एस.पी.मित्तलतकदीर की पर्ची से भाजपा के धर्मेन्द्र गहलोत अजमेर के मेयर बन गए हैं। अपनी ही पार्टी के पार्षद सुरेन्द्र सिंह शेखावत की खुली बगावत के बाद जिन परिस्थितियों में गहलोत मेयर बने हैं, उन्हें राजनितिक दृष्टि से आसान नहीं माना जा सकता। गहलोत तब मेयर बने हैं, जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अजमेर को स्मार्ट सिटी बनाना चाहते हैं। एक ओर गहलोत के सामने स्मार्ट सिटी की चुनौती है तो दूसरी ओर अपनी ही पार्टी में बगावत की मुसीबत है। इस पर हाईकोर्ट का सख्त फैसला भी है। मुख्य न्यायाधीश रहे सुनील अंबवानी ने स्पष्ट आदेश दिए है कि शहर भर के अवैध कॉम्पलेक्स तोड़ दिए जाएं। यह काम गहलोत के नगर निगम को ही करना है। यदि 30 अगस्त तक अवैध कॉम्पलेक्स नहीं तोड़े गए तो शहर का कोई भी व्यक्ति न्यायालय की अवमानना का मामला हाईकोर्ट में दर्ज करवा सकता है। क्या गहलोत अगले चार-पांच दिनों में कोई बड़ा अभियान चलाकर अवैध कॉम्पलेक्स तोड़ेंगे? हाईकोर्ट के फैसले पर कोई टिप्पणी किए बगैर बहुत से कॉम्पलेक्स निर्माता गहलोत की ओर आस लगाए बैठे हैं। हालांकि ऐसी उम्मीद पूर्व मेयर कमल बाकोलिया से भी लगाई गई थी, लेकिन आम धारणा है कि गहलोत एक दृढ़संकल्प वाले राजनेता हैं। यदि कोई काम करने का फैसला कर लिया तो उसे हर हालत में पूरा करते हैं। रास्ते में जो भी बाधा आती है उसे सख्ती के साथ हटाते हैं। शहर के लोगों ने गहलोत की कार्यप्रणाली पहले भी देखी है। गहलोत वर्ष 2005 से 2010 तक मेयर रह चुके है। जहां बाकोलिया के कार्यकाल में निगम का प्रशासन पूरी तरह ढीला और बेदम हो गया था वहीं अब उम्मीद है कि गहलोत के शासन में निगम प्रशासन न केवल मजबूत होगा बल्कि फैसलों की क्रियान्विति भी तेजी के साथ होगी। जब पीएम मोदी की पहल पर अजमेर को स्मार्ट सिटी बनाना है तो फिर अवैध कॉम्पलेक्स मालिकों के खिलाफ कार्यवाही भी करनी पड़ेगी। गहलोत जब विपक्ष में थे तो उन्होंने अवैध निर्माणों के खिलाफ आवाज भी उठाई थी। गहलोत का कहना रहा कि निगम में भ्रष्टाचार होने की वजह से अवैध निर्माण हो रहे हंै। अब गहलोत को उस भ्रष्टाचार को भी रोकना है। शहर भर में मार्ग निर्धारण की जो समस्या गहलोत अपने पिछले कार्यकाल में छोड़ गए, उस समस्या का खामियाजा शहरवासी आज भी भुगत रहे हंै। अब यह भी देखना है कि गहलोत मार्ग निर्धारण की समस्या का समाधान किस प्रकार करते है। गहलोत के सामने प्रभावशाली और धनाढ्य व्यक्तियों के भू-रूपांतरण के मामले भी हैं। ऐसे लोगों ने पूरी ताकत लगाकर कांग्रेस के शासन में अपने भूखण्डों को आवासीय से व्यावसायिक करवा लिया हैं, लेकिन इस आदेश की क्रियान्विति अभी तक भी नहीं हुई है। देखना है कि बहुचर्चित और विवादित भू-रूपांतरण के मामलों को गहलोत किस प्रकार निस्तारित करते है। ऐसे कई मामले हैं जिनको लेकर विपक्ष में रहते हुए गहलोत ने आलोचना की थी, लेकिन अब उन सभी मामलों पर गहलोत को ही निर्णय लेना है। सफाई कर्मचारियों के वेतन में हो रहे खुले भ्रष्टाचार को बनाए रखा जाता या फिर बंद किया जाता हैं। यह भी गहलोत के लिए चुनौती भरा काम है। निगम के आयुक्त एच.गुईटे भी एक समस्या है। गुईटे को हिंदी नहीं आती है जिसकी वजह से निगम का सामान्य कामकाज प्रभावित हो रहा है। निगम में अधिकारियों का भी अभाव है। दो उपायुक्त की जगह एक ही श्रीमती सीमा शर्मा कार्यरत हंै। श्रीमती शर्मा भी निगम में रहने को इच्छुक नहीं हैं। ऐसे में गहलोत को प्रशासनिक ढांचे में भी शीघ्र बदलाव करना होगा।
(एस.पी. मित्तल)(spmittal.blogspot.in)M-09829071511
1 thought on “धर्मेन्द्र गहलोत ने पहना कांटो भरा ताज”
वो कितने द्रढ़ संकल्पि है इसका पता उनके पूर्व कार्यकाल से चलता है जब sp ने सरे बाजार मारा था था और उनके सहयोगी भी भाग गए थे और एक और लाला बन्ना है जिनके चाहने वालो का अंत ही नही है सब साथ है उनके आज भी जब कोई सीट नही है और सीट होती या वो मेयर पद के दावेदार होते तो निविरोध जीत दर्ज करते पॉवर देखो बन्दे का एक आवाज़ में पुरे कांग्रेस पिच्छे खड़ी हो गयी वो भी खुद कांग्रेस अध्यक्ष की अग्या से ये है रियल जीत फिर भी जीता|
वो कितने द्रढ़ संकल्पि है इसका पता उनके पूर्व कार्यकाल से चलता है जब sp ने सरे बाजार मारा था था और उनके सहयोगी भी भाग गए थे और एक और लाला बन्ना है जिनके चाहने वालो का अंत ही नही है सब साथ है उनके आज भी जब कोई सीट नही है और सीट होती या वो मेयर पद के दावेदार होते तो निविरोध जीत दर्ज करते पॉवर देखो बन्दे का एक आवाज़ में पुरे कांग्रेस पिच्छे खड़ी हो गयी वो भी खुद कांग्रेस अध्यक्ष की अग्या से ये है रियल जीत फिर भी जीता|