राजेश टंडन” पुलिस की न दोस्ती अच्छी औऱ न दुश्मनी” इस विचार धारा के चलते हुए कैसे सार्थक होगा यह नारा कि अपराधियों में भय औऱ आमजन में विश्वास, आमजन तो पुलिस से दूरी बनाये रखता है औऱ पुलिस पर विश्वास ही नही करता है ऐसे में तो पुलिस अपराधो पर नियंत्रण नहीं रख पायेगी ,लोग छोटे बच्चों को डराते है सो जा नहीं तो पुलिस पकड लेगी, ये डर की नीवं बच्चपन में ही रख दी जाती है।औऱ ये पुलिस की छवि अबोध बालक के कोमल मन में घर कर जाती है वो पुलिस को हिकारत की नजर से देखता है ,बडा हो कर भी उसका नजरीया नहीं बदलता है औऱ इस ओर पुलिस के बडे अधिकारी औऱ सरकारें भी कोई चिन्तन नहीं करती है।अब समय आ गया है पुलिस को पीपुल्स फ्रेंडली बनाना पडेगा कि पुलिसकर्मीयों को बंदूक,टोपी, बैल्ट औऱ वर्दी लोगों की हिफाजत के लिये मिली है नाकी लोगों को लूटने के लिये मिली है।सिपाही स्तर पर ज्यादा भ्रष्टाचार भी नहीं है उनको तो पुलिस के बडे अधिकारी ही बिगाडते है, हर थाने पर थानेदार का एक मर्जी दान सिपाही होता है जिसके जरीये सारा लेन देन होता है हल्के से वोही मंथली वसूली करता है औऱ फिर एक अनुपात में सारे बडे अधिकारी यो तक उनकी हैसियत अनुसार पहुँचाई जाती है ये पैसा नाजायज काम होने देने के ऐवज में लिया जाता है बस यहां से ही समाज में पुलिस के प्रती घृणा लोगों में पैदा हो जाती है औऱ दूरियां बढती जाती है आम आदमी को असुविधा दे कर सुविधा शुल्क जो लेती है पुलिस फिर वो खाई नहीं पटती है।इसमें पुलिस को अपना नजरिया बदलना पडेगा मित्रवत व्यवहार करना पडेगा ,सरकारों को पुलिस को ज्यादा सुविधा देनी पडेगी नफरी बढानी पडेगी ,पुलिस से राजनीतिक लोगो औऱ पुलिस अफसरों को बेगारें लेनी बंद करनी पडेगी पैसे ले कर पोस्टिंग देनी बंद करनी पडेगी तब जा कर फ्रेंडली पुलिस बनेगी। राजेश टंडन