देवनानी व अनिता के प्रभाव को कम करने की कोशिश?

क्या शहर जिला भाजपा अध्यक्ष शिव शंकर हेडा ने लगातार चौथी बार विधायक बने प्रो. वासुदेव देवनानी व श्रीमती अनिता भदेल का प्रभाव पार्टी के भीतर कम करने की कोशिश की है, ये सवाल इन दिनों राजनीतिक गलियारे में चर्चा का विषय बना हुआ है।
असल में उन्होंने हाल ही अजमेर नगर निगम के वार्डों के परिसीमन पर निगरानी एवं आपत्तियां दर्ज करने व सुझाव देने के लिए शहर प्रभारी आनंद सिंह राजावत को बनाया है, जबकि अजमेर उत्तर के लिए सोमरत्न आर्य व अजमेर दक्षिण के लिए डॉ. प्रियशील हाडा को सह प्रभारी बनाया है। चलते-चलते यह बताना प्रासंगिक रहेगा कि राजावत को शहर अध्यक्ष बनने से रोकने में देवनानी की अहम भूमिका रही है। अनिता भदेल की बेरुखी के चलते ही डॉ. सोमरत्न आर्य मेयर का और सोमरत्न आर्य वार्ड वार्ड पार्षद का चुनाव हार गए। इन्हीं चर्चाओं के आधार पर राजनीति के जानकारों की धारणा है कि तीनों प्रभारी-सह प्रभारियों की देवनानी व भदेल से नाइत्तफाकी है। वार्डों के परिसीमन जैसे महत्वपूर्ण कार्य में देवनानी व भदेल को दरकिनार कर अपनी पसंद के प्रभारी बनाने को इस अर्थ में लिया जा रहा है कि हेडा ने अपने पद का प्रभाव इस्तेमाल करते हुए दोनों विधायकों की अहमियत को प्रभावित करने की कोशिश की है।
हालांकि इसमें कोई दोराय नहीं कि सभी प्रभारी पार्टी का हित की सर्वोपरि रखेंगे, मगर इस आशंका से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि वे इस पर भी नजर रखेंगे कि नए बन रहे वार्डों में दोनों विधायकों के वे चहेते कौन हैं, जो कि संभावित दावेदार हो सकते हैं। यह भी सही है कि परिसीमन के दौरान इस बात का ख्याल रखा जाएगा कि वह इस प्रकार का हो, ताकि ज्यादा से ज्यादा वार्डों में भाजपा जीत जाए। पार्टी के भावी प्रत्याशी जीत कर आएं, इसकी जिम्मेदारी भी संगठन की ही रहेगी। इन सब के होते हुए एक बड़ा पेच अब भी है, जिसका अनुमान लगाना अभी मुश्किल है, कि प्रत्याशियों के चयन में शहर अध्यक्ष की कितनी चलेगी, क्या केवल विधायकों की पसंद को ही तरजीह दी जाएगी या उनकी फिर आंशिक चलेगी। अब तक का अनुभव तो यही बताता है कि इक्का-दुक्का को छोड़ कर सभी प्रत्याशी इन दोनों विधायकों ने ही तय किए थे। पार्टी अध्यक्ष की तो चली ही नहीं। यहां तक कि जब हेडा पूर्व में अध्यक्ष थे, तब भी प्रत्याशी विधायकों की पसंद के ही बनाए गए। हेडा की पसंद के एक भी नेता को प्रत्याशी नहीं बनने दिया गया। हालत ये हो गई कि हेडा के वजूद को जिंदा रखने के लिए उनके समर्थकों ने एक गैर राजनीतिक संगठन बना कर गतिविधियां कीं।
खैर, ताजा स्थिति ये है कि हेडा पहले से कुछ अधिक प्रखर नजर आने लगे हैं। कुछ और अधिक परिपक्व व अनुभवी भी। आखिर अजमेर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष यूं ही नहीं बन गए। इसका परिणाम ये है कि गैर देवनानी, गैर भदेल गुट लामबंद होता दिखाई दे रहा है। यह बात दोनों विधायक भलीभांति जानते होंगे। इसी के मद्देनजर बताया जाता है कि हेड़ा को मात देने के लिए दोनों ने हाथ मिला लिया है। बताया तो यहां तक जाता है कि दोनों इस कोशिश में रहेंगे कि किसी भी प्रकार निगम चुनाव पहले हेडा की जगह कोई और अध्यक्ष बन जाए। देखते हैं, आगे आगे होता है क्या?

-तेजवानी गिरधर
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