-अजमेर के इतिहास में संभवतः पहली बार इतना बड़ा ’’रैला’’
-हिंदुत्व की रक्षा के मुद्दे पर उमड़ा अपार जनसमूह
-तेज धूप, भीषण गर्मी व उमस से बेहाल, फिर भी चलते रहे
-पसीने से तर-बतर, चार किमी. सफर पैदल मार्च
✍️प्रेम आनन्दकर, अजमेर।
👉ना कोई बैनर-ना किसी संस्था का पोस्टर। ना नेता-ना कार्यकर्ता, ना छोटा-ना बड़ा, ना राजनीतिक दल-ना ही कोई सामाजिक व स्वयंसेवी संगठन। ना जाति-ना बिरादरी, ना ऊंच-ना नीच। ना मालिक-ना नौकर। ना व्यापारी-ना ग्राहक। कोई भेदभाव नहीं। सभी एक घाट पर। अपार जनसमूह। रैला ही रैला। रैली नहीं, वाकई में रैला था आज सुबह अजमेर शहर में। मुद्दा हिंदुत्व की रक्षा का।
ऐसा संभवतः पहली बार हुआ। भगवान कसम, यदि यही रैली किसी राजनीतिक, सामाजिक या स्वयंसेवी संगठन के बैनरतले होती या किसी जाति विशेष या समुदाय विशेष द्वारा आयोजित की जाती, तो शायद इतनी भीड़ नहीं जुटती। इस रैली का आयोजन अजमेर के सकल (समस्त) हिन्दू समाज ने किया। इसी में सभी राजनीतिक दलों के नेता, कार्यकर्ता, जाति-बिरादरी और सभी तबके के लोग शामिल हुए। यही कारण है कि रैली की बजाय यह रैला बन गया। अजमेर शहर के लोगों ने गजब की एकता दिखाई। भीषण गर्मी, तेज धूप और भारी उमस के बीच हजारों लोग मार्टिंडल ब्रिज से लेकर कलेक्ट्रेट तक करीब चार किमी. पैदल चले। पसीने से तर-बतर हो गए, लेकिन जोश कम नहीं हुआ। जोश के साथ होश कायम रहा। एक बार कदम उठे, तो फिर रूके नहीं, लगातार चलते रहे। मानो कह रहे थे, ना थकेंगे, ना रूकेंगे। सुकून की बात यह रही कि भारी तादाद में लोगों की भागीदारी होने के बावजूद ना भगदड़ मची, ना हुड़दंग हुआ। हां, कुछ उत्साही नौजवानों ने नारेबाजी करने का प्रयास किया, तो समझदार लोगों ने उन्हें रोक दिया, क्योंकि यह शांति मार्च था या मौन रैली थी। शांति मार्च में बिना कुछ बोले ही अपनी सारी बातें कह दी जाती हैं। रैली में लोगों की भीड़ को देखते हुए जिला व पुलिस प्रशासन ने भी खासा बंदोबस्त किया था। इसलिए अजमेर को धन्यवाद, अजमेर के निवासियों को साधुवाद, जिला व पुलिस प्रशासन का आभार।