं के माध्यम से इस प्रकार से मिलाए कि वह चौकोर आकार में नजर आने लगें । इस प्रकार कुल नौ वर्ग या आयत बन जावेगें । इनमें से सबसे मध्य वाला भाग ब्रह्म स्थान कहलाता हैं ।

ब्रह्म स्थल के लाभ:- यदि ब्रह्म स्थल खुला रहा तो भवन के सभी कमरो को प्राकृतिक हवा, पानी, धूप आदि आसानी से प्राप्त हो सकेगी और भवन में रहने वाले सभी व्यक्तियों के स्वास्थ्य पर इसका सीधा प्रभाव होगा । तुलसी का भारतीय संस्कृति में विशेष स्थान हैं अतः भवन के बिल्कुल मध्य में तुलसी लगाने से भवन में बहने वाली हवा शुद्ध होगी क्योकिं तुलसी में औषधीय गुण होते हैं । इसके प्रभाव से भवन में रहने वालों को मानसिक शांति का आभास होगा । तुलसी का पौधा गमले में इस प्रकार लगाएं कि गमले की मिट्टी का संपर्क सीधा नीचे भूखण्ड की मिट्टी से हो अर्थात तुलसी की जड़े नीचे भूमि तक आसानी से विकसित हो सके।

ब्रह्म स्थल में क्या ना करें:– ब्रह्म स्थल पर सेप्टिक टंेक, भूमिगत पानी की टंकी, बोरिंग, खंभा, सीढ़ी, बिम, छज्जा, आदि का निर्माण ना करें । ब्रह्म स्थान में गन्दी, नई-पुरानी, छोटी या बड़ी वस्तु नहीं होनी चाहिए । भारतीय परम्परा में धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष नामक चार पुरूषार्थ हैं । भूखण्ड का ब्रह्म स्थल इन्ही पुरूषार्थो की प्राप्ति के लिए होता हैं । ब्रह्म स्थल निर्दोष होना चाहिए वहां किसी भी प्रकार का निर्माण नहीं होना चाहिए ।

ब्रह्म स्थल के दोष कैसे करे दूर:- ब्रह्म स्थल पर सत्संग हरिकीर्तन, हरिभजन, आदि से दूर हो जाता हैं। ब्रह्म स्थल की निष्काम भाव से पूजा करें, ईश्वर की उपासना करें कुछ मांगे नहीं । ब्रह्म स्थल के नौ चौखानों के ऊपर एक-एक पिरामिड लगाने से यह दोष कम हो जाता हैं । भागवत गीता का नियमित पाठ, गुरूनानक की वाणियों के पाठ अथवा कुरान की आयतों के नियमित पाठ से यह दोष कम होता हैं। इस स्थान पर नियमित रूप से रामायण पाठ, कुरान या बाईबील पढ़ने से इस समस्या का निदान होता हैं। ब्रह्म स्थान ठिक कर लेने से ईशान कोण का दोष स्वतः ठिक हो जाता हैं।
अतः सुख-समृद्धि और स्वास्थ्य की प्राप्ति हेतु आपके सपनों का महल इस प्रकार बनाएं कि ब्रह्म स्थल का दोष न रहें । ब्रह्म स्थान वास्तु शास्त्र के साथ-साथ आध्यात्म और दर्शन से संबंध रखता है।
पं0 दयानन्द शास्त्री
विनायक वास्तु एस्ट्रो शोध संस्थान ,
मो0 नं0 09024390067
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