केकड़ी_राजस्थान* / केकड़ी नगरपालिका चुनाव में भाजपा की आत्मघाती हार की समीक्षा भले ही पार्टी स्तर पर हो रही हो या ना, मगर शहर में जिधर देखो उधर ही लोग भाजपा की हार की समीक्षा कर रहे हैं। केकड़ी शहर जो कि भाजपा का गढ़ माना जाता है वहां भाजपा का चुनाव हारना लोगों को पच नहीं रहा। लोगों का स्प्ष्ट तौर पर कहना है कि भाजपा खुद अपनी हार की जिम्मेदार है। भाजपा की हार तो आपसी गुटबाजी, अपने ही लोगों द्वारा की गई कार सेवा व मिस मैनेजमेंट की वजह से हुई है। हार तो टिकट वितरण के दौरान सार्वजनिक हुई गुटबाजी के दिन ही तय हो गई थी। भाजपा में गुटबाजी सार्वजनिक थी इसके बावजूद संगठन में बैठे लोगों ने इसे नजरअंदाज किया। संगठन में बैठे लोगों को जब यहां गुटबाजी की जानकारी थी तो उन्होंने यहां एक गुट को ही क्यों महत्व दिया। चुनाव प्रभारी राजाराम गुर्जर के बारे में कहा जा रहा था कि वे एक कुशल रणनीतिकार हैं मगर उनका प्रभाव यहां कहीं नजर नहीं आया। उन्होंने भी केवल एक ही गुट के नेता पर अतिविश्वास कर उसे ही महत्व दिया। कहीं न कहीं वे भी हार के जिम्मेदार हैं। उन्होंने अगर दोनों गुटों को बराबर महत्व दिया होता तो शायद परिणाम बदला जा सकता था। जिस तरह टिकट वितरण में एक गुट के नेता चुनाव संयोजक अनिल मित्तल को तवज्जो दी गई अगर थोड़ी तवज्जो दूसरे गुट व अन्य नेताओं को भी दी गई होती तो भाजपा को शायद यह दृश्य नहीं देखना पड़ता। संगठन ने केवल मित्तल पर भरोसा जताया अन्य पर नहीं। संगठन ने यही भरोसा दूसरे गुट के नेता गत विधानसभा चुनाव के प्रत्याशी राजेन्द्र विनायका पर भी जताया होता और उन्हें बराबर का महत्व दिया जाता तो शायद स्थिति बदल सकती थी। टिकट वितरण में मनमानी व हठधर्मिता महंगी पड़ी। विनायका गुट के कई जिताऊ कार्यकर्ताओं के टिकट भी काट दिए गए। टिकट वितरण के बाद मित्तल को फ्री हैंड करना भी चुनाव पर भारी पड़ा। मित्तल को फ्री हैंड करते ही बाकी नेता साइड लाइन हो गए। वे अगर कहीं जाते भी तो केवल लोक दिखावे व खानापूर्ति के लिए अपनी उपस्थिति दर्ज कराने। मित्तल ने केवल अपने चहेते 28 उम्मीदवारों का ही ख्याल रखा। कई उम्मीदवारों की तो टिकट वितरण के बाद सार संभाल ही नहीं की गई मदद तो बहुत दूर की बात है। उपेक्षित उम्मीदवार कांग्रेस का मुकाबला नहीं कर सके और चुनाव हार बैठे। हार का एक मुख्य कारण अपने ही लोगों द्वारा की गई कार सेवा भी है। अगर कारसेवा नहीं की गई होती तो वार्ड 1, 8, 19, 20, 24 भी भाजपा के खाते में होती। कार सेवा से मित्तल भी अछूते नहीं रहे। उन्होंने जिन पर भरोसा किया वे उनके नहीं रहे। जिन्हें वे अपने पक्के वोट समझ रहे थे उन्होंने ही वोट नहीं दिए। अति विश्वास, अति उत्साह, हठ धर्मिता की वजह मित्तल अपनी पत्नि को भी चुनाव नहीं जीता सके। उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं की सही तरीके से मदद ली होती तो शायद बाजी पलट सकते थे। कुल मिलाकर बिना कुशल नेतृत्व व बिना किसी रणनीति के लड़े गए चुनाव का यही हश्र होना था। भाजपा के नेताओं में आपसी तल्खी का आलम ये है कि अब वे हार का जिम्मेदार एक दूसरे को ठहरा रहे हैं। भाजपा के पूर्व मंडल अध्यक्ष राकेश शर्मा का कहना है कि नेताओं के अहंकार की वजह से पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा। शर्मा ने कहा कि केकड़ी भाजपा का गढ़ है उसके बावजूद पार्टी की हार शर्मनाक है। उन्होंने कहा कि अंहकारी लोग पार्टी के शीर्ष पदों पर बैठे हैं। इस चुनाव में पार्टी के परम्परागत समर्पित कार्यकर्ताओं को तवज्जो नहीं दी गई। चुनाव बिना रणनीति के लड़ा गया। राकेश शर्मा ने आरोप लगाया है कि जिला संगठन मूक दर्शक बने देखता रहा। उन्होंने जिला संगठन की कमजोरी का भी आरोप लगाया है। चुनाव परिणाम निकलने के बाद लोगों व पार्टी कार्यकर्ताओं को पूर्व विधायक शत्रुघ्न गौतम का चुनावी मैनेजमेंट याद आया, गत नगरपालिका चुनाव में गौतम के कुशल मैनजमेंट की चर्चा रही। गौतम के कार्यकाल 30 वॉर्डों में से 25 वार्डों पर भाजपा ने जीत हासिल की थी, कांग्रेस सिर्फ 3 में ही सिमट गई थी। खैर वजह जो भी रही हो मगर नगरपालिका चुनाव की हार की जिम्मेदार खुद भाजपा है।
तिलक माथुर