पेयजल का समस्या का हल होगा भी या नहीं?

अजमेर की जल समस्या षाष्वत है। इसी समस्या के चलते अजमेर राजधानी बनने से रह गया। इतना ही नहीं विकास के कई आयामों में भी अजमेर उतनी प्रगति नहीं कर पाया, जितना समकक्ष अन्य षहरों में हुई। राजनीतिक इच्छा षक्ति की भूमिका भी किसी से छिपी नहीं है। भूतपूर्व काबिना मंत्री स्वर्गीय श्री किषन मोटवानी के प्रयासों से अजमेर को बीसलपुर पेयजल परियोजना मिली, जिसे कांग्रेस व भाजपा के विधायकों ने समय समय पर आगे बढाया। लेकिन आज जिस मुकाम पर यह परियोजना पहुंची है, वह जग जाहिर है। अजमेर अब भी प्यासा है। इस सिलसिले में हाल ही अजमेर के चंद वरिश्ठतम पत्रकारों में से एक श्री ओम माथुर ने सटीक और तीखा ब्लॉग लिखा है। हालांकि उनकी दिषा जरा भिन्न है, लेकिन मौलिक रूप से जिस मुद्दे को उन्होंने उठाया है, वह बेहद ज्वलंत है। श्री माथुर ने जो सवाल उठाए हैं, वे इसलिए महत्वपूर्ण हैं, वे उन चंद पत्रकारों में षुमार हैं, जिन्होंने पत्रकारिता के अपने पूरे केरियर में अजमेर को गहरे से जीया है। जिन्होंनें परियोजना की आदि से लेकर अब तक आए उतार चढाव को करीब से जाना समझा है। आज जिन बिंदुओं को उन्होंने उठाया है, उन पर दैनिक नचज्योति में उन्होंने तीस साल में निरंतर असंख्य बार लिखा है। अन्य पत्रकारों ने भी कोई कोर कसर बाकी नहीं रखी। अफसोसनाक बात है कि इतने सजग मीडिया के बावजूद आज 48 व 72 घंटे में पेजयल सप्लाई के जिस दौर में हम खडे हैं, वे हालात हम बीसलपुर परियोजना से पहले भी भोग चुके हैं। उससे भी ज्यादा कश्टदायी यह है कि इस मुदृदे पर दोनों राजनीतिक दलों के जनप्रतिनिधियों ने प्रषासन पर दबाव बनाया, मगर वह कारगर नहीं रहा। आंदोलन की चेतावनियों का भी कोई असर नहीं पडा। ऐसे यह यक्ष प्रष्न उठा खडा हुआ है कि पेयजल समस्या का समाधान होगा तो कैसे होगा? होगा भी या नहीं?

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