भाजपा के लिए नसीराबाद की राह नही होगी आसान

nasirabad upchunav-राहुल चौधरी- विधानसभा उप चुनावों की घोषणा होते ही राजस्थान की चार सीटों के लिए राजनैतिक हलचले तेज हो गयी है। राजस्थान में उप-चुनाव, सत्ताधारी दल भाजपा औऱ वसुंधरा राजे के नेतृत्व का मिड़-टर्म टेस्टमाना जा रहा है। ऐसे में इन चुनावों की महत्ता औऱ बढ़ जाती है क्योकि चार में से दो सीट – ऩसीराबादतथा सूरजगढ़ पारंपरिक रुप से कांग्रेस का गढ़ मानी जाती है।
सूरजगढ़ की स्थिती लगभग साफ सी है क्योकि पूर्व विधायक श्रवण कुमार कांग्रेस के लिए एक बारफिर से तुरुप का पत्ता साबित हो सकते है वही भाजपा के जाट कार्ड़ को यादवों और राजपूतो के विरोधका सामना करना पड़ सकता है।
परन्तु सबसे रोचक स्थिती नसीराबाद विधानसभा क्षेत्र में सामने आ रही है, जहां जातीय समीकरणोंने सत्ताधारी पार्टी के नये शगल – बाहरी तथा मोटे आसामी उम्मीदवारों पर दाँव लगाने को, चौसरबिछने से पहले ही फेल कर दिया है। भाजपा से बाहरी उम्मीदवार के रुप में दिगम्बर सिंह और दिल्लीके अवतार सिंह भड़ाना का नाम सुर्खियों में है। परन्तु भाजपा द्वारा बाहरी उम्मीदवार उतारने कीस्थिती में भाजपा का पारंपरिक वोट बैक रावत, कुमावत, जांगिड़, ब्राह्मण और बनिया, उनसे दूरी बनासकता है। ऐसे में वसुंधरा राजे के सामने चुनौती साफ है कि उप-चुनावों में जीत हासिल करना उनकीप्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया है।
कांग्रेस की स्थिती नसीराबाद सीट पर ज्यादा बेहतर नजर आती है। गुर्जर वोटो का बाहुल्य तथादलित, मुस्लिम व काठातों का समर्थन कांग्रेस के उम्मीदवार को सीधा लाभ पहुचाता है। कांग्रेस केरणनितीकार इन तथ्यो से परिचित है, यही कारण है कि पार्टी ने चुनावी पर्यवेक्षक तय करते समयजातिगत समीकरणों का पूरा ध्यान रखा है। गोविन्द सिंह ड़ोटासरा, विधानसभा में सबसे एक्टिवकांग्रेसी विधायको में से एक है, वही लक्ष्मण सिंह यूं तो भीम क्षेत्र से है पर रावत वोटो को कांग्रेस केपाले में एकजुट रखने में महत्वपूर्ण साबित हो सकते है। हालांकि रावत पारंपरिक रुप से भाजपा कावोट बैंक रहा है परन्तु लंबे समय से संगठन और सत्ता में कद्दावर रावत नेता रासासिंह रावत कीअनदेखी तथा रावत युवाओं को जोड़ने में विफलता भाजपा को भारी पड़ सकती है। पर्यवेक्षक के रुपमें मास्टर भंवरलाल औऱ गंगादेवी की नजर दलित वोटो पर टिकी रहेगी। ऐसे में कांग्रेस ने नसीराबादविधानसभा क्षेत्र के लिए पहला पासा बिल्कुल सही फैंका लगता है।
कांग्रेस से उम्मीदवारी के लिए सचिन पायलेट का नाम रेस में सबसे आगे है वही सचिन के मैदान मेंनही उतरने की स्थिती में कांग्रेस फिर से महेन्द्र सिंह गुर्जर पर दांव खेल सकती है। कुछ कांग्रेसी गुटपूर्व राज्यपाल औऱ 1980 से 2003 तक लगातार छह बार सीट को जीतने वाले स्वर्गीय गोविन्द सिंहगुर्जर की पत्नी का नाम भी आगे बढा रहे है। परन्तु इस तरह के प्रयोग में कांग्रेस पिछले विधानसभामें लूणी में मात खा चुकी है जहां स्वर्गीय रामसिंह विश्नोई की वृद्ध पत्नी, कांग्रेस के लिए ज्यादा वोटनही जुटा पायी थी। ऐसे में कांग्रेसी पाले में सचिन पायलेट की दावेदारी ही सबसे मजबूत और प्रेक्टीकल मानी जा रही है।
सचिन पायलेट के लिए नसीराबाद की मायने ….
सचिन पायलेट आज फिर से राजनैतिक दो-राहे पर खड़े नजर आ रहे है, जहां उन्हे अपनी राजनितीकी अगली रणनिती औऱ रास्ते का फैसला करना है। लोकसभा चुनावों के दौरान भी ऐसी ही स्थिती सेगुजरे पायलेट ने आखिरकार सवाई माधोपुर की बजाय अजमेंर से लड़ना पसंद किया था। वही सूत्रोंकी माने तो पायलेट फिर से चुनाव लड़ने या ना लड़ने की दुविधा से जूझ रहे है।
कांग्रेस का आम कार्यकर्ता पायलेट से उम्मीद लगाये बैठा है, वही ऐसी ही उम्मीद कांग्रेस आलाकमानको भी है। दस जनपथ के सूत्र बताते है कि भले ही पार्टी को राहुल की टीम के हवाले कर दिया गया हैपर अभी भी हर महत्वपूर्ण मामले पर सोनिया गांधी की पैनी नजर रहती है।
सोनिया गांधी को विधानसभा चुनावों में भी राजस्थान में बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद थी पर मोदी नामके तूफान के सामने सभी उम्मीदे धराशाही हो गयी। परन्तु अब, जब सोनिया गांधी कांग्रेस की अगलीपीढी को तैयार करने में जुटी है, सचिन पायलेट की राजनैतिक समझबूझ उन्हे ऊंचे मुकाम तकपहुंचा सकती है।

राहुल चौधरी
राहुल चौधरी

नसीराबाद का चुनावी रण, पायलेट को भले ही दुर्गम लग रहा हो पर सोनिया गांधी ने कांग्रेस के लिए अपनी आहुति देने वालो को हमेशा सराहा और आगे बढ़ाया है। ऐसे में सचिन पायलेट की नसीराबाद से जीत उन्हे राजस्थान की राजनिती का नया योद्धा साबित कर सकती है वही उनकी हार भी दस जनपथ तथा राज्य ईकाई में उनके कद को बढ़ाने का काम करेगी।
रोचक सत्य ये भी है कि सचिन पायलेट की उम्मीदवारी के सामने भाजपा के पास कोई विकल्प नजर नही आता। ऐसे में सचिन पायलेट का नसीराबाद में दांव लगाना उनको ईलिट राजनेता से, संघर्शशील जुझारु की छवि निश्चित रुप से देगा।
पायलेट की चुनावी रण में उतरने की घोषणा, अन्य तीन सीटों पर भी कांग्रेस उम्मीदवारों के लिएस्टीराईड़ साबित होगी, इसमे कोई दो-राय नही है। ऐसे में सचिन का अपनी टीम को स्वंय लीड़ करना,राजस्थान की कांग्रेस में नयी जान फूंक सकता है।

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