रिजू झुनझुनवाला पेश कर रहे हैं अनूठा उदाहरण

आम तौर पर जब भी कोई बाहर का प्रत्याशी अजमेर से चुनाव लड़ता है और हार जाता है, तो उसके बाद पलट कर अजमेर की ओर नहीं झांकता। जहां कांग्रेस में विष्णु मोदी, जगदीप धनखड़, हाजी हबीबुर्रहमान आदि इसके उदाहरण हैं तो वहीं भाजपा में किरण माहेश्वरी का नाम लिया जा सकता है। सैद्धांतिक रूप से यह बिलकुल गलत है। अगर हारने के बाद उन्हें अजमेर को छोड़ ही देना था तो काहे को चुनाव के वक्त ये वादे किए कि चाहे हार जाएं, मगर अजमेर के हितों के लिए काम करते रहेंगे। ठीक है, वे हार गए, मगर उन्हें भी तो अजमेर की जनता ने वोट दिए थे, क्या उनका अजमेर के प्रति कोई उत्तरदायित्व नहीं बनता? मगर ये ही हमारी राजनीति है कि आप सवाल उठाते रहिये, वे सुन कर अनसुना करते रहेंगे। आप उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकते। विष्णु मोदी का उदाहरण तो और भी दिलचस्प है। उन्होंने जीतने के बाद भी अजमेर का रुख नहीं किया। मगर मजे की बात देखिए कि वे दुबारा अजमेर आए और पार्टी बदल कर मसूदा से जीत गए। आप करते रहिए सिद्धांतों की बात, न केवल वे बेपरवाह रहते हैं, अपितु दुबारा जीत भी जाते हैं, अर्थात उन्हें जीतने का गुर पता है।
खैर, यह पूरी बात कर रहा हूं अगली बात का प्लेटफार्म बनाने के लिए। आपको ख्याल होगा कि हाल ही हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से भीलवाड़ा के रिजू झुनझुनवाला को भेजा गया। उन्होंने अपने भाषणों में, फ्लैक्स में सिर्फ अजमेर के विकास की बात कही। दुर्भाग्य से हार गए। लोगों ने सोचा कि वे भी अन्य प्रत्याशियों की तरह पलट कर अजमेर की ओर रुख नहीं करेंगे। मगर उन्होंने इस धारणा तो तोड़ दिया। वे बुरी तरह से हारे। चार लाख से भी ज्यादा वोटों से। समझा जा सकता है कि उन पर क्या बीती होगी? मगर इतने बेआबरू हो कर अजमेर के कूचे से निकाले जाने के बाद भी उन्होंने अजमेर को अपनाने की ठान ली। उनके संरक्षत्व में बाकायदा एक समिति बनाई, जिसका नाम है पूर्वांचल जन चेतना समिति। यह समिति गठन के बाद से लगातार सामाजिक सरोकार से जुड़े कामों में जुट गई है। समिति के कार्यकर्ता पुष्कर सरोवर के कुंडों में टैंकरों से पानी भरने, वर्षा के लिए पुष्कर में हवन करने सहित अन्य छोटे-मोटे कामों को अंजाम दे रही है। समिति की ओर से कहा गया है कि वह अजमेर के सामाजिक सरोकार, सांस्कृतिक विकास और मूलभूत सुविधाओं व समस्याओं के निवारण के लिए काम करती रहेगी। चूंकि रिजू एक बड़े उद्योगपति हैं, इस कारण उनके पास वक्त की कमी है, फिर भी उनकी ओर से उनके खास सिपहसाला रजनीश वर्मा पूरी देखरेख कर रहे हैं। आपको याद होगा कि रिजू के चुनाव से पहले जाजम जमाने में भी उनकी ही भूमिका रही है। हालांकि उन्होंने स्पष्ट किया कि समिति केवल सेवा कार्य अंजाम देने के लिए बनाई गई है, उसका राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है, मगर समझा जा सकता है कि इसी गैर राजनीतिक समिति के जरिए रिजू लंबी दूर की राजनीति की खातिर अजमेर में सक्रिय बने रहना चाहते होंगे। इसमें कोई भी बुराई नहीं है। कम से कम वे यह तो नजीर पेश कर ही रहे हैं कि उन्होंने अजमेर को अपना लिया है और बुरी तरह से हारने के बाद भी यहां से जुड़े रहना चाहते हैं।
अपनी समझदानी तो यही कहती है कि वे राजनीतिक केरियर बनाने के लिए सक्रिय बने रहना चाहते हैं। चूंकि वे कांग्रेस के हारे हुए प्रत्याशी हैं, इस कारण इस संसदीय क्षेत्र में भविष्य में कांग्रेस में होने वाली गतिविधियों व फैसलों में उनकी भी राय अहमियत रखेगी। वे ये भी जान चुके होंगे कि अजमेर में वैक्यूम है और सक्रिय बने रहे तो आने वाले चुनाव में भी प्रबलतम दावेदारों में शुमार रहेंगे। इस संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि सामाजिक व राजनीतिक सक्रियता बनाए रख कर वे कांग्रेस की ओर से राज्यसभा में जाने का प्लेटफार्म तैयार कर रहे हों।
खैर, जो कुछ भी हो। हारने के बाद भी सक्रिय रह कर सामाजिक हितों के कार्य करने के उनके जज्बे को सलाम, साधुवाद।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

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