अपने ही सिंधी वोट बैंक के प्रति भाजपा लापरवाह

तीन साल बाद भी नहीं बना राजस्थान सिंधी अकादमी का बोर्ड

sindhi acedamy logo 1अपने जिस वोट बैंक के दम पर भाजपा प्रदेश की अनेक सीटों पर काबिज है, उसकी उसे कितनी खैर खबर है, इसका अंदाजा इसी बात से लग जाता है कि मौजूदा सरकार के गठन को तीन साल से भी ज्यादा हो जाने के बाद भी उसकी अकादमी का बोर्ड अब तक गठित नहीं कर पाई है। हालत ये है कि सरकार की इस लापरवाही को देखते हुए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से संबद्ध संस्था को सरकार से मांग करनी पड़ रही है।
ज्ञातव्य है कि अधिसंख्य सिंधियों का रुझान भाजपा की ओर ही रहा है। यही वजह है कि भाजपा उन्हें अपना वोट बैंक मानती है। उसी के अनुरूप विधानसभा चुनाव में जातीय समीकरण बैठाती है। उसे गुमान है कि कुछ भी हो जाए मगर सिंधी वोट कभी इधर से उधर नहीं होंगे। इसकी बड़ी वजह ये है कि संघ ने भी पूरी तरह से सिंधी समुदाय को लामबंद कर रखा है। ऐसे में वह इस वोट बैंक के प्रति लापरवाह हो गई है। मौजूदा सरकार को गठित हुए तीन साल से भी अधिक का समय हो गया है, मगर अब तक राजस्थान सिंधी अकादमी के बोर्ड का गठन नहीं किया है। हालांकि अकादमी का सामान्य सरकारी कामकाज तो जारी है, मगर इसके माध्यम से सिंधी भाषा, संस्कृति आदि के संरक्षण के लिए किए जाने वाले काम ठप पड़े हैं। इस सिलसिले में सिंधी समाज के प्रतिनिधिमंडल मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे से आग्रह कर चुके हैं, मगर उन पर कोई गौर नहीं किया गया है। विधानसभा में भाजपा के बैनर पर जीते स्वायत्त शासन मंत्री श्रीचंद कृपलानी, शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी व विधायक ज्ञानदेव आहूजा भी सरकार पर दबाव बनाने में नाकामयाब रहे हैं। ऐसे में संघ की ही एक शाखा भारतीय सिंधु सभा की प्रदेश कार्यसमिति ने अपनी एक बैठक में पांच प्रस्ताव पारित कर सरकार के सम्मुख रखे हैं, जिनमें सिंधी अकादमी के गठन का मुद्दा प्रथम है। दूसरा मुद्दा अकादमी का बजट दो करोड़ रुपये वार्षिक तक करने का है। सिंधी समुदाय के प्रति यह संस्था कितनी सतत प्रयत्नशील है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि संस्था की ओर से तैयार सिन्धी भाषा मान्यता के स्वर्ण जयंती वर्ष 2017-18 के पोस्टर व वार्षिक कार्यक्रमों के कैलेण्डर का विमोचन राज्यपाल कल्याण सिंह से करवाया गया। 10 अप्रैल 1967 को सिन्धी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित करते हुए मान्यता मिलने के 50 वर्ष पूरे होने पर 10 अप्रेेल 2017 से 10 अप्रेल 2018 तक सिन्धी भाषा की मान्यता का स्वर्ण जयंती वर्ष मनाया जा रहा है। इस दौरान संगोष्ठियां, 150 बाल संस्कार शिविर, सिन्धु ज्ञान परीक्षाएं, सिन्धी भाषा की सात संभागीय रथयात्राओं सहित विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किये जाएंगे। संस्था अपने स्तर पर इन कार्यक्रमों को आयोजित करवाएगी, मगर उसे मलाल है कि सिंधी अकादमी के माध्यम से होने वाले काम बोर्ड का गठन न पाने व कम बजट के कारण रुके हुए हैं। अब देखना ये है कि जिस भाजपा की वर्तमान में सरकार है, वह अपनी मातृ संस्था संघ की शाखा की मांग पूरी करती है या नहीं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000अपने ही सिंधी वोट बैंक के प्रति भाजपा लापरवाह
तीन साल बाद भी नहीं बना राजस्थान सिंधी अकादमी का बोर्ड

अपने जिस वोट बैंक के दम पर भाजपा प्रदेश की अनेक सीटों पर काबिज है, उसकी उसे कितनी खैर खबर है, इसका अंदाजा इसी बात से लग जाता है कि मौजूदा सरकार के गठन को तीन साल से भी ज्यादा हो जाने के बाद भी उसकी अकादमी का बोर्ड अब तक गठित नहीं कर पाई है। हालत ये है कि सरकार की इस लापरवाही को देखते हुए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से संबद्ध संस्था को सरकार से मांग करनी पड़ रही है।
ज्ञातव्य है कि अधिसंख्य सिंधियों का रुझान भाजपा की ओर ही रहा है। यही वजह है कि भाजपा उन्हें अपना वोट बैंक मानती है। उसी के अनुरूप विधानसभा चुनाव में जातीय समीकरण बैठाती है। उसे गुमान है कि कुछ भी हो जाए मगर सिंधी वोट कभी इधर से उधर नहीं होंगे। इसकी बड़ी वजह ये है कि संघ ने भी पूरी तरह से सिंधी समुदाय को लामबंद कर रखा है। ऐसे में वह इस वोट बैंक के प्रति लापरवाह हो गई है। मौजूदा सरकार को गठित हुए तीन साल से भी अधिक का समय हो गया है, मगर अब तक राजस्थान सिंधी अकादमी के बोर्ड का गठन नहीं किया है। हालांकि अकादमी का सामान्य सरकारी कामकाज तो जारी है, मगर इसके माध्यम से सिंधी भाषा, संस्कृति आदि के संरक्षण के लिए किए जाने वाले काम ठप पड़े हैं। इस सिलसिले में सिंधी समाज के प्रतिनिधिमंडल मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे से आग्रह कर चुके हैं, मगर उन पर कोई गौर नहीं किया गया है। विधानसभा में भाजपा के बैनर पर जीते स्वायत्त शासन मंत्री श्रीचंद कृपलानी, शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी व विधायक ज्ञानदेव आहूजा भी सरकार पर दबाव बनाने में नाकामयाब रहे हैं। ऐसे में संघ की ही एक शाखा भारतीय सिंधु सभा की प्रदेश कार्यसमिति ने अपनी एक बैठक में पांच प्रस्ताव पारित कर सरकार के सम्मुख रखे हैं, जिनमें सिंधी अकादमी के गठन का मुद्दा प्रथम है। दूसरा मुद्दा अकादमी का बजट दो करोड़ रुपये वार्षिक तक करने का है। सिंधी समुदाय के प्रति यह संस्था कितनी सतत प्रयत्नशील है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि संस्था की ओर से तैयार सिन्धी भाषा मान्यता के स्वर्ण जयंती वर्ष 2017-18 के पोस्टर व वार्षिक कार्यक्रमों के कैलेण्डर का विमोचन राज्यपाल कल्याण सिंह से करवाया गया। 10 अप्रैल 1967 को सिन्धी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित करते हुए मान्यता मिलने के 50 वर्ष पूरे होने पर 10 अप्रेेल 2017 से 10 अप्रेल 2018 तक सिन्धी भाषा की मान्यता का स्वर्ण जयंती वर्ष मनाया जा रहा है। इस दौरान संगोष्ठियां, 150 बाल संस्कार शिविर, सिन्धु ज्ञान परीक्षाएं, सिन्धी भाषा की सात संभागीय रथयात्राओं सहित विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किये जाएंगे। संस्था अपने स्तर पर इन कार्यक्रमों को आयोजित करवाएगी, मगर उसे मलाल है कि सिंधी अकादमी के माध्यम से होने वाले काम बोर्ड का गठन न पाने व कम बजट के कारण रुके हुए हैं। अब देखना ये है कि जिस भाजपा की वर्तमान में सरकार है, वह अपनी मातृ संस्था संघ की शाखा की मांग पूरी करती है या नहीं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

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