मेरे एक मित्र नरेश रावलानी ने फेसबुक पर पोस्ट डाली है, जो वाकई चिंतनीय है। उसमें लिखा है कि अवकाश केवल विद्यार्थियों के लिए ही है…. अध्यापक एक अमर प्राणी है, जिसे न सर्दी लगती है, न गर्मी और न ही भारी बारिश या तूफान उसका कुछ बिगाड़ सकते हैं। अध्यापक तो पानी में बह भी नहीं सकते, वो वाटर प्रूफ, फायर प्रूफ और आइस प्रूफ होते हैं, अत: उनकी ड्यूटी यथावत रहेगी। भारी बारिश के मद्देनजर सभी स्कूलों में छात्र-छात्राओं की छुट्टी घोषित की गई है, मगर शिक्षकों को चाहे नाव में आना पड़े, चाहे हेलीकॉप्टर से, कैसी भी परिस्थिति हो विद्यालय समय पर पहुंचना है। उनके लिए कोई अवकाश नहीं है।
रावलानी की बात में दम है। सवाल ये उठता है कि जब स्कूल में छात्र-छात्राएं ही नहीं होंगी तो शिक्षक स्कूल में उपस्थित हो कर करेंगे भी क्या? केवल गप्प ही तो मारेंगे। क्या जिला कलेक्टर सोचते हैं कि चूंकि शिक्षकों को उस दिन की तनख्वाह मिल रही है तो क्यों न उन्हें ड्यूटी पर बुलवाया जाए। स्कूल में भले ही ठाले बैठे रहें।
असल में ताजा आदेश के लिए मौजूदा कलैक्टर ही जिम्मेदार नहीं हैं। पूर्व में भी इसी तरह से जब विद्यार्थियों की छुट्टी घोषित की जाती रही है, तो अध्यापकों की नहीं। ताजा आदेश तो मात्र डेट चेंज कर कॉपी पेस्ट करके जारी किया गया है। यानि कि नीचे से ऊपर तक कोई भी दिमाग नहीं लगाता। हम ढर्ऱे पर चलने के आदी हो गए हैं।
इस बारे में मैने शिक्षा अधिकारी से बात की तो वे बोले कि शायद ऐसा इसलिए किया जाता होगा, क्योंकि अगर शिक्षकों को भी छुट्टी दी जाएगी तो अन्य विभागों के कर्मचारी भेदभाव का आरोप लगाएंगे। जब ये सवाल किया कि जब विद्यार्थी नहीं आए तो आपने क्या किया, इस पर वे बोले कि हमें पढ़ाई के अतिरिक्त भी कई कार्य करने होते हैं, हमने वो निपटा लिए। एक प्रशासनिक अध्किारी से सवाल किया तो वे बोले कि ऐसा आपदा के समय उनका भी उपयोग करने के लिए किया जाता है।
-तेजवानी गिरधर
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