सावर क्षेत्र में स्थित कई खदानों में लीज एरिया से बाहर हो रहा है अवैध खनन

तिलक माथुर
केकड़ी क्षेत्र का सावर कस्बा मार्बल पत्थर की वजह से देश में अपनी अलग पहचान बनाये हुए है। मगर इन्हीं खदानों की वजह से हादसों का सावर बन गया है, यहां होता रहता है कोई न कोई हादसा, मगर किसी को परवाह नहीं चाहे वो खदान मालिक हो, प्रशासन हो या सरकार. मरता केवल गरीब है। सावर क्षेत्र में करीब डेढ़ सौ मार्बल की खदानें हैं। कुछ खदानें तो सावर कस्बे के बीच बस्तियों के आस पास संचालित हैं, जिनमें ब्लास्टिंग के दौरान हमेशा खतरा मंडराता रहता है, लगता है बारूद के ढ़ेर पर बसा हुआ है सावर। कई बार तो ब्लास्टिंग के दौरान पत्थर उछलने से हादसे हो चुके हैं, धमाकों की आवाजें गूंजती रहती है। यहां जन्म लेने वाला बच्चा शायद यह मानता हो कि उसके जन्म के जश्न में तोपों की सलामी दी जा रही है। मगर उस अबोध को क्या मालूम कि यह जन्म पर तोपों की सलामी नहीं, यह मौत की चेतावनी है। ब्लास्टिंग के दौरान पत्थर बस्ती में गिरने से जहां कई मकान क्षतिग्रस्त हो चुके हैं वहीं पत्थर की चोट से कई लोग घायल तक हो चुके हैं। मार्बल की इन खदानों में पत्थर तोड़ने के लिए किए जाने वाले ब्लास्टिंग से हमेशा जान माल का खतरा बना रहता है। कस्बे के बीचों बीच स्थित कुछ खदानों के आसपास तो पुलिस थाना, सरकारी अस्पताल व स्कूलें स्थित है। हालांकि इन खदानों में ब्लास्टिंग का समय निर्धारित किया हुआ है। स्कूल समय मे ब्लास्टिंग पर रोक है, मगर फिर भी ब्लास्टिंग के समय पत्थर उछलने से जहां सरकारी भवनों के क्षतिग्रस्त होने का खतरा बना रहता है वहीं समीप ही सरकारी अस्पताल में भर्ती मरीजों व थाने में रहने वालों की जान को खतरा बना रहता है। बारूद के धमाकों से सरकारी भवनों को नुकसान भी पहुंचा है, स्कूल के तो कई कमरे क्षतिग्रस्त हो चुके हैं। इस मामले में न तो खनिज विभाग ने और न ही प्रशासन ने कोई ठोस कदम उठाये हैं। ऐसी ख़दानों पर खनन करने की रोक लगनी चाहिए जिसकी वजह से कई जाने जोखिम में हो। उल्लेखनीय है कि खदान मालिकों द्वारा भारी अनियमितताएं बरत कर खनन कर लाखों रुपए हर माह कमाए जा रहे हैं। खदानों के फिजिकल वेरिफिकेशन में भी भारी अनियमितताएं बरती जा रही है। कई खदान मालिकों द्वारा तो लीज परिधि को लांधते हुए आसपास की जमीन पर खुदाई कर अवैध रूप से मार्बल निकाला जा रहा है। कुछ खदान मालिकों ने तो निर्धारित गहराई से अधिक खुदाई कर दी है तथा वर्तमान में भी खनन कार्य बदस्तूर जारी है। प्रशासन द्वारा सीमांकन निर्धारण में मिलीभगत की जा रही है। वहीं खदान से निकलने वाला वेस्टेज भी खदानों के आसपास ही रखा जाता है जिसने छोटी-छोटी पहाड़ियों जैसा आकार ले लिया है। कई खदान मालिकों ने तो नियमों के विरुद्ध खदान लीज क्षेत्र में या आसपास कच्चे पक्के कमरे तक बना रखे हैं जिनमें मजदूरों के रहने के कक्ष सहित ऑफिस तक बने हुए हैं, जबकि मार्बल खनन के एमओईएफ की नियम संख्या 9 के अनुसार लीज एरिया में किसी भी प्रकार के भवन निर्माण का कार्य नहीं कराया जा सकता। अनियमितताओं का तो यह आलम है कि आ़खिर खनिज मैनुअल की धारा 2 (1) के अनुसार जिन्हें मार्बल खनिज पट्टा या लीज स्वीकृत है, उनके लिए एक वर्ष की अवधि के भीतर मार्बल काटने एवं तराशने की इकाइयां (गेंगसा एवं ग्राइंडर) राज्य में स्थापित करना अनिवार्य क्यों नहीं किया जा रहा है। खनिज विभाग द्वारा तय समय सीमा के भीतर मार्बल काटने एवं तराशने की इकाइयां स्थापित न किए जाने पर पट्टे अथवा लीज को निरस्त क्यों नहीं किया जा रहा है ? अनियमिताओं की बात करें तो खदान मालिकों द्वारा खदान में काम करने वाले मजदूरों की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम नहीं किये जा रहे हैं जिसकी वजह से आये दिन खदानों में हादसे होते रहते हैं, इन हादसों में अब तक पचासों मजदूर अपनी जान गंवा चुके हैं। लेकिन इस ओर न तो खदान मालिक ध्यान दे रहे हैं, न खनिज विभाग और न ही प्रशासन ! हर बार हादसों में मरने वाले मजदूरों के परिजनों को ये खदान मालिक ले देकर मामला निपटा देते हैं। अगर जानकारी मिल जाये तो कार्यवाही करने वाले जिम्मेदार लोगों का भी मुंह बंद कर दिया जाता है। कुल मिलाकर बारूद के ढ़ेर पर सावर कस्बे के लोग व खदानों में काम करने वाले मजदूर सुरक्षित नहीं हैं। सरकार को इस ओर गम्भीरता से ध्यान देना चाहिए। वहीं सूत्रों द्वारा जानकारी मिली है कि सावर क्षेत्र में कुछ लोग बिना किसी लीज के अवैध खनन कर क्वार्ट्स पत्थर भी निकाल रहे हैं, जिनके खिलाफ भी कोई कार्यवाही नहीं की जा रही।

तिलक माथुर
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