बड़ी शिद्दत से आशा की थी किशनगढ़ ने, मगर कम्बख्तों ने सजदा ही नहीं किया*

बिरदीचन्द मालाकार
मैं कल का कृष्णगढ़ और आज का किशनगढ़ हूँ। और कहने को तो मैं आज पूरे 410 बरस का हो गया हूँ और लोग कहते हैं कि मेरा अतीत बहुत गौरवशाली रहा है और मेरे शासकों ने मुझे अपने खून पसीने से सींचकर लगातार मेरा मान बढाया था जिससे मैं आज भी पूरी दुनिया में जाना जाता हूँ। मेरी गलियों में बने अनेक मंदिरों में कभी धर्म के ओतप्रोत गीतों की मधुर स्वर-लहरियां गूंजती थी तो मेरे राजाओं की तलवार की धार के दिल्ली के बादशाह भी दिवाने थे । और उनके प्रेम और समर्पण का तो पूरा विश्व गवाह है, जहाँ संत नागरीदास की प्रेयसी को भारत की मोनालिसा भी कहा जाता है । इसका प्रमाण आज भी इने-गिने लोगों में ही सही पर बड़े आदर से बाहर से आने वालों को मिल ही जाता है। यहाँ के हवेली संगीत और डिंगल साहित्य ने ही नहीं चित्रकारी ने भी किशनगढ़ को गौरवान्वित किया है। यह सब तभी संभव हो पाया जब यहाँ के शासकों ने पूरी शिद्दत से किशनगढ़ को सींचा था। किंतु आजादी के बाद जब से मुझ पर नेताओं और व्यापारियों की नज़र पडी़ है तभी से मेरी धार्मिक-सांस्कृतिक-साहित्यिक पहचान धूमिल होने लगी जो आज भी जारी है। अब यहाँ मुझसे प्यार कम और व्यापार ज्यादा होने लगा। अब मुझे कला और संस्कृति की नगरी कम और पत्थरों की मण्डी ज्यादा कहते हैं। जिसमें यहाँ के नेताओं, व्यापारियों का ही नहीं मीडिया का भी पूरा-पूरा हाथ है। इन सबने मिलकर मुझे लहुलुहान किया है और सभी कहते हैं कि हम दिन-रात मिलकर किशनगढ़ के विकास के लिए काम करते हैं। पर सच्चाई यह है कि सभी मेरे अश्कों का व्यापार और अपना स्वार्थ साधने में ही लगे हैं। कहने को तो कल मेरा जन्मदिन है परन्तु मुझे इसकी खुशी कम और गम ज्यादा है। आज मैंने देखा कि कुछ सरकारी भवनों को लाइटों से सजाकर और शायद कल के समाचार पत्रों में दो तीन-कालम के इतिहास पर बयानबाजी प्रकाशित करके सभी इसकी खानापूर्ति भी करेंगे । और खुद को मेरा भाग्यविधाता साबित करने की कोशिश करेंगे जबकि वास्तव में मेरी चिंता किसी को नहीं है। क्योंकि हर कोई मेरे गौरव की कम और अपने फायदे की ज्यादा सोचते हैं। अब तक पता नहीं यहाँ कितने विधायक, सभापति, पार्षद और अनगिनत तथाकथित प्रबुद्धजन हुए परन्तु किसी ने मेरी परवाह नहीं की। पर मैंने किसी से कोई शिकायत आज तलक नहीं की क्योंकि मुझे किसी से कोई आशा ही नहीं थी। परन्तु इस बार जब दिनेश सिंह राठौड़ जैसा सभापति और प्रदीप अग्रवाल जैसा सशक्त नेता प्रतिपक्ष मुझे मिला तो मुझे एकबारगी तो लगा कि अब मेरे गौरवशाली अतीत को पुनर्स्थापित करने वाले लोग मिल गए हैं। जिनसे मेरी कला, साहित्य और संगीत की सुध लेने की आशा की जा सकती है। यही आशा लिए मैं भी कल की बजट बैठक में इन दोनों पर टकटकी लगाए बैठा रहा, पर अफ़सोस कि इन दोनों ने भी मुझे निराश ही किया । और इन दोनों को भी मेरी कम और अपने बोर्ड और भविष्य की चिंता ज्यादा थी। अफसोस इस बात का भी है कि ये विभिन्न मदों पर खर्च करने के लिए तो सैकड़ों लाख की बात करते रहे पर इनका ध्यान मेरी कला इतिहास, साहित्य और संगीत पर बिलकुल नहीं गया। शायद एक को दशहरा मेले में बम्बईया बालाओं के ठुमके और दूसरे को बालाजी मेले में होने वाले फूहड़ नृत्य में ही यहाँ की संस्कृति और कला नज़र आती हो । तभी तो मात्र कुछ बिल्डिंगों पर रोशनी करने, अखबारों में चार लाइन लिखने और बयानबाज़ी करके सभी अपने कर्तव्य की इतिश्री में लगे हैं। पता नहीं कब किशनगढ़ को वीर शिरोमणि और संत नागरीदास जैसा कोई नेता, सभापति, विधायक या अफसर मिलेगा जो अजमेर, जयपुर, उदयपुर और कोटा नगर निगम की तर्ज पर अपने अपने क्षेत्र की कला संस्कृति और गौरव पर खर्च करने के लिए किसी बजट की नहीं सोचते बल्कि इनके लिए इनके पास इनसे जुड़े जो भी प्रस्ताव आतें हैं उन पर दिल खोलकर खर्च करते हैं। खैर, मेरा काम हर उस शख्स के पास अपनी व्यथा सुनाने का है जिससे इसे सुनने और समझने की आशा है । ये बात अलग है कि जिसमें काबिलियत होगी वो सुन और समझ लेगा वरना तो दशकों से मेरी दुर्दशा होती रही है तो आगे भी होती रहे, इससे क्या फर्क पड़ता है❓ इसलिए *बड़ी शिद्दत से सजदा किया था मैंने, पर कम्बख्तों ने सज़दा ही नहीं किया!* तो क्या किशनगढ़ को कभी कोई ऐसा सभापति, विधायक या अफसर मिलेगा? जो यहाँ व्यापार की कम और व्यवहार की ज्यादा सोचेगा❓ *इसका मुझे इंतज़ार था, है और तब तक रहेगा जब तक किशनगढ़ को भी धर्मेन्द्र गहलोत जैसा अफलातून सभापति और चिंमयी गोपाल जैसा आयुक्त नहीं मिल जाता है । जो चाहे रंग मल्हार हो, एक दिवसीय चित्रकला शिविर हो या फिर लाखों खर्च करने वाला कलर्स आफ डेजर्ट जैसा खर्चिला कला शिविर हो, इन्होंने कभी भी बजट का रोना नहीं रोया। इसका ही असर है कि इन शिविरों में तैयार कलाकृतियों से अजमेर का हर सरकारी कार्यालय सजा हुआ है और पेंटिग्स तो इतनी है कि किशनगढ़ उपखंड अधिकारी कार्यालय तक को प्रसाद के रूप में भेज दी गयी।* किंतु इसके लिए नेताओं और अफसरों के दिल में कला और संस्कृति के लिए कुछ करने की इच्छा शक्ति चाहिए जिसके लिए किशनगढ़ को अभी इंतज़ार करना होगा। तब तक के लिए अलविदा!

*संपादक, अजितंजय समाचार मित्र राजस्थान धड़कन (पाक्षिक)
अध्यक्ष, मार्बल सिटी प्रेस क्लब*
मो. नं. : 9214797344

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