सिंधी क्यों नहीं हो सकता लोकसभा चुनाव का प्रत्याशी?

अजमेर में लोकसभा आमचुनाव की हलचल आरंभ हो चुकी है। भाजपा में यूं तो कई नाम चर्चा में हैं, मगर रामगढ के पूर्व विधायक ज्ञान देव आहूजा अपने दावे की वजह से यकायक सुर्खियों में आ गए हैं। उनके दावे में कितना दम है, आइये, देखते हैं यह रिपोर्टः-
पूर्व भाजपा विधायक ज्ञानदेव आहूजा के अजमेर से टिकट की दावेदारी करने पर राजनीतिक हलकों में आष्चर्य व्यक्त किया जा रहा है। आम धारणा यही है कि अजमेर संसदीय क्षेत्र में सिंधी वोट बैंक इतना भी बड़ा भी नहीं कि उसे गंभीरता से लेते हुए टिकट दे दिया जाए। इस सिलसिले में सिंधु जागति मंच के समन्वयक हरी चंदनानी की मान्यता है कि भाजपा में ही क्यों, कांग्रेस से भी टिकट की दावेदारी की जा सकती है। उनसे पूछा गया कि आपके दावे का आधार क्या है तो वे बोले कि मांग हवा में नहीं है। उन्होंने बताया कि भाजपा ने अपना वोट बैंक होते हुए भी भले ही किसी सिंधी को टिकट नहीं दिया हो, मगर कांग्रेस ने दो बार सिंधी पर दाव खेला है। सन् 1980 में कांग्रेस के आचार्य भगवानदेव ने जनता पार्टी के श्रीकरण शारदा को 53 हजार 379 मतों से पराजित किया था। इसके बाद 1996 में कांग्रेस ने किशन मोटवानी को टिकट दिया और वे मात्र 38 हजार 132 वोटों से पराजित हुए।
उन्होंने बताया कि छह लोकसभा चुनावों में, 1998 को छोड़ कर, पांच में भाजपा के रासासिंह रावत ने विजय पताका फहराई। कांग्रेस ने भी बदल-बदल कर जातीय कार्ड खेले, मगर वे कामयाब नहीं हो पाए। रावत के सामने सन् 1989 में सवा लाख गुर्जरों के दम पर उतरे बाबा गोविंद सिंह गुर्जर 1 लाख 8 हजार 89 वोटों से हारे। सन् 1991 में रावत ने डेढ़ लाख जाटों के दम पर उतरे जगदीप धनखड़ 25 हजार 343 वोटों से हराया। सन् 1998 के मध्यावधि चुनाव में सोनिया गांधी के राजनीति में सक्रिय होने के साथ चली हल्की लहर पर सवार हो कर सियासी शतरंज की तब की नौसिखिया खिलाड़ी डॉ प्रभा ठाकुर ने रासासिंह को लगातार चौथी बार लोकसभा में जाने से रोक दिया था। हालांकि इस जीत का अंतर सिर्फ 5 हजार 772 मतों का रहा, लेकिन 1999 में आए बदलाव के साथ रासासिंह ने प्रभा ठाकुर को 87 हजार 674 मतों से पछाड़ कर बदला चुका दिया। इसके बाद 2004 में रासासिंह ने कांग्रेस के बाहरी प्रत्याशी हाजी हबीबुर्रहमान को 1 लाख 27 हजार 976 मतों के भारी अंतर से कुचल दिया। इस हिसाब से देखा जाए तो कांग्रेस के सिंधी प्रत्याशी का प्रदर्शन कमजोर नहीं रहा है, गुर्जर व मुसलमान की तुलना में तो काफी बेहतर रहा है। जब कांग्रेस का सिंधी प्रत्याषी ठीक ठाक परफोर्म कर सकता है, तो भाजपा का क्यों नहीं। वो इसलिए कि सिंधी को भाजपा का वोट बैंक समझा जाता है। चंदनानी ने कहा कि भाजपा शायद एक तो इस कारण सिंधी को लोकसभा का प्रत्याशी नहीं बनाती कि वह हर बार अजमेर उत्तर से सिंधी को प्रत्याशी बनाती आई है, दूसरा ये कि उसे पता है कि सिंधी वोट बैंक तो उसकी जेब में है, चाहे किसी भी गैर सिंधी को टिकट दो, सिंधी तो भाजपा को ही वोट देगा। खैर, अपुन को लगता नहीं कि भाजपा किसी सिंधी को टिकट देने वाली है, फिर भी अगर मानस बना तो ज्ञानदेव आहूजा का नंबर आ सकता है। हालांकि आहूजा सिंधी वोट बैंक को दावे का प्रमुख आधार नहीं मानते, मगर सच्चाई यही है कि दावा करते हुए उनके जेहन में सिंधी वोट बैंक जरूर मौजूद है। बेषक, अलवर के रामगढ में बिना जातीय आधार के जीतते रहे हैं, मगर वहां और यहां की परिस्थिति में फर्क है। अलवर उनकी कर्म स्थली रही है, जबकि अजमेर से इस कारण दावा कर रहे हैं कि उनका जन्म ब्यावर में हुआ था।

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