*बीसलपुर लबालब, फिर भी हम पानी को तरस रहे*

-भले ही हम तरसें, लेकिन पानी होने के बावजूद नहीं पिलाएंगे
-ना जनता कुछ बोल रही है, ना जनप्रतिनिधि, शासन-प्रशासन मस्त

✍️प्रेम आनन्दकर, अजमेर।
👉लो जी, बीसलपुर बांध लबालब भर गया है। अजमेर वालों के लिए बड़ी खुशी की बात है। यह खुशी केवल मन को तसल्ली देने के लिए ही है। नियमित रूप से दो या तीन दिन में पानी मिलने लग जाएगा, ऐसा सोच भी मत लेना। बीसलपुर खाली था, आधा भरा हुआ था, तब भी हम पानी के लिए तरस रहे थे और अब बीसलपुर पूरा भर गया है, तब भी तरसेंगे। शासन-प्रशासन की मर्जी होगी तो हमें पानी पिलाएंगे, वरना खाली बाल्टी-मटके हाथ में लेकर पानी के लिए भटकना तो है ही। यह हमारी मजबूरी या यूं कहें नियति बन गई है। अब देखो, जब से बरसात शुरू हुई है, तब से बीसलपुर और त्रिवेणी के गेज रोज सुबह, दोपहर व शाम को सोशल मीडिया के सभी प्लेटफार्म पर बताए जा रहे थे और रोज अखबारों में भी छप रहे थे। उम्मीद थी कि बीसलपुर ना केवल लबालब भर जाएगा, बल्कि चादर भी चल सकती है और गेट भी खोले जा सकते हैं।

प्रेम आनंदकर
चादर भी चल गई है और गेट भी खोल दिए गए हैं। अब असल सवाल यह है कि जब चारों तरफ अच्छी बरसात हो रही थी और बीसलपुर में पानी की आवक लगातार जारी थी, तो अजमेर जिले को रोजाना पानी सप्लाई शुरू क्यों नहीं किया गया। यदि रोजाना पानी सप्लाई किया जाता तो अजमेर में पानी का संकट खत्म हो जाता। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। पानी का संकट पहले भी बना हुआ था और अब भी बना हुआ है। यदि भविष्य में भी इसी तरह संकट बना रहे, तो कोई अतिश्योक्ति या अचरज वाली बात नहीं है। भले ही बीसलपुर लबालब भरकर छलक गया, गेट खोलकर पानी की निकासी भी की जा रही है। किंतु मजाल है, जो शासन-प्रशासन के नुमाइंदे अजमेर जिले को रोज नहीं, तो दो दिन में एक बार पानी सप्लाई शुरू कर दें। यदि जनता को रोज पानी मिलने लग जाएगा तो फिर शासन-प्रशासन के नुमाइंदों को कौन पूछेगा। अजमेर जिले की जनता का धैर्य भी गजब का है। भले ही प्यासी रह लेगी, हाथ में खाली बर्तन लेकर दर-दर भटक लेगी, किंतु शासन-प्रशासन के नुमाइंदों को कुछ भी नहीं बोलेगी। जब जनता ही नहीं बोलती है तो जनप्रतिनिधियों को क्या गरज पड़ी, जो वे कुछ बोलें। इसलिए हमारे कांग्रेस व भाजपा के जनप्रतिनिधि भी मुंह पर फेविकोल लगाए बैठे रहते हैं। आप यकीन मानें या ना मानें, किंतु यह सच है कि अभी भी अजमेर को तीन से चार दिन में पानी मिल पा रहा है। कई इलाकों में तो चार-चार, पांच-पांच दिन में पानी सप्लाई हो रहा है। भरपूर पानी होने के बाद भी हम पानी के लिए तरस रहे हैं। इसी को तो कहते हैं, “सागर के किनारे रहकर भी प्यासे रहना।” अरे भाई, जितना पानी बहा रहे हो, उसका आधा हिस्सा ही हमें पिला दो। कम से कम कुछ संकट तो हल हो जाएगा। जनप्रतिनिधियों, यदि जनता के लिए थोड़ा-सा भी सोचने की फुर्सत मिले तो पानी की नियमित रूप से सप्लाई शुरू करवा दीजिए। भगवान आपका भला करेंगे और जनता भी दुआएं देगी। बाकी आपकी मर्जी। वरना बेचारी जनता का क्या, वो तो भगवान भरोसे जी रही है और आगे भी जी लेगी।

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