राजेन्द्र हाड़ाअजमेर लिटरेचर फेस्टिवल के नाम से होटल अजमेर मेरवाड़ा में हुए तीन दिन के इस आयोजन में लिटरेचर का कितना, क्या मनन-चिंतन हुआ इसे छोड़िए परंतु इन दिन आरएसएस और भाजपा को वक्ताओं ने मंच से पानी पी पीकर कोसा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक को नहीं बख्शा गया। पहले दिन यानि 18 सितंबर, शुक्रवार की शाम पत्रकार ओम थानवी ने नई परिभाषा दी। यह संघ-परिवार नहीं संघ गिरोह है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को बेवकूफ का विशेषण देते हुए उनके 56 इंच सीने को लक्ष्य कर कहा पिछले दिनों भोपाल मे हुए हिन्दी सम्मेलन में मोदी ने हिन्दी में जो भाषण दिया उसमें 56 दफा अंग्रेजी के शब्द इस्तेमाल किए। अगले दिन फिल्म समीक्षक जय प्रकाश चौकसे बोले 56 इंच वालों का दावा देखा। 15 लाख रूपए मेरे ख्यालों में आ गए। उससे मैं अपनी पत्नी को नौलखा हार ले आया। शायर शान काफ निजाम ने शेर पढ़ा अच्छे दिन कब आएंगे। या यूं ही मर जाएंगे। आप पार्टी के नेता और कवि विश्वास कुमार भी कम नहीं बोले परंतु विश्वास कुमार का तो भाजपा और संघ को गाली देना उनकी राजनीतिक आदत या मजबूरी मानकर उपेक्षित किया जा सकता है। जहां तक ओम थानवी की बात है वे पिछले दिनों काफी चर्चा मंे रहे हैं। उनकी पुस्तक पर उन्हें इनाम दिया गया है जो उन्होंने राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह के हाथों खुशी-खुशी ग्रहण किया है। थानवी जनसत्ता में लिखे अपने लेखों में दसियों दफा कल्याण सिंह को बाबरी मस्जिद ढहाने के लिए गालियां दे चुके हैं। जयप्रकाश चौकसे की पहले दिन हालत यह थी कि श्रोता नहीं होने के नाम पर वे मंच पर जाने को तैयार ही नहीं हो रहे थे। श्रोताओं के नाम पर एक अंग्रेजी स्कूल की लड़कियों को बैठाया गया तो श्रोता मेरे अनुरूप नहीं है कहते हुए मंच से उतरने को उतावले हुए जा रहे थे। पांडाल ज्यादतर समय खाली पड़े रहे। चर्चाओं के लिए चार पांडाल बनाए गए। वक्ता चार और श्रोता दो जैसी वास्तविकता सामने आई तो चार के दो पांडाल कर दिए। दूसरे ही नही अढाई दिन का झौंपड़ा नामक पांडाल को तो वाहन पार्किंग स्थल में तब्दील कर दिया। महंगे खाने और महंगे पानी ने लोगों को पहले दिन भूखे-प्यासे मरने को मजबूर कर दिया। पानी की कीमत थी बीस रूपए लीटर। बताते हैं कि पुरानी भागचंद जी की कोठी नामक यह स्थान इसके मालिकों ने समारोह के लिए फ्री दे दिया। वही चेहरे जो शहर की हर नई बनने और तेजी से बंद होने वाली संस्था में नजर आते हैं। आप भी इनके नाम जानते हैं। इनमें कई सक्रिय भाजपाई भी थे, परंतु भाजपा और संघ को गाली देते वक्त उनका भी कोई एतराज नहीं आया। मानो उनकी इसमें मौन सहमति और स्वीकृति थी। पिछले तीन दिन के स्थानीय अखबार पढ़ें तो तारीफों के पुल भरे हुए हैं। जो अच्छा लगा उसकी तारीफ करें परंतु हकीकत मे जो हुआ उससे तो मुहं ना मोड़ें। इसी मिजाज की जानकारी के चलते आयोजकों ने न्यूज चैनल के पत्रकार अभिज्ञान प्रकाश और राजदीप सरदेसाई से पत्रकारिता पर बातचीत के लिए एक अदद पत्रकार को नहीं चुना। शारीरिक रूप से बोलने-समझने में अक्षम बच्चे और मेयो गर्ल्स कॉलेज की अंग्रेजी माध्यम की छात्राएं खाली कुर्सियों को किसी हद तक भरा दिखाने में तो सक्षम थीं परंतु इस आयोजन से कितना समझ पाए, खासकर तब अंग्रेजी भाषा की दो चर्चाएं और दोनों ही रद्द कर दी गई हों। पिछले साल हुए फेस्टिवल में भी किसी ने कुरान मुफत बांटने पर सवाल नहीं किए थे। इस बार भी मौन रहें तो क्या फर्क पड़ता है।-राजेन्द्र हाड़ा 09829270160