चौधरी ने लोकसभा चुनाव में जो रिकार्ड बनाया, उसके बारे कहा जा सकता है कि न भूतो न भविश्यते। उनके बाद नंबर आता है भूतपूर्व सांसद स्वर्गीय रासासिंह रावत का। संसदीय इतिहास में चौधरी के अलावा रावत ऐसे प्रत्याशी रहे हैं, जिन्होंने सर्वाधिक मतांतर से जीत दर्ज की है, तो एक बार हारे भी तो सबसे कम मतांतर से। रावत ने सन् 2004 में कांग्रेस की हबीबुर्रहमान को 1 लाख 27 हजार 976 मतों से हराया, जो कि एक रिकार्ड है। इसी प्रकार सन् 1998 में वे मात्र 5 हजार 772 मतों से ही हार गए, वह भी एक रिकार्ड है। चौधरी के अलावा सर्वाधिक मत हासिल करने का रिकार्ड भी रावत के खाते दर्ज है। सन् 1999 में उन्होंने 3 लाख 43 हजार 130 मत हासिल किए। सर्वाधिक बार जीतने का श्रेय भी रावत के पास है। वे यहां से कुल पांच बार जीते, जिनमें से एक बार हैट्रिक बनाई। यूं हैट्रिक मुकुट बिहारी लाल भार्गव ने भी बनाई थी। सर्वाधिक छह बार चुनाव लडऩे का रिकार्ड रावत के साथ निर्दलीय कन्हैयालाल आजाद के खाते में दर्ज है। चुनाव लडऩा आजाद का शगल था। वे डंके की चोट वोट मांगते थे और आनाकानी करने वालों को अपशब्द तक कहने से नहीं चूकते थे।
एक दिलचस्प तथ्य ये भी है कि सबसे कम कार्यकाल प्रभा ठाकुर का रहा। वे फरवरी, 1998 के मध्यावधि चुनाव में जीतीं और डेढ़ साल बाद सितंबर, 1999 में फिर चुनाव हो गए। उनका कार्यकाल केवल 16 माह ही रहा, क्योंकि जून में लोकसभा भंग हो गई।
अजमेर के संसदीय इतिहास में 1991 के चुनाव में सर्वाधिक 33 प्रत्याशियों ने अपना भाग्य आजमाया। सबसे कम 3 प्रत्याशी सन् 1952 के पहले चुनाव में अजमेर दक्षिण सीट पर उतरे थे।