लोकसभा चुनाव के लिए कमर कस रहे हैं रलावता?

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हाल विधानसभा चुनाव में अजमेर उत्तर से हारे कांग्रेस प्रत्याषी महेन्द्र सिंह रलावता फिर से मैदान में आ डटे हैं। खुद उन्होंने घोशणा की वे अब रोजाना पहले की तरह सक्रिय रहेंगे और जनता से सीधे संपर्क में रहेंगे। हार के बाद भी फिर जिस उर्जा के साथ भविश्य का तानाबाना बुन रहे हैं, उससे इस प्रकार की चर्चा होने लगी है कि वे आगामी लोकसभा चुनाव लडने की जमीन तलाष रहे हैं। हो सकता है कुछ लोग इस कयास का उपहास करें, मगर आंकडों का गणित तो यही कहता है कि जातीय समीकरण रलावता के अनुकूल हो सकता है।
आपको ख्याल में होगा कि कांग्रेस ने भूतपूर्व सांसद स्वर्गीय रासासिंह रावत के सामने बदल बदल कर अलग अलग जाति के उम्मीदवार उतारे, मगर सारे प्रयोग विफल हो गए। स्वर्गीय रावत ने स्वर्गीय गोविंद सिंह गुर्जर, स्वर्गीय किषन मोटवानी, जगदीप धनखड और हबीबुर्रहमान को हराया। मगर वे चारण-राजपूत जाति की श्रीमती प्रभा ठाकुर से हार गए। हालांकि दूसरे मुकाबले में वे जीत गए, मगर उससे यह धारणा तो भंग हो गई कि रावत अपराजेय हैं। रलावता भी राजपूत हैं। राजपूत के लिए जातीय समीकरण अनुकूल बैठता है। वे दावेदारी करेंगे या फिर सचिन पायलट की नजरें उन पर इनायत होगी, पता नहीं, मगर उनमें एक अच्छे प्रत्याषी साबित होने की पात्रता तो है। आपको जानकारी होगी कि परिसीमन के बाद अजमेर संसदीय सीट जाट बहुल हो गई है। ऐसे में कांग्रेस व भाजपा, दोनों जाट प्रत्याषी खडा करने पर विचार करेंगे। कांग्रेस के पास अजमेर डेयरी सदर रामचंद्र चौधरी के अतिरिक्त हाल ही किषनगढ से जीते विधायक विकास चौधरी हैं, जबकि भाजपा के पास पूर्व सांसद भागीरथ चौधरी, श्रीमती सरिता गेना व दीपक भाकर हैं। वैसे नाम सी आर चौधरी व सतीष पूनिया का नाम भी चर्चा में है। अगर किसी जाट की बजाय रलावता पर दाव खेलने पर विचार किया जाता है तो वे राजपूत, सचिन समर्थक गुर्जर, अनुसूचित जाति व मुस्लिम वोट बैंक के दम पर टक्कर दे सकते हैं। जिस प्रकार आरटीडीसी के पूर्व अध्यक्ष धर्मेन्द्र सिंह राठौड तनिक सक्रिय नजर आ रहे हैं, संभव है वे भी दावेदारी करें, वे अषोक गहलोत खेमे के हैं और ऐसा लगता नहीं कि सचिन पायलट अपने पूर्व कर्म क्षेत्र में उनको लिफ्ट लेने देंगे। वैसे चर्चा यह है कि स्वयं पायलट भी चुनाव लड सकते हैं, लेकिन उन्हें किसी को चुनना पडे तो संभव है रलावता पर हाथ रख दें। रलावता के पक्ष में एक तथ्य यह भी है कि वे बाबा गोविंद सिंह गुर्जर के मुख्य चुनाव अभिकर्ता रह चुके हैं, इस कारण पूरे संसदीय क्षेत्र की उन्हें समझ है।

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