बहुत देर से पकड़े गए एसपी राजेश मीणा

अजमेर के पुलिस अधीक्षक राजेश मीणा बहुत देर से पकड़े गए हैं। उन पर तो काफी पहले ही शिकंजा कस दिया जाना चाहिए था। भ्रष्टाचार से धन बटोरने का संदेह तो उन पर तब ही हो जाना चाहिए था, जब उनकी छत्रछाया में प्रशिक्षु आईपीएस अजय सिंह रिश्वत प्रकरण में पकड़े गए थे।
उल्लेखनीय है कि अपने रीडर रामगंज थाने में एएसआई प्रेमसिंह के हाथों घूस मंगवाने के आरोप में गिरफ्तार आईपीएस अफसर अजय सिंह को घर भरने की इतनी जल्दी थी कि नौकरी की शुरुआत में ही लंबे हाथ मारना शुरू कर दिया था। तभी यह आशंका हो जानी चाहिए थी कि आखिर एक नया-नया अफसर इतनी हिमाकत कर कैसे रहा है? आईपीएस अजय सिंह कितने बेखौफ थे, इसका अंदाजा इसी बात से हो जाता है कि वे अपने भाई हेमंत कुमार के साथ जिस गाडी में जाते हुए पकड़े गए, उसमें अवैध शराब की दो पेटियां व 47 हजार रुपए पाए गए। ऐसा कत्तई नहीं हो सकता था कि एसपी मीणा की जानकारी के बिना ही वे इस प्रकार की कारगुजारी कर रहे थे। आपको याद होगा कि अजय सिंह ने उच्चधिकारियों की अनुमति के बिना ही कांस्टेबल राजाराम व जयपालसिंह को एसी का रिटर्न टिकिट देकर मुंबई से दहेज प्रताडऩा के आरोपी रणजीतसिंह को गिरफ्तार करने भेज दिया था। दोनों शातिर पुलिसकर्मियों ने मुंबई में बीयर बार, होटलों व बीच पर मौज-मस्ती कर मुकदमे से आरोपी और उसके परिवार के अन्य लोगों का नाम बाहर कराने के लिए लाखों की रिश्वत मांगी थी। बाद में आरोपी को अजमेर लाकर तीन दिनों तक एक होटल में बंधक बना कर रखा और पीडि़ता को पांच लाख रुपए दिलवा कर एक लाख रुपए कांस्टेबल ने वसूलेे। इसकी खबरें अखबारों में सुर्खियों में छपीं। उस वक्त भी मीणा ने उनका साथ दिया था।
दरअसल अजय सिंह भी देर से ही पकड़े गए थे। उनके कारनामों की चर्चाएं कानाफूसियों में तो होती रहीं और एसपी मीणा आंखें मूंदे रहे। अगर यह मान लिया जाए कि मीणा को कुछ पता ही नहीं लगा, तो यह उससे भी ज्यादा शर्मनाक बात कही जाएगी। वैसे अब यह पक्के तौर माना जाना चाहिए कि अजय सिंह उनकी शह पर ही खुला खेल खेल रहे थे। वो इसलिए कि मीणा विभिन्न थानों से आई मंथली के साथ पकड़े गए हैं। स्वाभाविक रूप से अजय सिंह भी उन्हें हिस्सा देते रहे होंगे। अब जरूरत है कि अजय सिंह से उनके कनैक्शन की नए सिरे जांच की जाए। अजय सिंह के पकड़े जाने पर भी यह मांग उठी थी कि केवल रिश्वत के एक ही मामले तक सीमित न रह कर उनके पास चल रही सभी जांचों की भी पड़ताल करवाई जाए।
मीणा का मंथली से कैसा नाता रहा है, इसका संदेह तब भी हुआ था, जब अजमेर के हितों के लिए गठित अजमेर फोरम की पहल पर बाजार के व्यापारियों की एकजुटता से एक ओर जहां शहर के सबसे व्यस्ततम बाजार मदारगेट की बिगड़ी यातायात व्यवस्था को सुधारने का बरसों पुराना सपना साकार रूप ले रहा था, वहीं मीणा के रवैये के कारण नो वेंडर जोन घोषित इस इलाके को ठेलों से मुक्त नहीं किया जा पा रहा था। तब ये बातें अखबारों की सुर्खियां बनी थीं कि ठेले वालों से मंथली ली जाती है, इसी कारण पुलिस उन्हें हटाने में रुचि नहीं ले रही।
अव्वल तो अब यह जानकारी भी आ रही है कि मीणा पूर्व में संदिग्ध रहे हैं। मगर अफसोस कि उसके बाद भी सरकार ने उन्हें फील्ड पोस्टिंग दे कर अजमेर जैसे महत्वपूर्ण व संवेदनशील जिले की कानून व्यवस्था सौंप रखी थी। अजमेर जिला पुलिस महकमे के सब से बड़े अधिकारी एसपी राजेश मीणा की इस हरकत ने पुलिस को ही नहीं, पूरे अजमेर को शर्मसार किया है। पुलिस थानों से चौथ वसूली के इस मामले ने एक बार फिर खाकी वर्दी को दागदार किया है। मीणा तक मंथली पहुंचाने वाले रामदेव की स्वीकारोक्ति के बाद यह बात साबित हो गई है कि कानून की रक्षा करने वाले ही तंत्र में भ्रष्टाचार को पनाह दे रहे थे।
-तेजवानी गिरधर

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