35 साल से नजर आ रहा है ख्वाजा साहब की दरगाह पर कौमी एकता का रंग

GHANI GURDEJZIहै कोई जो इस आतंक की लंका को जला दे।
क्या अब दुनिया में कोई हनुमान नहीं है।।

मोहब्बत नफरत से ज्यादा ताकतवर होती है।
मोहब्बत ही सबसे बड़ा धर्म है।।

अपने मफाद अपनी तरक्की के वास्ते।
कुछ लोग चाहते हैं कि नफरत बनी रहे।।

चाहे जुबान पर कितनी भी शिकायत बनी रहे।
आंखों में प्यार, दिल में मोहब्बत बनी रहे।।

कुछ इसी जज्बे और भावनाओं के साथ सिंधियों के आराध्य देव झूलेलाल जयंती पर पिछले 35 वर्षों से सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह पर कौमी एकता का रंग देखने को मिलता है। झूलेलाल जयंती का जुलूस प्रतिवर्ष जब ख्वाजा साहब की दरगाह पर पहुंचता है तो मौलाई कमेटी से जुड़े दरगाह के खादिम बड़ी संख्या में एकत्रित होते हैं। कमेटी के लोग पूरे आदर भाव से जुलूस में शामिल लोगों के सिर पर साफे बांधते हैं। कमेटी के संस्थापक सैय्यद अब्दुल गनी गुर्देजी, खादिमों की संस्था अंजुमन के सचिव हाजी सैय्यद वाहिद हुसैन अंगारा, सैय्यद मोइन हुसैन सरकार, नूर आलम चिश्ती, वकार जमाली, महमूद मियां चिश्ती, यासिर गुर्देजी, जकरिया गुर्देजी आदि ने बताया कि चेटीचंड के जुलूस का स्वागत दरगाह पर करने की शुरुआत वर्ष 1980 से की गई थी। इस परंपरा का निर्वाह लगातार किया जा रहा है और इस बार भी 21 मार्च को चेटीचंड का जुलूस दरगाह पर पहुंचेगा, तो जुलूस में शामिल एक हजार से भी ज्यादा लोगों को सूफी बसंती रंग के साफ बांधे जाएंगे। जिस वक्त साफे बांधे जा रहे होंगे उस समय कौमी एकता का मंजर देखने लायक होगा। ख्वाजा साहब की दरगाह से हमेशा से कौमी एकता का संदेश जाता रहा है। अब जब देश में साम्प्रदायिक सद्भावना के माहौल को बिगाडऩे का काम हो रहा है, तब एक बार फिर 21 मार्च को अजमेर से देशभर में सद्भावना का संदेश जाएगा। सूफी बसंती रंग के साफे तैयार करवा लिए गए हैं अब सिर्फ चेटीचंड के जुलूस का बेसब्री से इंतजार किया जा रहा है।
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in) M-09829071511

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