चुनाव परिणाम जानने के लिए चार जून का इंतजार क्यों?

क्या लोकसभा चुनाव का परिणाम जानने के लिए 4 जून का इंतजार करना जरूरी है? नहीं, आप चाहें तो आज ही गणित फला कर परिणाम जान सकते हैं। बेषक वह बहुत कठिन होगा। सटीक परिणाम व ठीक ठीक मतातंर न सही, मगर उसके इर्दगिर्द तो जरूर पहुंच जाएंगे। यानि मतांतर अधिक हुआ है तो आप षर्तिया बता सकते हैं कि परिणाम क्या रहने वाला है। आइये, जरा समझते हैं।
टापको जानकारी होगी कि पहले जब मतपत्रों की पेटियां होती थीं, जब यह पता लगाना कठिन होता था कि किस बूथ पर किसी पार्टी को कितने वोट मिले हैं। हालांकि रिकार्ड पर तो वह मौजूद होता था, मगर उसका संधारण न तो सरकार के स्तर पर होता था, न ही राजनीतिक कार्यकर्ता के बस की बात थी। जब से इलैक्टानिक वोटिंग षुरू हुई है, बाकायदा बूथ और वार्ड वार आपको पता लग जाता है कि वोटों का आंकडा क्या है। बूथ स्तर पर तो माइक्रो स्टडी संभव है। जिन लोगों की बूथ वार जातीय समीकरण पर पकड होती है, अथवा इलाके वार जानकारी रखने वाले आपके संपर्क में हैं पोलिंग प्रतिषत से आसानी से पता लगाया जा सकता है कि किस प्रत्याषी को कितने वोट मिले होंगे। मुझे ख्याल आता है कि अजमेर के वरिश्ठ कांग्रेस नेता प्रताप यादव बूथ वाइज गहरी स्टडी किया करते थे। बहुत मेहनत होती थी। एक तरह से वे डाटा मास्टर थे। उनको जानकारी होती थी कि किस बूथ पर, किस वार्ड में किस विचारधारा के कितने वोट हैं। किस जाति के कितने मतदाता हैं, इसके लिए वे पिछले परिणामों की तो स्टडी किया ही करते थे, ग्राउंड रिपोर्ट भी लेते थे। केवल आंकडों पर ही नहीं, बल्कि वार्ड वार मतदाताओं के मिजाज, नेताओं की पकड आदि की उनको जानकारी होती थी। इस काम में उनका सहयोग सुरेष लद्दड किया करते थे। जिन दिनों माणकचंद सोगानी अजमेर षहर जिला कांग्रेस अध्यक्ष थे, तब यादव महासचिव थे। सरकार व संगठन के बीच गोपनीय पत्र व्यवहार वे ही डाफ्ट किया करते थे। उनके सहयोग से ही मैने एक उपचुनाव का परिणाम घोशित होने से पहले ही आंक लिया था कि कांग्रेस के नानकराम जगतराय जीत जाएंगे। इसकी खबर भास्कर में भी प्रकाषित की। हालांकि उस चुनाव के प्रभारी तत्कालीन मंत्री बी डी कल्ला व सह प्रभारी डॉ के सी चौधरी थे, मगर अंदरखाने सारी कागजी माथपच्ची यादव के ही जिम्मे थी। इसी प्रकार भाजपा नेता व स्वामी न्यूज के सीएमडी कंवल प्रकाष किषनानी को भी आंकडों के संग्रहण का बहुत षौक है। सदैव अपडेट रहते हैं। वे भी डाटा एक्सपर्ट माने जाते हैं। भास्कर के वरिश्ठ पत्रकार सुरेष कासलीवाल को भी इस तरह से परिणाम का अनुमान लगाने में महारत हासिल थी। उनकी मेहनत व पहल की वजह से ही बूथ वार वोटों का गणित भास्कर में प्रकाषित करने का चलन आरंभ हुआ। लंबे अनुभव की वजह से ही उनकी पहचान राजनीतिक पंडित के रूप में है। देहात के क्षेत्र पर तो उनकी और अधिक गहरी पकड है। इस मामले में उनका कोई सानी नहीं।
बहरहाल, कुल जमा बात यह कि पहले से परिणाम जानना मुष्किल जरूर है, मगर नामुमकिन नहीं। वह बहुत श्रमसाध्य है, जिसका पारिश्रमिक भला कौन देगा? चलते चलते आखिर में एक मजाकिया बात। जब 4 जून को चुनाव आयोग परिणाम बता ही देगा तो काहे को इतनी मषक्कत की जाए?

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