खुद को विजेता समझ रहे थे, अब पता चला अभी तो दौड़ ही शुरू नहीं हुई है

ओम माथुर
ओम माथुर
स्मार्ट सिटी बनाने के नाम पर राजनीतिज्ञों व अफसरों ने फिर छला शहर के लोगों को
न दौड़ के लिए मैदान का पता था। न कोई प्रतिद्वंदी था। न कोई देखने वाला। फिर भी अजमेर पिछले साल भर से दौड़-दौड़ कर हांफ रहा था। अफसर बैठक पर बैठक कर रहे थे। कई स्वघोषित बुद्धिजीवी सिर से सिर मिलाकर मशक्कत में जुटे थे। नए अजमेर के सपने दिखा रहे थे स्मार्ट सिटी के नाम पर। लेकिन जैसे कोई सुंदर सपना टूटता है,वैसे ही अजमेर के लोग भी ये सुनकर धरातल पर आ गए कि अभी उनका शहर स्मार्ट सिटी बनने के लिए चुना नहीं गया है,बल्कि इसमें आने के लिए सौ दूसरे शहरों के साथ हाथ-पैर मारेगा।
मैने कल भी लिखा था कि शांतिप्रिय शहर के परम संतोषी स्वभाव के लोगों को ख्वाबों में जीने की आदत हो गई है। कोई भी हमारे सामने आता है,विकास की लोरी सुनाता है। झुनझुना बजाता है और हम मीठे-मीठे सपने देखने लगते हैं। लेकिन स्मार्ट सिटी की लोरी तो खुद देश के सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रधानमंत्री ने विश्व के सबसे ताकतवर राष्ट्र के प्रमुख के साथ खड़े होकर सुनाई थी। उस पर आखिर भरोसा क्यों नहीं करते? कोई साल भर पहले जब अमेरिका में पीएम नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ अजमेर को स्मार्ट सिटी बनाने का ऐलान किया था,तो पूरा शहर खूशी से झूम उठा। लगा कि तीर्थगुरू पुष्कर और ख्वाजा साहब की दरगाह के कारण विश्व में अजमेर को जो पहचान हासिल है,उसके कारण हमें यह सम्मान मिला है। बस,घोषणा होते ही राजनीतिज्ञों ने श्रेय का साफा पहनना शुरू कर दिया। केन्द्र व राज्य में भाजपा की सरकार होने के कारण इसके नेताओं ने गीत गाना शुरू कर दिया कि भाजपा को अजमेर के विकास की कितनी फ्रिक है। देशी विकास तो सब करते हैं,अम्ोरिकी टच होने से हाईटेक विकास होगा। इसलिए मोदी ने अमेरिका जाकर ऐलान किया है। कुछ अति उत्साही अफसरों ने भी मान लिया,कि अब बस एक ही काम करना है,अजमेर को स्मार्ट बनाने का। रोजाना मीटिंगें होने लगी। लम्बे-चौड़े प्रेस नोट जारी होने लगे। तरह-तरह के समूह बना दिए गए,जो बिना बात ही खुद को व्यस्त रखने लगे। शहर से दोनों मंत्रियों ने भी राग स्मार्ट सिटी गाकर अफसरों को इसके लिए पूरी जान लड़ा देने का हुक्म दिया।
लेकिन अब पता चला कि कितनी आसानी से शहर के लोगों को राजनीतिज्ञों व अफसरों ने ठग लिया। अब पता चला कि कोई अमेरिका,अजमेर को स्मार्ट सिटी बनाने के लिए पैसे नहीं दे रहा। अब पता चला कि अभी तो स्मार्ट सिटी के लिए ाठीक वैसे ही चयन प्रक्रिया चल रही है,जैसे किसी भी दौड़ में क्वालीफाई करने के लिए ट्रायल होती है। अब पता चला कि अभी तो अजमेर दौड़ के स्टार्टिंग पाइंट पर ही खड़ा है,जबकि हम तो साल भर से खुद को फिनिशिंग पाइंट पर खड़ा होकर विजेता समझ रहे थे। अब पता चला कि अभी तो हमें केंद्र सरकार के सामने अपनी ये हैसियत बतानी होगी कि हम स्मार्ट सिटी बनने लायक भी है या नहीं। इसके लिए दिसम्बर तक प्रस्ताव भेजने होंगे। अब पता चला कि प्रधानमंत्री की बात पर भी आसानी से यकीन नहीं करना चाहिए। अब पता चला कि विकास का सारा धन केंद्र और राज्य सरकार से नहीं मिलेगा। अब पता चला कि अगर हम सौ शहरों की दौड़ में पहले 20 स्थान पर आ भी गए,तो हमारे नगर निगम व अजमेर विकास प्राधिकरण को भी विकास योजनाओं पर खर्च होने वाली रकम में अपना हिस्सा देना होगा। अब पता चला कि पूरे शहर का कायाकल्प एक साथ नहीं होगा,बल्कि पहले किसी हिस्से विशेष पर ध्यान देकर उसे ही स्मार्ट सिटी के अनुरूप तैयार किया जाएगा। यानि अभी आप सुंदर,सजीले,संवरे,सारी सुविधाओं से लैस अजमेर में रहना भूल जाइए। आपकी किस्मत में वहीं समस्याएं तथा मुसीबतें लिखी है,जिनसे आप सालों से जूझ रहे हैं और जिनके समाधान की अब तो उम्मीदें भी टूटने लगी है।
स्मार्ट सिटी का सपना टूटने और लोरी के अचानक रूदन में बदल जाने से एक बार फिर नेताओं व अफसरों की पोल खोल गई है। लोगों को झांसा देना और उनके भोलेपन का फायदा उठाना उन्हें खूब आता है। तभी तो अजमेर में कोई भी कहीं से भी आकर लोकसभा चुनाव लड़ लेता है। राजनीतिक दल अजमेर को इसीलिए चारागाह समझते हैं। उन्हें पता है ज्यादा विरोध का माद्दा न तो यहां की जनता में हैं और न ही दलों के कार्यकर्ताओं में। कोई भी अफसर एक बार अजमेर में नियुक्ति पाने के बाद यहां से जाना नहीं चाहता। उसे पता है दो-चार नेताओं के मक्खन लगाकर वह यहां आराम से जिन्दगी गुजार सकता है। बच्चों के पढ़ने के लिए बढ़िया स्कूल मिल जाती है। अगर पत्नी पढ़ी-लिखी है,तो कई निजी शिक्षण या अन्य संस्थान उन्हें अपने यहां रखने को लालायित रहते हैं। और लोग तो इतने सहनशील है कि अफसरों के समझाने पर आसानी से मान जाते हैं। क्या अजमेर की नियति यही है कि इसके लोगों को नेताओं व अफसरशाही का गठजोड़ ऐसे ही अपने हित में इस्तेमाल करता रहेगा या कभी शहर के दिन बहुरेंगे।
ओम माथुर अजमेर

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